PARMATMA IS PRAKASH SWAROOP, GYAN SWAROOP AND CHITTA SWAROOP.
Rig Ved 1.31.2
This mantra tells us the qualities of Agnidev. He is luminous and radiant. Wherever there is radiance there will be no darkness. Parmatma himself is Radiance incarnate. Actually all the Deities are a part of Parmatma. The quality of luminosity is to overcome darkness, and prepare heat or power. This is its real identity. Power means Consciousness which is Gyanswaroop and Chitta swaroop. We all are alive because of him.
त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रस्तमः क॒विर्दे॒वानां॒ परि॑ भूषसि व्र॒तं ।
वि॒भुर्विश्व॑स्मै॒ भुव॑नाय॒ मेधि॑रो द्विमा॒ता श॒युः क॑ति॒धा चि॑दा॒यवे॑ ॥
Translation:
अग्ने - Oh Agnidev "
विश्वस्मेै - All.
भुवनायः - For all in this World.
विभुः - In many forms.
मेधिरः - Intelligent.
द्विमाता - Two mothers or the creator of two worlds.
आयवे - For mankind.
कतिधाःचित्त - In many ways.
शयु- Residing.
त्वम् - You.
प्रथमः - First.
अंङ्गिरस्तमः -
कविः - The best Angira.
देवानाम् - Of other Deities.
व्रतम् - Of work.
परि - From all sides.
भूषसि - To decorate.
Explanation :This mantra is addressed to Agnidev. It says that he is the best Angira. He is the one who is the decoration in the rules of the Deities. He is spread all around. Since he was born out of two Aarni fire(two mothers) so he is very intelligent. As only welfare of mankind is in his mind he is all around.
Deep meaning: This mantra tells us the qualities of Agnidev. He is luminous and radiant. Wherever there is radiance there will be no darkness. Parmatma himself is Radiance incarnate. Actually all the Deities are a part of Parmatma. The quality of luminosity is to overcome darkness, and prepare heat or power. This is its real identity. Power means Consciousness which is Gyanswaroop and Chitta swaroop.We all are alive because of him.
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📸Credit-Sachin ji and Krishna.parmatma
#मराठी
ऋग्वेद १.३१.२
त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रस्तमः क॒विर्दे॒वानां॒ परि॑ भूषसि व्र॒तं ।
वि॒भुर्विश्व॑स्मै॒ भुव॑नाय॒ मेधि॑रो द्विमा॒ता श॒युः क॑ति॒धा चि॑दा॒यवे॑ ॥
भाषांतर :
अग्ने - हे अग्ने!
विश्वस्मेै - सर्व.
भुवनायः - समस्त संसाराचा.
विभुः - अनेक रूप युक्त.
मेधिरः - मेधावी.
द्विमाता - दोन मातांचा केंव्हा दोन लोकांच्या निर्माता.
आयवे - मनुष्या साठी.
कतिधाःचित्त - अनेक प्रकारांचे.
शयु- निवास करत असणे.
त्वम् - आपण.
प्रथमः - प्रअसणे.
अंङ्गिरस्तमः - श्रेष्ठतम अंगिरा.
कविः - मेधावी.
देवानाम् - अन्य देवांचे.
व्रतम् - कर्माला.
परि - चारही बाजू ने.
भूषसि - भूषित करणे.
भावार्थ:ह्या मंत्रात अग्निदेवांना संबोधित करत म्हटले आहे की ते अंगिरां मध्ये सर्वश्रेष्ठ आहेत. ते देवतांचे नियमांना सुशोभित करत आहेत.त्यांची व्याप्ती सर्वत्र आहे.ते दोन अरणी(दोन माता) मधून समुद्भूत असल्या मुळे बुद्धिमान आहेत.ते मनुष्यांचे हित चिंतक असल्या मुळे सर्वत्र व्याप्त आहेत.
गूढार्थ: ह्या मंत्रात अग्निदेवांची वैशिठ्य म्हटलेले आहेत.अग्निचा स्वरूप आहे प्रकाश. प्रकाशामध्ये अंधाराचा अभाव असतो. परमात्मांना प्रकाश म्हटलेले आहे म्हणजे ते प्रकाशस्वरूप आहेत. खरे म्हटले तर जितके देवतांचे वर्णन होत असतो ते परमात्माचे वर्णन अाहे.प्रकाशाचे गुण आहे अंधार किंव्हा काळोख मिटवणे. देवतांचे वर्णन म्हणजे परमात्माचेच वर्णन. अंधार मिटवून देण्याचे अतिरिक्त त्यांचामध्ये ज्वलनशील ऊर्जा पण आहे.ही खरी ओळख आहे.ती चैतन्य स्वरूप आहे आणि चित्त स्वरूप आहे.समस्त प्राणीलोक चे आश्रय आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.२
त्वम॑ग्ने प्रथ॒मो अंगि॑रस्तमः क॒विर्दे॒वानां॒ परि॑ भूषसि व्र॒तं ।
वि॒भुर्विश्व॑स्मै॒ भुव॑नाय॒ मेधि॑रो द्विमा॒ता श॒युः क॑ति॒धा चि॑दा॒यवे॑ ॥
अनुवाद:
अग्ने - हे अग्निदेव!
विश्वस्मेै - समग्र।
भुवनायः - संसार भर के लिए।
विभुः - अनेक रूपों वाला।
मेधिरः - मेधावी।
द्विमाता - दो माताएं अथवा दो लोको के निर्माता।
आयवे - मनुष्य के लिए।
कतिधाःचित्त - अनेक प्रकार से।
शयु- निवास करते हुए।
त्वम् - आप।
प्रथमः - पहले।
अंङ्गिरस्तमः - श्रेष्ठतम अंगिरा।
कविः - मेधावी।
देवानाम् - अन्य देवों के।
व्रतम् - कर्म को।
परि - सब तरफ से।
भूषसि - भूषित करते हैं।
भावार्थ:इस मंत्र में अग्निदेव को संबोधित करते हुए कहा गया है कि वे अंगिराओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। वे देवताओ के नियमों को सुशोभित करते हैं। उनकी व्याप्ति सर्वत्र हैं।वे दो अरणियों( दो माताओं)से समुद्भूत होने के कारण बुद्धिमान हैं। वे मनुष्यो का हित चाहते हैं इसलिए सर्वत्र विद्यमान रहते हैं।
गूढार्थ: इस मंत्र में अग्निदेव की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। अग्नि का स्वरूप है प्रकाश।प्रकाश में अंधकार का अभाव है। परमात्मा को भी प्रकाश कहा गया है,वे तो प्रकाशस्वरूप हैं।वास्तव मेंं जितने भी देवताओं का वर्णन होता है,वह परमात्मा का ही वर्णन है। प्रकाश का गुण अंधकार को दूर करना है साथ ही उसमें दाहकता भी है। वह ऊर्जा पैदा करती है,यही इसकी पहचान है।ऊर्जा मतलब चैतन्य स्वरूप वह ज्ञानस्वरूप और चित्तस्वरूप भी है। समस्त प्राणी उसी से जीवित हैं।
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