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Writer's pictureAnshul P

RV 1.31.5


TO ATTAIN TOTAL SATISFACTION, PUT AN END TO YOUR WISHES.



Rig Ved 1.31.5


It says that Agnidev is Parmatma swaroop only and has the ability to provide everything. He can fulfill all our wishes. But our wishes are endless. But then Parmatma too is Anant. From materialistic point of view we generally ask for health wealth and fame. But we also reach to a stage where we wish that these wishes have to stop. But our mind is running fast. For this we look upon Parmatma to grant us satisfaction. Parmatma is Satisfaction incarnate. He only can help us to overcome these wishes.



त्वम॑ग्ने वृष॒भः पु॑ष्टि॒वर्ध॑न॒ उद्य॑तस्रुचे भवसि श्र॒वाय्यः॑ ।

य आहु॑तिं॒ परि॒ वेदा॒ वष॑ट्कृति॒मेका॑यु॒रग्रे॒ विश॑ आ॒विवा॑ससि ॥


Translation :


अग्ने - Oh Agnidev!


त्वम - You.


वृषभः - The one who increases and fulfils your wishes.


पुष्टिवर्द्धनः - Supplier of Wealth in all forms.


उद्यत स्त्रुचे - Hand raised with Struchi vessel.


श्रवाय्यः - Worth listening.


भवसि - To be.


यः - Those.


षटकृतिम् - Hexagonal.


आहुतिम् - Of offerings.


परि वेद - All knowing.


एकायुः - Principal supplier of food grains.


अग्रे - First.


विशः - Subjects who follow.


आविवाससि - Illuminated from all sides.


Explanation :Oh Agnidev! You are the one who fulfills all the wishes of the devotees and increase their foodgrains stocks amply.The Yajman,with raised hand carrying Struchi vessel is reciting mantras which are worth listening and wishes to get your favour.He is also giving you the offerings in a hexagonal way.You help the Yajman to attain himself as a well established and prestigious place.


Deep meaning:- It says that Agnidev is Parmatma swaroop only and has the ability to provide everything. He can fulfill all our wishes. But our wishes are endless. But then Parmatma too is Anant. From materialistic point of view we generally ask for health wealth and fame. But we also reach to a stage where we wish that these wishes have to stop. But our mind is running fast. For this we look upon Parmatma to grant us satisfaction. Parmatma is Satisfaction incarnate. He only can help us to overcome these wishes.



📸Credit-Lordshiva_mahadev_shiva


#मराठी


ऋग्वेद १.३१.५


त्वम॑ग्ने वृष॒भः पु॑ष्टि॒वर्ध॑न॒ उद्य॑तस्रुचे भवसि श्र॒वाय्यः॑ ।

य आहु॑तिं॒ परि॒ वेदा॒ वष॑ट्कृति॒मेका॑यु॒रग्रे॒ विश॑ आ॒विवा॑ससि ॥


भाषांतर :


अग्ने - हे अग्ने!


त्वम - आपण.


वृषभः - कामनांची वृद्धी करणारे.


पुष्टिवर्द्धनः - धनधान्यात वृद्धी करणारे.


उद्यत स्त्रुचे - स्त्रुची पात्र हातात उचलून.


श्रवाय्यः - ऐकणे योग्य.


भवसि - होणे.


यः - जे


षटकृतिम् - षटकार.


आहुतिम् - आहुतींना.


परि वेद - सर्व ज्ञात होणे.


एकायुः - प्रमुख अन्नदाता.


अग्रे - प्रथम.


विशः - अनुकूल प्रजा.


आविवाससि - सर्व बाजूने प्रकाशित.


भावार्थ: हे अग्निदेव!आपण भक्तांच्या कामनांना पूर्ण करता त्यांचे धनधान्यात वाढ करता.यजमान आपल्या हातात स्त्रुची पात्र घेउन मंत्रांच्या द्वारे आपली स्तुती करत आपला अनुग्रह करत आहेत.ते सहा पटीने जास्त मंत्र म्हणून आहुती देत आहेत.आपण त्या याजकाला अग्रणी स्थान देउन प्रतिष्ठित करावे.


