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Writer's pictureAnshul P

RV 1.31.10

Updated: Sep 20, 2020


FOLLOW THE VEDANTIC PRINCIPLES TO REALISE THE BRAHM IN YOU.


Rig Ved 1.31.10


Here longevity stands for Moksha. For this we have to follow the Vedantic Principles and keep ourselves aloof from worldly vices without expectations. This will be possible only when we recognise the Brahm in us.


त्वम॑ग्ने॒ प्रम॑ति॒स्त्वं पि॒तासि॑ न॒स्त्वं व॑य॒स्कृत्तव॑ जा॒मयो॑ व॒यं ।

सं त्वा॒ रायः॑ श॒तिनः॒ सं स॑ह॒स्रिणः॑ सु॒वीरं॑ यंति व्रत॒पाम॑दाभ्य ॥


Translation :


अग्ने - Oh Agnidev!


त्वम् - You.


प्रमतिः - Given intellect.


असि, त्वम् - Yes,You.


नः - Ours.


पिता - Father/ guardian.


वयस्कृत - Providing longevity.


वयम् - We.


तव - Yours.


जामयः - Brother.


अदाभ्य - Oh the non violent one!


सुवीरम् - Good quality of men.


व्रतपाम् - One who follows rules.


त्वा - Yours.


शतिनः - With hundreds of.


रायःसम् यन्ति - Wealth from all sides.


सहस्त्रिणः - Thousands.


सम् - To get it nicely.


Explanation :This mantra tells us the special qualities of Agnidev. It says that he has special intellect and he is our guardian / father who provides longevity to us and is also our brother /friend. He is very courageous who follows all the rules. Also he owns unlimited wealth.


Deep meaning:- Here longevity stands for Moksha. For this we have to follow the Vedantic Principles and keep ourselves aloof from worldly vices without expectations. This will be possible only when we recognise the Brahm in us.



#मराठी


ऋग्वेद १.३१.१०


त्वम॑ग्ने॒ प्रम॑ति॒स्त्वं पि॒तासि॑ न॒स्त्वं व॑य॒स्कृत्तव॑ जा॒मयो॑ व॒यं ।

सं त्वा॒ रायः॑ श॒तिनः॒ सं स॑ह॒स्रिणः॑ सु॒वीरं॑ यंति व्रत॒पाम॑दाभ्य ॥


भाषांतर :


अग्ने - हे अग्निदेव!


त्वम् - आपण.


प्रमतिः - प्राप्त बुद्धी.


असि, त्वम् - आहे,आपण.


नः - आमचे.


पिता - वडिला सारखे.


वयस्कृत - आयुष्य प्रद.


वयम् - आम्ही लोक.


तव - आपले.


जामयः - बुद्धी.


अदाभ्य - हे अहिंक।


सुवीरम् - बरी मानसाने युक्त।


व्रतपाम् - व्रत पालन करणारे.


त्वा - आपले.


शतिनः - शतसंख्या युक्त.


रायःसम् यन्ति - अनेक प्रकाराने धन प्राप्त होणे.


सहस्त्रिणः - सहस्र.


सम् - चांगल्या प्रकारे प्राप्त होणे.


भावार्थ:इथे अग्निदेवांचे वैशिष्ट्य सांगितलेले आहे की ते विशेष बुद्धि युक्त आमचे अभिभावका सारखे आमचे वडिलांच्यासारखे आयु प्रदान करणारे आमचे बन्धू आहेत.ते एक उत्तम वीर,सर्वगुण संपन्न,नियमांचे पालन करणारे आणि असंख्य धनाचे स्वामी आहेत.


गूढार्थ: इथे आयुचा संबंध मोक्षा साठी आहे.ह्या साठी वैदांतिक सिद्धांताचा पालन करून तटस्थ होउन जगले पाहिजे.तिथे सांसारिक विकाराशी असंपृक्त राहून काहीही अपेक्षा नसली पाहिजे.हे तेंव्हा संभव आहे जेंव्हा आम्ही स्वतःला ब्रह्म समजू.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३१.१०


त्वम॑ग्ने॒ प्रम॑ति॒स्त्वं पि॒तासि॑ न॒स्त्वं व॑य॒स्कृत्तव॑ जा॒मयो॑ व॒यं ।

सं त्वा॒ रायः॑ श॒तिनः॒ सं स॑ह॒स्रिणः॑ सु॒वीरं॑ यंति व्रत॒पाम॑दाभ्य ॥


अनुवाद:


अग्ने - हे अग्निदेव!


त्वम् - आप।


प्रमतिः - प्राप्त बुद्धि।


असि, त्वम् - हैं,आप।


नः - हमारे।


पिता - पालनकर्ता।


वयस्कृत - आयुष्यप्रद।


वयम् - हमलोग।


तव - आपके।


जामयः - बन्धु।


अदाभ्य - हे अहिंसक!


सुवीरम् - अच्छे पूरूषों से युक्त।


व्रतपाम् - व्रत पालन करनेवाले।


त्वा - आपको।


शतिनः - शतसंख्या युक्त।


रायःसम् यन्ति - हर तरह से धन प्राप्त होना।


सहस्त्रिणः - सहस्त्र ।


सम् - अच्छे से प्राप्त होना।


भावार्थ:-इसमें अग्निदेव की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे विशेष बुद्धि वाले हमारे अभिभावक स्वरूप हमें आयु प्रदान करनेवाले और हमारे बन्धु हैं। आप एक अच्छे वीर सर्वगुण संपन्न,नियमों का पालन करनेवाले और असंख्य धन के स्वामी हैं।


गूढार्थ: यहाँ लंबी आयु का मतलब मोक्ष है। हमें इसके लिए वैदांतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए तटस्थ होकर जीवन जीना चाहिए जो सांसारिक विकारों से असंपृक्त है,जिसमे अपेक्षा का सर्वथा अभाव है।ये तब संभव है जब हम समझ लें कि हम स्वयं ही ब्रह्म हैं।




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