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Writer's pictureAnshul P

RV 1.30.5

Updated: Aug 22, 2020


RELATIONSHIP BETWEEN BHAKTH AND ISHWARA


Rig Ved 1.30.5


While worshipping the devta's we always keep reminding them their qualities. Through our prayers we request them to bestow those qualities on us too. Devta's gladly concede to our request and grant us those qualities. Like we eat the food by our hands and take it to the mouth, But it travels down to the stomach. This is Ang- Angi relation as in the previous mantra. Our body becomes strong and healthy @ Rig Ved 1.30.5


स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते ।

विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑॥


Translation :


राधानाम् - Of Wealth.


पते - Guardian.


गिर्वाह - Is done through words.


वीर - Oh! The mighty Indra.


यस्य ते - Yours.


स्तोत्रम् - Hymn.


विभूतिः - Wealth.


सुनृता - Dear and with pure qualities.


अस्तु - Let it be.


Explanation :Oh! The protector of Wealth! The one described through words!The mighty One! When your Strotra is such,That dear wealth with pure qualities may be yours!


Deep meaning: While worshipping the devta's we always keep reminding them their qualities. Through our prayers we request them to bestow those qualities on us too.Devta's gladly concede to our request and grant us those qualities. Like we eat the food by our hands and take it to the mouth, But it travels down to the stomach. This is Ang- Angi relation as in the previous mantra. Our body becomes strong and healthy.



#मराठी


ऋग्वेद १.३०.५


स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते ।

विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑॥


भाषांतर :


राधानाम् - धनांचे.


पते - पालक।


गिर्वाह - वाणीतून वहन करणारा.


वीर - हे शौर्य संपन्न इंद्र!


यस्य ते - त्या आपला.


स्तोत्रम् - स्त्रोत.


विभूतिः - संपत्ति.


सुनृता - प्रिय आणि सत्त्व रूप युक्त.


अस्तु - असो.


भावार्थ:हे धनांचे पालक! वाणीतून वर्णित होणारे!शौर्य युक्त इंद्र!जशी आपली स्त्रोत आहेत,तशीच आपली संपत्ति प्रिय आणि सत्त्व रूप युक्त होइ द्यावे.


गूढार्थ: इथे देवतांचे यजन करत असताना, त्यांना स्तुती ने त्यांचे वैशिष्ट्य स्मरण करून देणे उत्तम आहे. आम्ही पण स्तुतींच्या माध्यमाने त्यांचे विशेष गुण स्वतःसाठी निवेदन करतो.देवता प्रसन्न होउन तो गुण आम्हाला प्रदान करतात.जसे आम्ही जेवण हातातून उचलून तोंडात टाकतो पण तो जातो उदरात. इथे ही अंग- अंगी भाव आहे.अंग सशक्त बनून आम्ही पुष्ट होतो.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३०.५


स्तो॒त्रं रा॑धानां पते॒ गिर्वा॑हो वीर॒ यस्य॑ ते ।

विभू॑तिरस्तु सू॒नृता॑॥


अनुवाद:


राधानाम् - धनों के।


पते - पालक।


गिर्वाह - वाणी से वहन करनेवाला ।


वीर - शौर्य संपन्न इन्द्र!


यस्य ते - आपका जिस।


स्तोत्रम् - स्त्रोत।


विभूतिः - संपत्ति।


सुनृता - प्रिय और सत्त्व रूप वाली।


अस्तु - हो।


भावार्थ:हे धनों के पालक! वाणी के द्वारा वर्णित होनेवाले! शौर्य युक्त हे इन्द्र! जिस आपका स्त्रोत ऐसा होता है,उस आपकी सम्पत्ति प्रिय तथा सत्य रूप वाली हो।


गूढार्थ: यहाँ देवताओं का यजन करते हुए उन्हें उनकी विशेषताओं का स्मरण दिलाते हैं। हम स्तुति के माध्यम से वे विशेष गुण माँगने की प्रार्थना करते हैं। देवता प्रसन्न होकर तब वह गुण हमें भी प्रदान करते हैं। जैसे भोजन करते हुए हम खाते हाथ से हैं और डालते मुँह से है,पर जाता है उदर में।यहां अंग अंगी भाव है। अंग सशक्त बनता है,हम पुष्ट होते हैं।




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