गूढार्थ: इथे सांगितलेला आहे की अग्निदेव हेच परमात्मा आहेत.ते सर्व वस्तू देण्यात समर्थ आहेत.समस्त कामनांची पूर्तता ईश्वर करू शकतात. पण आमची कामना अनंत असतात तर ईश्वर पण अनंत आहे.भौतिक दृष्टीने आमची कामना आमचे स्वास्थ्य, धन आणि वैभवांची होतात,परंतु एक असली पण स्थिती येते की मनुष्य ही मागणी करतो की ही कामना आता समाप्त करा.कारण आता त्याला पूर्ण संतुष्टि हवी.आमच्‍या मध्ये आत्मा संतुष्टि असली पाहिजे,पण मन धावत असतो.संतुष्ट तर परमात्माच असतो.तो स्वतः तृप्त आहे आणि तोच आम्हास पण तृप्ति प्रदान करू शकतो.आमची कामना समाप्त करू शकतो.


#हिन्दी

ऋग्वेद १.३१.५


त्वम॑ग्ने वृष॒भः पु॑ष्टि॒वर्ध॑न॒ उद्य॑तस्रुचे भवसि श्र॒वाय्यः॑ ।

य आहु॑तिं॒ परि॒ वेदा॒ वष॑ट्कृति॒मेका॑यु॒रग्रे॒ विश॑ आ॒विवा॑ससि ॥


अनुवाद:


अग्ने - हे अग्निदेव!


त्वम - आप।


वृषभः - कामनाओं की वृद्धि करनेवाले।


पुष्टिवर्द्धनः - धन धान्य से परिपूर्ण करना।


उद्यत स्त्रुचे - स्त्रुची पात्र उठाए हुए।


श्रवाय्यः - सुनने योग्य।


भवसि - होना।


यः - जो।


षटकृतिम् - षटकार।


आहुतिम् - आहुति को।


परि वेद - सब ज्ञात होना।

'

एकायुः - प्रमुख अन्नदाता।


अग्रे - प्रथम।


विशः - अनुकूल प्रजा।


आविवाससि - सब ओर से प्रकाशित।


भावार्थ:

हे अग्निदेव! आप भक्तों की कामनाओं को पूरा करते हो,उनके धन धान्य मे वृद्धि करने वाले हो। यजमान ने हाथ में स्त्रुची नामक हवन पात्र लिया है और आपका मंत्रों द्वारा अनुग्रह कर रहा है,वे अत्यंत श्रवणीय हैं। वह षटकार युक्त आहुति देता है। आप उस याजक को अग्रणी पुरूष के रूप में प्रतिष्ठित करें।


गूढार्थ,: यहां बताया गया है कि अग्निदेव ही परमात्मा हैं और वे सब कुछ देने के लिए समर्थ हैं। समस्त कामनाओं की पूर्ति ईश्वर कर सकते हैं। पर हमारी अनंत कामनाएँ हैं, ईश्वर भी अनंत है। भौतिक दृष्टी से हमारी कामनाएँ हमारे स्वास्थ्य, धन और वैभव हो सकते हैं,परन्तु ऐसे बिन्दु पर मनुष्य ये भी मांगता है कि हमारा इन सबके प्रति माँगना ही बंद हो जाए।इससे संतुष्टि मिलती है। संतुष्ट रहने के लिए सर्वदा आत्म संतुष्टि रहनी चाहिए। हमारा समाहित चित्त नहीं है,मन भागता है।संतुष्ट तो केवल परमात्मा है। वह अपने आप में ही तृप्त है,वह हमको तृप्ति प्रदान कर सकता है। हमारी कामनाओं को समाप्त कर सकता है।

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