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Writer's pictureAnshul P

RV 1.30.4


Similar to the affection between pigeon and its female partner, Indradev is requested to accept our plea affectionately. Here we have to under stand this through "Ang Angi bhaav". Hand is our Ang and we are its Angi. Similarly we are the Ang and Parmatma is our Angi. We keep our body parts safe so we request Parmatma to keep us safe @ Rig Ved 1.30.4



अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिं ।

वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे॥


भावार्थ:


कपोतः - Pigeon.


गर्भधिम् - Pregnant.


इव - Same as.


समतसि - To get constantly.


अयम् - This too.


उ ते - For you.


तच्चित् - For that reason.


नः - Ours.


वचः - Word.


ओहसे - To get.


भावार्थ:This mantra is addressed to Indradev. It says,Oh Indra! The way a pigeon treats his pregnant female pigeon,the same way Somras is prepared only for you and given to you constantly. For this you have our word for it.


Deep meaning:- Similar to the affection between pigeon and its female partner, Indradev is requested to accept our plea affectionately. Here we have to under stand this through "Ang Angi bhaav". Hand is our Ang and we are its Angi. Similarly we are the Ang and Parmatma is our Angi.We keep our body parts safe so we request Parmatma to keep us safe.



#मराठी


ऋग्वेद १.३०.४



अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिं ।

वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे॥


भावार्थ:


कपोतः - कबूतर.


गर्भधिम् - गरोदर.


इव - बरोबर.


समतसि - सतत प्राप्त करणे.


अयम् - हा पण.


उ ते - आपल्यासाठी.


तच्चित् - त्या कारणाने.


नः - आमचे.


वचः - वचनांचे.


ओहसे - प्राप्त करणे.


भावार्थ:ह्या मंत्रात इन्द्रांना संबोधित करून म्हटले आहे की हे इन्द्र! ज्या प्रकारे कबूतर गरोदर कपोतीला प्राप्त करतो,त्या प्रकारे आपण सोमरस सतत प्राप्त करतात जे मात्र आपल्याचसाठी निष्पन्न केलेला आहे.त्या कारणाने आपण आमचे वचन प्राप्त करत आहेत.


गूढार्थ: जसे कबूतर आणि कपोतीत गरोदरपणात प्रेम असतो,त्याच प्रमाणे इन्द्रदेवांनी पण आमची प्रेमपूर्ण प्रार्थना स्वीकार करावी.इथे " अंग अंगी" भाव समजावे लागणार. जसे हात आमचे अंग आहेत आणि आम्ही त्याचे अंगी आहोत.ह्याच प्रमाणे आम्ही प्रभूचे अंग आहोत आणि ते आमचे अंगी.आम्ही आपले अंग सुरक्षित ठेवतो त्याचप्रमाणे प्रभूना प्रार्थना करतो की त्यानी आम्हास सांभाळून घेण्यास तत्पर असावे.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३०.४



अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिं ।

वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे॥


भावार्थ:


कपोतः - कबूतर।


गर्भधिम् - गर्भवती।


इव - के समान।


समतसि - सतत प्राप्त करना।


अयम् - यह भी।


उ ते - आपके लिए।


तच्चित् - उसी कारण से।


नः - हमारे।


वचः - वचन के।


ओहसे - प्राप्त करना।


भावार्थ:यह मंत्र इन्द्र को संबोधित करते हुए कहता है कि हे इन्द्र! जिस प्रकार कबूतर गर्भवती कबूतरी को प्राप्त करता है,उसी प्रकार आप सोम को सतत प्राप्त करते हैं जो केवल आपके लिए ही निष्पन्न किया गया है। इसी कारण से आप हमारे वचन को प्राप्त करते हैं।


गूढार्थ: जैसे कबूतर और कबूतरी के बीच गर्भावस्था में प्रेमपूर्ण व्यवहार होता है,उसी तरह प्रेमपूर्वक इंद्रदेव हमारी प्रार्थना स्वीकार करें। यहां " अंग- अंगी भाव से समझा जा सकता है कि जैसे हाथ हमारे अंग हैं,तो हम उसके अंगी हुए।इसी तरह हम प्रभु के अंग हैं और वे अंगी हैं। हम जिस तरह अपने अंगों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं उसी तरह प्रभु से प्रार्थना है कि वे हमारी देखभाल करें।

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