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Writer's pictureAnshul P

RV 1.31.13

Updated: Sep 23, 2020


ALWAYS BE CONTENTED, SATISFIED AND FULFILLED(सन्तुष्टि, पुष्टी और तुष्टी) AS PARMATMA IS PROTECTING YOU IN MENTAL AND PHYSICAL ASPECTS BOTH


Rig Ved 1.31.13


We always desire three things from Agnidev, they are Protection, Nourishment and Intelligence. From these three Yajman gets Satisfaction, Fulfilment and Contentment. Fulfilment denotes healthier body, Contentment means your inner thoughts are satisfied and Satisfaction denotes that you are complete in all senses. This was the Parmarthik overview. Now Practically thinking we can say that we can overcome the coming difficulties with Yagya and Worship.


त्वम॑ग्ने॒ यज्य॑वे पा॒युरंत॑रोऽनिषं॒गाय॑ चतुर॒क्ष इ॑ध्यसे ।

यो रा॒तह॑व्योऽवृ॒काय॒ धाय॑से की॒रेश्चि॒न्मंत्रं॒ मन॑सा व॒नोषि॒ तं ॥


Translation:-


त्वम् - You.


अग्ने - Agnidev.


यज्यवे - The one performing Yagya.


पायुः - Guardian.


अंतरः - Near.


अनिषंगाय - Away from demons.


चतुरक्षः - Sparkle from all four directions.


इध्यसे - Radiant.


यः - These Yajmans.


रातहव्यः - The given offering.


अवृकाय - Non violent.


धायसे - Nurture.


कीरेश्चित् - The one reciting strotras.


मंत्रम् - The mantras.


मनसा - From one's heart.


वनोषि - To ask.


तम् - Theirs.


Explanation :- This mantra is addressed to Agnidev. It says that you are the nurturer of Yajmans. Whichever Yajman offers you the best and nutritious Havi or offerings, you protect them very nicely. Whoever worships Agni dev, He listen to their stutis from heart.


Deep meaning:- We always desire three things from Agnidev, they are Protection, Nourishment and Intelligence. From these three Yajman gets Satisfaction, Fulfilment and Contentment. Fulfilment denotes healthier body, Contentment means your inner thoughts are satisfied and Satisfaction denotes that you are complete in all senses. This was the Parmarthik overview. Now Practically thinking we can say that we can overcome the coming difficulties with Yagya and Worship.



📸Credit-Nanday066gmail.com(Instagram)


#मराठी


ऋग्वेद १.३१.१३


त्वम॑ग्ने॒ यज्य॑वे पा॒युरंत॑रोऽनिषं॒गाय॑ चतुर॒क्ष इ॑ध्यसे ।

यो रा॒तह॑व्योऽवृ॒काय॒ धाय॑से की॒रेश्चि॒न्मंत्रं॒ मन॑सा व॒नोषि॒ तं ॥


भाषांतर:


त्वम् - आपण.


अग्ने - अग्निदेव!


यज्यवे - यज्ञ करणारे।


पायुः - पालक।


अंतरः - जवळ.


अनिषंगाय - राक्षसांने असंबद्ध.


चतुरक्षः - चारही दिशेने ज्वालायुक्त.


इध्यसे - प्रकाशित होणेृ


यः - हे यजमान.


रातहव्यः - दिलेला हवी.


अवृकाय - अहिंसक.


धायसे - पोषक.


कीरेश्चित् - स्त्वनकर्ता.


मंत्रम् - मंत्रानी.


मनसा - आपल्या ह्दयातून.


वनोषि - मागवून घेणे.


तम् - त्यांचेच.


भावार्थ:ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की अग्निदेव याजकांचे पोषक आहेत. जे यजमान त्यांना श्रेष्ठ आणि पोषक हवन प्रदान करतो,त्यांचे रक्षण ते चांगल्या प्रकारे करतात.जे त्यांची उपासना करतात त्याची स्तुति ते मनःपूर्वक स्वीकारत असतात.


गूढार्थ: इथे यजमान अग्निदेवांकडे तीन वस्तूंची कामना करतो,रक्षण, पोषण आणि बुध्दी.ह्या तीनही माध्यमाने सन्तुष्टि,पुष्टी आणि तुष्टी प्राप्त होइल. पुष्टी म्हणजे स्वास्थवर्धक,तुष्टि म्हणजे बुद्धी संतुष्ट ठेवणे आणि संतुष्टि म्हणजे मनाची पूर्तता. संरक्षण प्राप्त झाल्यावर यजमान बाह्य आणि आंतरिक रूपात आश्वस्त होतो,पोषण प्राप्ति नंतर स्वास्थ्य उत्तम राहणार आणि बुद्धी ने तुष्ट होउन मनात पूर्तता अनुभव करणार. हा परमार्थाचा अर्थ आहे.व्यवहारिक रूपाने आम्ही म्हणू शकतो की यज्ञ आणि उपासनाच्या मार्गानी तो येणारी कठीणता दूर करू शकतो.


#हिन्दी


ऋग्वेद १.३१.१३


त्वम॑ग्ने॒ यज्य॑वे पा॒युरंत॑रोऽनिषं॒गाय॑ चतुर॒क्ष इ॑ध्यसे ।

यो रा॒तह॑व्योऽवृ॒काय॒ धाय॑से की॒रेश्चि॒न्मंत्रं॒ मन॑सा व॒नोषि॒ तं ॥


अनुवाद:


त्वम् - आप।


अग्ने - अग्निदेव!


यज्यवे - यज्ञ करनेवाले।


पायुः - पालक।


अंतरः - पास में।


अनिषंगाय - राक्षसों से असंबद्ध।


चतुरक्षः - चारो दिशा से ज्वालायुक्त।


इध्यसे - प्रकाशित होते हैं।


यः - ये यजमान।


रातहव्यः - दिया गया हवि।


अवृकाय - अहिंसक।


धायसे - पोषक।


कीरेश्चित् - स्त्वनकर्ता।


मंत्रम् - मंत्रों को।


मनसा - अपने ह्दय से।


वनोषि - माँगना।


तम् - उसके ही।


भावार्थ:इस मंत्र में कहा गया है कि आप याजकाें के पोषण कर्ता हैं। जो भी यजमान आपको श्रेष्ठ और पोषक हवि देते हैं,आप उन सबकी भली प्रकार रक्षा करते हैं।आपकी उपासना जो भी करता है,आप उसकी स्तुति ह्दय से स्वीकार करते हैं।


गूढार्थ: यहां अग्निदेव से तीन चीजो की कामना करते हैं। रक्षण,पोषण और बुद्धि ।इनके माध्यम से यजमान को सन्तुष्टि, पुष्टि और तुष्टि प्राप्त होगी।पुष्टी का अर्थ हुअा स्वास्थ्यवर्धक,तुष्टि का मतलब हुआ बुद्धि संतुष्ट करना और संतुष्टि का मतलब हुआ मन की पूर्ति। रक्षा प्राप्त करने से यजमान आंतरिक और बाह्य रूप से आश्वस्त रहेगा,पोषण मिलता रहा तो स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। और बुद्धि से तुष्ट होकर वह अपने मन के भीतर पूर्ति को अनुभव करेगा. यह तो इसका परमार्थिक रूप है। व्यवहारिक रूप से यह का जा सकता है कि यज्ञ और उपासना के मार्ग से वह आगत कठिनाइयों से अपनी रक्षा कर सकता है।




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