SOW THE SEEDS OF BHAKTI AND REAP THE SWEET FRUIT.
Rig Ved 1.31.4
Here a small history of Agnidev is mentioned. Just before starting any new project we try to define the finer nuances like its time and structure. Here it is projected through Pururava,how Indra helped him reap huge benefits. A Bhakt is attracted to the glory of Parmatma. Therefore we always sing the praises of Parmatma.
त्वम॑ग्ने॒ मन॑वे॒ द्याम॑वाशयः पुरू॒रव॑से सु॒कृते॑ सु॒कृत्त॑रः ।
श्वा॒त्रेण॒ यत्पि॒त्रोर्मुच्य॑से॒ पर्या त्वा॒ पूर्व॑मनय॒न्नाप॑रं॒ पुनः॑ ॥
Translation :
अग्ने - Oh Agnidev!
त्वम - You.
द्याम् - In Dhyulok.
मनवे - In each Manu.
अवाशयः - To say.
सुकृते - Those do seva.
पुरूरवसे - For Pururava.
सुकृत्तरः - Giving good results.
यत् - When.
पित्रोः - Between two logs of wood.
श्वात्रेण - With fast friction.
परि मुच्यसे - To create.
पूर्वम् - From east side.
आ - To create or establish.
पुनः - Afterwards.
अपरम् - From west side.
Explanation : This mantra describes the creation of Agni.The rishis say that Agni arrived in Dhyulok after Manu's persuasion.This gave excellent results to Pururava. Agnidev arrived when two log woods were rubbed vigorously with each other.The Priest established them first in the east,then they established them in the west.
Deep meaning:- Here a small history of Agnidev is mentioned. Just before starting any new project we try to define the finer nuances like its time and structure. Here it is projected through Pururava,how Indra helped him reap huge benefits. A Bhakt is attracted to the glory of Parmatma. Therefore we always sing the praises of Parmatma.
#मराठी
ऋग्वेद १.३१.४
त्वम॑ग्ने॒ मन॑वे॒ द्याम॑वाशयः पुरू॒रव॑से सु॒कृते॑ सु॒कृत्त॑रः ।
श्वा॒त्रेण॒ यत्पि॒त्रोर्मुच्य॑से॒ पर्या त्वा॒ पूर्व॑मनय॒न्नाप॑रं॒ पुनः॑ ॥
भाषांतर :
अग्ने - हे अग्ने!
त्वम - आपण.
द्याम् - द्युलोकात.
मनवे - प्रत्येक मनुचे.
अवाशयः - बोलणे.
सुकृते - आपली सेवा करणारे.
पुरूरवसे - पुरूरवा हेतु.
सुकृत्तरः - छान परिणाम देणारे.
यत् - जेंव्हा.
'
पित्रोः - दोन अरणींच्या.
श्वात्रेण - शीघ्र घर्षणाने.
परि मुच्यसे - उत्पन्न होणे.
पूर्वम् - पूर्व भागातला.
आ - स्थापित करणे.
पुनः - नंतर.
अपरम् - पश्चिम भागातला.
भावार्थ :ह्या मंत्रात अग्निदेवांचे वैशिठ्य सांगितले आहे.ऋषी सांगतात की अग्निदेव मनुचे अनुग्रहाने द्युलोकात उपस्थित झाले.त्यांची सेवा करणारा पुरूरवांना ह्याचे शुभ परिणाम पण मिळाले. अग्निदेव दोन अरणींच्या तेज घर्षणाने उत्पन्न झाले तेव्हा ऋत्विक लोकाने त्याना पूर्व भागात स्थापित केले,नंतर त्याना पश्चिम भागात स्थापित केले.
गूढार्थ: इथे संक्षेपात अग्निदेवांचा इतिहास सांगितलेला आहे.काहीही कार्यारंभाच्या अगोदर जशी देश आणि काळ शोधला जातो.इथे पुरूरवाच्या माध्यमातून हेच प्रयत्न केलेले आहे की कश्या रीती ने अग्नि ने पुरूरवास शुभ फळ मिळवून दिले.परमात्माची महिमे वर भक्त आकर्षित होतो.म्हणून तो परमात्म्याचे गुणगान करतो.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३१.४
त्वम॑ग्ने॒ मन॑वे॒ द्याम॑वाशयः पुरू॒रव॑से सु॒कृते॑ सु॒कृत्त॑रः ।
श्वा॒त्रेण॒ यत्पि॒त्रोर्मुच्य॑से॒ पर्या त्वा॒ पूर्व॑मनय॒न्नाप॑रं॒ पुनः॑ ॥
अनुवाद:
अग्ने - हे अग्ने!
त्वम - आप।
द्याम् - द्युलोक को।
मनवे - प्रत्येक मनु को।
अवाशयः - बोलना।
सुकृते - आपकी सेवा करनेवाले।
पुरूरवसे - पुरूरवा हेतु।
सुकृत्तरः - अच्छे परिणाम देनेवाले ।
यत् - जब।
पित्रोः - दोनो अरणियों के।
श्वात्रेण - शीघ्र घर्षण से।
परि मुच्यसे - उत्पन्न होना।
पूर्वम् - वेदी के पूर्व भाग में।
आ - स्थापित करना।
पुनः - बाद में।
अपरम् - पश्चिम हिस्से में।
भावार्थ : इस मंत्र में अग्निदेव की विशेषताओं के बारे में बताया गया है। ऋषि कहते हैं कि अग्निदेव प्रत्येक मनु के अनुग्रह करने पर ही द्युलोक में उपस्थित हुए ।उनकी सेवा करनेवाले पुरूरवा को उन्होने शुभ परिणाम दिये।अग्निदेव दो अरणियों के तेज घर्षण से उत्पन्न हुए, तब ऋत्विजों ने पहले उनको पूर्व भाग में स्थापित किया,बाद में उन्हे पश्चिम भाग में स्थापित किया।
गूढार्थ: यहां पर संक्षेप में अग्नि का इतिहास बताया जा रहा है। जैसे किसी कार्यारंभ से पूर्व उसकी भूमिका कही जाती है,देश और काल बताया जाता है। यहाँ पुरूरवा के माध्यम से यही प्रयत्न हुआ है,कि कैसे उन्होंने पुरूरवा को शुभ फल दिलवाया था। परमात्मा की महिमा से भक्त आकर्षित होता है। इसी लिए भगवान का गुणगान किया जाता है।
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