INTELLIGENCE IS KNOWING AND REALISING YOURSELF
Rig ved 1.31.14
Here Agnidev is the Purohit of the devtas. He is requested to destroy our ignorance and darkness. He is also requested to enlighten us with our Sthool and Sukshma self that Aatma and Parmatma are one. He is also requested to enlighten us in our dreams and sleep by waking our inner light. He is requested to guide us on right path and make us wealthy with providing us Fame, Family, Worldly happiness. This body is made for a purpose and it consists of Panchmahabhoot. Agnidev is one of its component.
त्वम॑ग्न उरु॒शंसा॑य वा॒घते॑ स्पा॒र्हं यद्रेक्णः॑ पर॒मं व॒नोषि॒ तत् ।
आ॒ध्रस्य॑ चि॒त्प्रम॑तिरुच्यसे पि॒ता प्र पाकं॒ शास्सि॒ प्र दिशो॑ वि॒दुष्ट॑रः ॥
Translation :
अग्ने - Agnidev!
त्वम् - You.
उरूशंसाय - Praised by many.
वाघते - For the Priests.
यत् - So.
स्पार्हम - Coveted or preferable.
परमम् - Best.
रेक्णः - Wealth.
तत् - That.
वनोषि - To desire.
आध्रस्य चित्त - Desire to bring up.
प्रमतिः - Intelligent.
पिता - Parent.
उच्यसे - To make one say.
विदुष्टर - Unintelligent.
पाकम् - Child-like.
प्र शास्सि - In front.
दिशः - Directions.
Explanation : This mantra is addressed to Agnidev . It says that the Priests who are chanting strotras should be provided with Wealth. Agnidev is like a parent nurturing his weak child. He provides Knowledge to Unintelligent because he is very intelligent.
Deep meaning:- Here Agnidev is the Punohit of the devtas. He is requested to destroy our ignorance and darkness. He is also requested to enlighten us with our sthool and sukshma self that Aatma and Parmatma are one. He is also requested to enlighten us in our dreams and sleep by waking our inner light. He is requested to guide us on right path and make us wealthy with providing us Fame, Family, Worldly happiness. This body is made for a purpose and it consists of Panchmahabhoot. Agnidev is one of its component.
📸-Pankaj sir
#मराठी
ऋग्वेद १.३१.१४
त्वम॑ग्न उरु॒शंसा॑य वा॒घते॑ स्पा॒र्हं यद्रेक्णः॑ पर॒मं व॒नोषि॒ तत् ।
आ॒ध्रस्य॑ चि॒त्प्रम॑तिरुच्यसे पि॒ता प्र पाकं॒ शास्सि॒ प्र दिशो॑ वि॒दुष्ट॑रः ॥
अनुवाद:
अग्ने -अग्निदेव!
त्वम् - आपण।
उरूशंसाय - अनेकांद्वारे स्तवनीय।
वाघते -ऋत्विजांसाठी.
यत् - जे.
स्पार्हम - स्पृहणीय.
परमम् - उत्तम.
रेक्णः - धन.
तत् - ते.
वनोषि - पसंत करणे.
आध्रस्य चित्त - पाळणे योग्य.
प्रमतिः - बुध्दी मान.
पिता - पालक
उच्यसे - म्हणने.
विदुष्टर - अनभिज्ञ.
पाकम् - शिशु ने.
प्र शास्सि - समोर.
दिशः - दिशा
भावार्थ:इथे अग्निदेवांना यजमान म्हणत आहेत की आपण स्तुती करणार्या ऋत्विकास धन प्रदान करावा.आपण दुर्बळ अपत्यांचे पितासारख्या पोषण प्रदान करता. आपण बुद्धिमान असून अज्ञजनांना ज्ञान प्रदान करता.
गूढार्थ: इथे अग्निदेव देवतांचे पुरोहित आहेत.ते आमचे अज्ञान नष्ट करतात,अंधार नष्ट करतात. ते आम्हास स्थूल सूक्ष्माचे खरे स्वरूपाचे ज्ञान करून देतात,विराटाचे ज्ञान करवून देतात की आत्मा परमात्मा मध्ये काही अंतर नाहीं.त्यांना निवेदन आहे की स्वप्नावस्थेत त्यांनी आम्हाला तेजसचे ज्ञान,आणि सुषुप्तित पण ज्ञान प्रदान करावे.आम्हास उत्तम मार्ग दाखवावा, आम्हास यश,परिवार, संसारादि रूपी धन प्रदान करवावे.कार्य रूपी शरीर हे काही हेतुने ( कारणाने) निर्मित झाले असून पंचमहाभूतातून निर्मिलेल्या या शरीरात अग्निदेवांचाही स्थान आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.१४
त्वम॑ग्न उरु॒शंसा॑य वा॒घते॑ स्पा॒र्हं यद्रेक्णः॑ पर॒मं व॒नोषि॒ तत् ।
आ॒ध्रस्य॑ चि॒त्प्रम॑तिरुच्यसे पि॒ता प्र पाकं॒ शास्सि॒ प्र दिशो॑ वि॒दुष्ट॑रः ॥
अनुवाद:
अग्ने - अग्निदेव !
त्वम् - आप।
उरूशंसाय - अनेको द्वारा स्तवनीय।
वाघते - ऋत्विजों के लिए।
यत् - जो।
स्पार्हम - स्पृहणीय।
परमम् - उत्तम।
रेक्णः - धन।
तत् - वह।
वनोषि - चाहना।
आध्रस्य चित्त - हर तरह से पालने योग्य।
प्रमतिः - बुद्धिमान।
पिता - पालक।
उच्यसे - कहलाना।
विदुष्टर - अनभिज्ञ।
पाकम् - शिशु के।
प्र शास्सि - सामने।
दिशः - दिशाएँ ।
भावार्थ:इस मंत्र में अग्निदेव से कहा जा रहा है कि वे स्तुति करनेवाले ऋत्विक को धन प्रदान करते हैं।आप दुर्बलों को एक पिता की तरह पोषण प्रदान करते हैं। आप अनभिज्ञों को ज्ञान प्रदान करते हैं क्योंकि आप बहुत बुद्धिमान हैं।
गूढार्थ: यहां अग्निदेव देवताओ के पुरोहित हैं। वे हमारे अज्ञान को नष्ट करें,अंधकार दूर करें। हमारे स्वरूप को ज्ञान प्रदान कराएं,विराट का ज्ञान प्रदान करें की परमात्मा आत्मा में भेद नहीं है । हमारे स्वप्न में तेजस का ज्ञान प्रदान करें,सुषुप्ति में भी ज्ञान प्रदान करें। हमें अच्छे मार्ग पर ले चलें और हमें यश,परिवार,संसार आदि धन की पूर्ति कराएं।कार्य रूपी शरीर कारण से बना है। पंचमहाभूतासे बने शरीर में एक स्थान अग्निदेव का भी है।
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