ONE WHO REALISES THAT ATMA AND PARMATMA ARE ONE, ATTAINS PARMANAND.
Rig ved 1.31.12
It says that the thing that makes us recognise or that makes us see its sense,the power that it can give us, is actually the strength of our Atma and indirectly Parmatma's Power. This strength enlightens our mind. It is through this medium that we can achieve the last aim of our life,that is Total surrender and happiness. Mind and intelligence are its tools. Therefore here we talk of protecting these two in order to keep understanding our thoughts and intelligence.
त्वं नो॑ अग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व॑श्च वंद्य ।
त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेषं॒ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥
Translation :
त्वम् - You.
नः - Ours.
अग्ने देव - Agnidev.
तव - Yours.
पायुभिः - The deed of bringing us up.
मघोनः - Wealthy.
रक्ष - Protection.
तन्वः - Of body.
च - And.
वन्द्य - Praiseworthy.
त्राता - Protector.
तोकस्य - Of our son.
तनये - Of grandson.
गवाम् - Of Cow.
अनिमेषम् - Continuous.
रक्षमाणः - Alert.
तन्व - Of body.
व्रते - Of work.
Explanation - This mantra is addressed to Agnidev. It says that we all praise you. You are equipped with Security tools and wealth therefore you have the ability to protect us. You provide nourishment to our bodies and make us strong. You will definitely protect us silently but we request you to protect our sons,grandsons and other domestic animals.
Deep meaning: It says that the thing that makes us recognise or that makes us see its sense,the power that it can give us, is actually the strength of our Atma and indirectly Parmatma's Power. This strength enlightens our mind. It is through this medium that we can achieve the last aim of our life,that is Total surrender and happiness. Mind and intelligence are its tools. Therefore here we talk of protecting these two in order to keep understanding our thoughts and intelligence.
📸Credit-guru_diaries(Insta)
Ddreesaa
#मराठी
ऋग्वेद १.३१.१२
त्वं नो॑ अग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व॑श्च वंद्य ।
त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेषं॒ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥
भाषांतर :
त्वम् - आपण.
नः - आमचे.
अग्ने देव - अग्निदेव।
तव - आपले.
पायुभिः - पालन क्रिये द्वारा.
मघोनः - धन युक्त.
रक्ष - रक्षण करणे.
तन्वः - देहाचे.
च - आणि.
वन्द्य - वंदनीय.
त्राता - रक्षक.
तोकस्य - आमचे पुत्रांची.
तनये - पौत्रांचे.
गवाम् - गाईचे.
अनिमेषम् - निरंतर.
रक्षमाणः - सावधान.
तन्वः - देहाचे.
व्रते - कर्माचे.
भावार्थ - ह्या मंत्रात अग्निदेवांना निवेदन केलेले आहे कि आम्ही आपली वंदना करत आहोत.आपण रक्षणाचे साधन व धनाने युक्त आहात म्हणून आपण आमचे रक्षणार्थ समर्थ आहात.आपण आमची शारीरिक क्षमतांचे पोषण करून आम्हास दृढ बनवावे. आपण शांतिपूर्वक आमची रक्षा तर करावेच परंतु आमचे पुत्र पौत्रादि आणि पशूंना पण संरक्षण प्रदान करावे.
गूढार्थ: इथे सांगितलेले आहे की ज्या वस्तू पासून बोध प्राप्त करायचा असतो,जे बळ प्राप्त करायचा असतो ते आत्मानेच प्राप्त होते, परोक्ष रूपाने परमात्मा पासूनच प्राप्त होतो.हेच बळाला बुद्धी ज्ञानातून प्रकाशित करते.हेच जीवनाचे अंतिम लक्ष्य, म्हणजे परम आनंद प्राप्त करणे,हे आहे.ह्याचे साधन मन आणि बुद्धी आहेत.ह्यांचा रक्षणासाठी प्रार्थना केली जात आहे,कारण ते विवेक आणि भाव ह्या साठी आवश्यक असतात .
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.१२
त्वं नो॑ अग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व॑श्च वंद्य ।
त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेषं॒ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥
अनुवाद:
त्वम् - आप।
नः -हमारे।
अग्ने देव - अग्निदेव।
तव् - आपके।
पायुभिः - पालन की क्रिया द्वारा।
मघोनः - धनसे युक्त।
रक्ष - रक्षा करना।
तन्वः - शरीर की।
च - और।
वन्द्य - वंदनीय।
त्राता - रक्षक।
तोकस्य - हमारे पुत्र का।
तनये - पौत्र का।
गवाम् - गाय का।
अनिमेषम् - लगातार।
रक्षमाणः - सावधान।
तन्वः - देह की।
व्रते - कर्म में।
भावार्थ -इस मंत्र में अग्निदेव से निवेदन किया जा रहा है कि हम आपकी वंदना करते हैं।आपने रक्षण साधनों से और धन से युक्त हैं इसीलिए आप हमारी रक्षा करने में समर्थ हैं। हमारी शारीरिक क्षमताओं को पोषित करके और दृढ करें। आप शांतिपूर्वक हमारी रक्षा तो करेंगे पर हमारे पुत्र पौत्रादि और हमारे पशुओं को भी संरक्षण दीजिए।
गूढार्थ: इसमें बताया गया है कि जिस वस्तु से बोध प्राप्त करना है,उससे जो बल प्राप्त होगा वह आत्मा का ही बल है,या परोक्ष रूप से वह परमात्मा का ही बल है।इसी बल से बुद्धि विज्ञान को प्रकाशित करती है। उसी के माध्मम से जीवन का अंतिम लक्ष्य, अर्थात परम आनंद की प्राप्ति होती है। इसके साधन हैं बुद्धि और मन। इसकी रक्षा के लिए यहां प्रार्थना की जा रही है क्योंकि इसी से हम विवेक कर सकेंगे ,भाव कर सकेंगे ।
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