CONTROL YOUR MIND AND INTELLIGENCE TO CONQUER YOURSELF.
Rig Ved 1.31.11
In this mantra Manu denotes mind. It discusses Vigyanatma which is situated inside it,that is Vigyanmay Kosh. This is responsible for expansion and development of this world. As per ANAVAY system which explains the theory of "Many from one", The same process is discussed here.
त्वाम॑ग्ने प्रथ॒ममा॒युमा॒यवे॑ दे॒वा अ॑कृण्व॒न्नहु॑षस्य वि॒श्पतिं॑ ।
इळा॑मकृण्व॒न्मनु॑षस्य॒ शास॑नीं पि॒तुर्यत्पु॒त्रो मम॑कस्य॒ जाय॑ते ॥
Translation :
त्वम् - Yours.
अग्ने - Oh Agnidev !
प्रथमम् - First.
आयुम् - In human form.
आयवे - In human form.
देवाः - For Devtas.
अकृण्वन् - To make.
नहुषस्य - King Nahush.
विश्पतिम् - Commander.
इळाम् - Daughter of this name.
अकृण्वं - To make.
मनुष्यस्य - Of Manu.
शासनीम् - One who would spread the message of Dharma.
पितुः - Of my father Angira.
यत् - When.
पुत्रः - Son.
ममकस्य - Mine.
जायते - Had been made.
Explanation:- In this mantra Angiras Hiranyastup Rishi reminds Agnidev that it was his father who made him his son and invited Agnidev as the army Commander when he had acquired human form. It was Manu who had appointed his daughter ILA to preach his Dharma.
Deep meaning:- In this mantra Manu denotes mind. It discusses Vigyanatma which is situated inside it,that is Vigyanmay Kosh. This is responsible for expansion and development of this world. As per ANAVAY system which explains the theory of "Many from one", The same process is discussed here.
📸Credit-Mahadev_Bhakt_231(Instagram)
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#मराठी
ऋग्वेद १.३१.११
त्वाम॑ग्ने प्रथ॒ममा॒युमा॒यवे॑ दे॒वा अ॑कृण्व॒न्नहु॑षस्य वि॒श्पतिं॑ ।
इळा॑मकृण्व॒न्मनु॑षस्य॒ शास॑नीं पि॒तुर्यत्पु॒त्रो मम॑कस्य॒ जाय॑ते ॥
भाषांतर :
त्वम् - आपले.
अग्ने - हे अग्ने!
प्रथमम् - प्रथम.
आयुम् - मनुष्य रूप.
आयवे - मनुष्य रूप.
देवाः - देवांना.
अकृण्वन् - बनवून घेणे.
नहुषस्य - राजा नहुष.
विश्पतिम् - सेनापति.
इळाम् - ह्या नांवाची पुत्री.
अकृण्वं - बनवून घेणे.
मनुष्यस्य - मनु चे.
शासनीम् - धर्माचे उपदेश देणारे.
पितुः - पिता अंगिराचे
यत् - जेंव्हा.
पुत्रः - पुत्र.
ममकस्य - माझे.
जायते - बनवून घेतले होते.
भावार्थ -ह्या मंत्रात अंगिरस हिरण्यस्तूप ऋषि म्हणत आहे की हे अग्निदेव! प्रथम माझे वडिल अंगिराचे पुत्र म्हणून आपला प्रादुर्भाव झाला तेंव्हा आपल्याला मनुष्य रूपात देवतांने पहिले राजा नहुष म्हणून सेनापति बनवून दिले होते.मनुची पुत्री इळाला धर्म प्रचारक रूपात नियुक्त केले होते.
गूढार्थ: इथे मनुचा तात्पर्य मन हे आहे.मना मध्ये स्थित विज्ञानात्मा ची चर्चा होत आहे जिथे विज्ञानमय कोष आहे.ह्या कोषातून संसाराचा विस्तार होतो.अन्वय पद्धती ने एकाहून अनेक होण्याची प्रक्रिया बोलली जात आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.११
त्वाम॑ग्ने प्रथ॒ममा॒युमा॒यवे॑ दे॒वा अ॑कृण्व॒न्नहु॑षस्य वि॒श्पतिं॑ ।
इळा॑मकृण्व॒न्मनु॑षस्य॒ शास॑नीं पि॒तुर्यत्पु॒त्रो मम॑कस्य॒ जाय॑ते ॥
अनुवाद:
त्वम् - आपके।
अग्ने - हे अग्ने!
प्रथमम् - पहले।
आयुम् - मनुष्य रूप।
आयवे - मनुष्य रूप।
देवाः - देवोंने।
अकृण्वन् - बनाना।
नहुषस्य - राजा नहुष।
विश्पतिम् - सेनापति।
इळाम् - इस नाम की पुत्री।
अकृण्वं - बनाना।
मनुष्यस्य - मनु को।
शासनीम् - धर्म का उपदेश देनेवाली।
पितुः - पिता अंगिरा का।
यत् - जब।
पुत्रः - पुत्र।
ममकस्य - मेरे।
जायते - बने थे।
भावार्थ - इस मंत्र में अंगिरस हिरण्यस्तूप ऋषि कहते हैं कि आप मेरे पिता अंगिरा के पुत्र बने थे,तब आपको पहले देवों ने मनुष्य के रूप मे राजा नहुष नामक सेनापति बनाया और मनु की पुत्री इळा को मनु के धर्म उपदेशों को प्रचारित करनेवाली बनाया।
गूढार्थ:यहां मनु का तात्पर्य मन से है। मन के भीतर स्थित विज्ञानात्मा की चर्चा हो रही है,यग यहां विज्ञानमय कोष है।इसीसे संसार का विस्तार होता है। अन्वय पद्धति से एक से मैं अनेक हूं,इसी की प्रक्रिया की बात कही जा रही है।
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