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Writer's pictureAnshul P

RV 1.31.1

Updated: Sep 11, 2020


TAKE SHELTER IN PARMATMA'S FEET TO BECOME FEARLESS.


Rig Ved 1.31.1


When there is fear around, be it for lack of things etc,the devotee aspires security, wants to get rid of this fear. Therefore he prays to Parmatma. But when we are in Parmatma's shelter our downfall is not possible. This can be looked upon as knowledge angle. From bhakti angle this is Upaasana or worship. Parmatma protects his bhakts since they have surrendered to him totally in their worship. The sages all show us the path to Parmatma.



त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रा॒ ऋषि॑र्दे॒वो दे॒वाना॑मभवः शि॒वः सखा॑ ।

तव॑ व्र॒ते क॒वयो॑ विद्म॒नाप॒सोऽजा॑यंत म॒रुतो॒ भ्राज॑दृष्टयः ॥


Translation:


अग्ने - Oh Agnidev!


त्वम् - You.


प्रथमः - First.


अंगिरा - Angira.


ऋषि - Sage.


अभवः - To be.


देवः - Deities.


देवानाम् - Of other Deities.


शिवः - Worth watching.


सखा - Friend.


तव - Yours.


व्रते - As per rules.


कवयः - Intelligence.


विद्मनापसः - Of known karmas.


भ्राजदृष्टयः - With weapons.


मरूतः - Deity.


अजायन्त - To be.


Explanation:This mantra praises Agnidev that firstly You appeared as Rishi Angira.Then you are the divine one who looks after the welfare of others and the all knowing friend of devtas.It was under your administration that the Marudgans were able to be the one with best weapons and the intelligent one.


Deep meaning: When there is fear around, be it for lack of things etc,the devotee aspires security, wants to get rid of this fear.Therefore he prays to Parmatma. But when we are in Parmatma's shelter our downfall is not possible. This can be looked upon as knowledge angle. From bhakti angle this is Upaasana or worship. Parmatma protects his bhakts since they have surrendered to him totally in their worship. The sages all show us the path to Parmatma.



#मराठी


ऋग्वेद १.३१.१


त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रा॒ ऋषि॑र्दे॒वो दे॒वाना॑मभवः शि॒वः सखा॑ ।

तव॑ व्र॒ते क॒वयो॑ विद्म॒नाप॒सोऽजा॑यंत म॒रुतो॒ भ्राज॑दृष्टयः ॥


भाषांतर:


अग्ने - हे अग्ने!


त्वम् - आपण.


प्रथमः - प्रथम.


अंगिरा - अंगिरा


ऋषि - ऋषी.


अभवः - होणे.


देवः - देव.


देवानाम् - अन्य देवांचे.


शिवः - शोभत असणे.


सखा - मित्र.


तव - आपले.


व्रते - नियम कर्मात.


कवयः - मेधावी.


विद्मनापसः - ज्ञात कर्माचे.


भ्राजदृष्टयः - आयुध युक्त.


मरूतः - देव.


अजायन्त - होणे.


भावार्थ:ह्या मंत्रात अग्निदेवांची प्रशंसा करत म्हटले आहे आपण सर्वप्रथम ऋषी अंगीराच्या रूपात प्रकट झाले नंतर आपण सारखे दिव्य,सर्वांचे कल्याण करणारे सर्वदृष्टा आणि देवतांचे मित्र म्हणून समोर आले. आपल्या प्रशासनात मरूदगण श्रेष्ठ आयुध व त्रिकालदर्शी कर्मांचे ज्ञान असणारे असून हजर आहेत.


गूढार्थ: जेंव्हा चारही बाजू भय व्याप्त असतो,ते अभावाचे भय असो की इतर असो,तेंव्हा भय तून मुक्तता साठी आम्ही परमात्माना स्मरण करतो,प्रार्थना करतो.जो पर्यंत आम्ही परमात्माच्या शरणी आहोत आमची अधोगती होणार नाही.हे ज्ञानाची दृष्टी ने पाहिल्यास कळत असतो.भक्तिच्या दृष्टीने पाहिल्यावर ही उपासना आहे.उपासनेत समर्पण असतो,तेंव्हा परमात्मा आम्हास सुरक्षा देतो.ऋषी मुनि पण आम्हास ईश्वराचे मार्ग दाखवतात.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३१.१


त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रा॒ ऋषि॑र्दे॒वो दे॒वाना॑मभवः शि॒वः सखा॑ ।

तव॑ व्र॒ते क॒वयो॑ विद्म॒नाप॒सोऽजा॑यंत म॒रुतो॒ भ्राज॑दृष्टयः ॥


अनुवाद:


अग्ने - हे अग्निदेव!


त्वम् - आप।


प्रथमः - पहला।


अंगिरा - अंगिरा ।


ऋषि - मुनि।


अभवः - होना।


देवः - देव।


देवानाम् - अन्य देवों के।


शिवः - शोभायमान।


सखा - मित्र।


तव - आपके।


व्रते - नियम कर्म में।


कवयः - मेधावी।


विद्मनापसः - ज्ञात कर्म वाले।


भ्राजदृष्टयः - आयुध युक्त।


मरूतः - देव।


अजायन्त - होना।


भावार्थ:इस मंत्र में अग्निदेव की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सर्वप्रथम आप ऋषि अँगिरा के रूप में अवतीर्ण हुए फिर आप जैसा दिव्य,सबका कल्याण करनेवाला सर्वदृष्टा और देवताओं के मित्र के रूप में प्रकट हुए।आपके ही प्रशासन में मरूदगण श्रेष्ठ आयुध और क्रांतदर्शी कर्मों के ज्ञाता के रूप में उभरे।


गूढार्थ :- जब चारों तरफ भय व्याप्त हो चाहे अभाव का भय कहीं अन्य भय,तब भय से मुक्ति के लिए भक्त सुरक्षा चाहता है,भय से मुक्त होना चाहता है। हम इससे सुरक्षा चाहते हैं इसीलिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। जब तक हम परमात्मा की शरण में हैँ हमारी अधोगति नहीं हो सकती। यह ज्ञान की दृष्टि से कहा गया है। भक्ति की दृष्टि से देखें तो यहां उपासना है। उपासना में समर्पण है,तब भी हमें परमात्मा सुरक्षित रखते है।ऋषि मुनि भी हमें भगवान के मार्ग पर ही ले जाते हैं।



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