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Writer's pictureAnshul P

RV 1.32.12

Updated: Oct 10, 2020


BRAHMAND IS WITHIN YOU, GLIMPSE PARMATMA WITHIN YOU.


Rig ved 1.32.12


Here seven rivers denote the Saptlok. Its wide spread comprises the seven streams which are Bhulok, Satya lok, Swarg lok etc. When this illuminates we are able to experience the Superior Being. Again this also take into account the seven loks situatrd below Prithvi like Tal, Atal, Vital, Sutal, Paataal etc. So after they come in our real experience, We are actual witness to the Supreme Consciousness. In your awareness you see the wide Swarup, In your sleep you experience you experience his Praag and you know yourself as well as Ishwar. In your swapna you experience his Tejas then his Brahma, Then this world and ultimately the Supreme being. These are the seven streams which comprise your inner and outer self along with seven Dhattu's within. If these get purified then all seven streams get purified.


अश्व्यो॒ वारो॑ अभव॒स्तदिं॑द्र सृ॒के यत्त्वा॑ प्र॒त्यह॑न्दे॒व एकः॑ ।

अज॑यो॒ गा अज॑यः शूर॒ सोम॒मवा॑सृजः॒ सर्त॑वे स॒प्त सिंधू॑न्


Translation :


इन्द्र - Indradev!


यत् त्वा - Yours.


सृके - On vajra.


प्रत्यहन् - To fight back.


तत् - Then.


एकःदेवः - Amazing Devta.


अश्व्य - For horse.


वारः - Hair.


अभवः - To complete.


गाः - Cow.


अजयः - Victorious.


शूर - Brave.Gov


सोमम् - Of Som.


सप्त सिन्धून् - Of seven rivers.


सर्तवे - In order to flow.


अव असृजः - To free downwards.


Explanation : This mantra says that Vajra expertly tried to quell the strikes of Indra. Just as the horse,by flicking his tails frightens thr flies on his body by shaking its tail similarly Vritra went on attacking without turning back. But Oh Indradev ! You won the cows and Somras and released the water of seven rivers stopped by Vritra.


Deep meaning: Here seven rivers denote the Saptlok. Its wide spread comprises the seven streams which are Bhulok, Satya lok, Swarg lok etc. When this illuminates we are able to experience the Superior Being. Again this also take into account the seven loks situatrd below Prithvi like Tal, Atal, Vital, Sutal, Paataal etc. So after they come in our real experience, We are actual witness to the Supreme Consciousness. In your awareness you see the wide Swarup, In your sleep you experience you experience his Praag and you know yourself as well as Ishwar. In your swapna you experience his Tejas then his Brahma, Then this world and ultimately the Supreme being. These are the seven streams which comprise your inner and outer self along with seven Dhattu's within. If these get purified then all seven streams get purified.



📸Credit-Kamlesh Pradhan sir



#मराठी


ऋग्वेद१.३२.१२


अश्व्यो॒ वारो॑ अभव॒स्तदिं॑द्र सृ॒के यत्त्वा॑ प्र॒त्यह॑न्दे॒व एकः॑ ।

अज॑यो॒ गा अज॑यः शूर॒ सोम॒मवा॑सृजः॒ सर्त॑वे स॒प्त सिंधू॑न्


भाषांतर:


इन्द्र - इन्द्रदेव.


यत् त्वा - जेंव्हा आपले.


सृके - वज्रावर.


प्रत्यहन् - परत प्रहार करणे.


तत् - तेंव्हा.


एकःदेवः - अद्वितीय देव.


अश्व्य - अश्वावर.


वारः - केस.


अभवः - होउन जाणे.


गाः - गाई.


अजयः - जिंकलेले.


शूर - शौर्य युक्त.


सोमम् - सोमाचा.


सप्त सिन्धून् - सात नदींचे.


सर्तवे - प्रवाहित होण्यासाठी.


अव असृजः - मुक्त करणे.


भावार्थ:ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की वज्राचे प्रहाराला वृत्राने कुशलतेने रोखण्याचे प्रयत्न केले. ज्या प्रमाणे एक अश्व आपली शेपटी हलवून अंगावर बसलेल्या माश्याना पळवते त्याच प्रमाणे तो विना विचलित वृत्राने स्वतःला वाचवले. हे इन्द्रदेव ! आपण सोम आणि गाईंना जिंकून वृत्रासुर द्वारे अवरूद्ध सप्त नदी ज्या मधे गंगाचा पण समावेश आहे, ते पुनः आपला जल प्रवाहित करू शकल्या.


गूढार्थ: इथे सप्त नदींचे तात्पर्य आहे सप्तलोक. संपूर्ण शरीर,ज्याचा मधे व्यष्ठि आणि समष्ठि दोघांना मिळवून हे म्हणता येतो की परमात्मा सर्वव्यापक आहे. व्यापक होण्याचा नाती ह्याची सात धारा भूलोकात, अंतरिक्षात, आकाशात, वायुवर, अग्निमधे, पाण्यात आणि पृथ्वीवर प्रकाशित असतात.ह्याने संपूर्ण विराट प्रकाशित होउन उपलब्ध होतो.ह्या उपलब्धतेने समस्त ब्रह्मांड मध्ये व्याप्त चेतन तत्व प्रकाशित होतो. विराट मधे तल, वितल, सुतल पाताळ इत्यादिंचा समावेश आहे.जाग्रत मधे विराट, सुषुप्ति मधे प्राग, प्रागाचे अभिमानी 'मी',ते ईश्वर आहे.त्याच प्रमाणे स्वप्नाचे अभिमानी तेजसचा अभिमानी ब्रह्मा जाग्रतचा अभिमानी विश्व आणि विश्वाचे अभिमानी विराट.हे सप्त धारा आहेत. ह्या सात धारांना व्यष्ठित घेतल्यावर, आमच्या शरीरात पण सात धातू आहेत.ह्या सात धातूंचे शोधनचे नाव सप्त धारा आहे.


#हिन्दी


ऋग्वेद१.३२.१२


अश्व्यो॒ वारो॑ अभव॒स्तदिं॑द्र सृ॒के यत्त्वा॑ प्र॒त्यह॑न्दे॒व एकः॑ ।

अज॑यो॒ गा अज॑यः शूर॒ सोम॒मवा॑सृजः॒ सर्त॑वे स॒प्त सिंधू॑न्



अनुवाद:-


इन्द्र - हे इन्द्र!


यत् त्वा - जब आपके।


सृके - वज्र पर।


प्रत्यहन् - पलट कर प्रहार करना।


तत् - तब।


एकःदेवः - अद्वितीय देव।


अश्व्य - घोडे को।


वारः - बाल।


अभवः - हो जाना।


गाः - गाय।


अजयः - जीता।


शूर - शौर्य युक्त।


सोमम् - सोम को।


सप्त सिन्धून् - सात नदियों को।


सर्तवे - प्रवाहित होने के लिए।


अव असृजः - नीचे की ओर मुक्त करना।


भावार्थ:इस मंत्र में कहा गया है कि इन्द्र के वज्र प्रहार को वृत्रासुर ने बडी कुशलता से रोकने का प्रयत्न किया।परंतु जिस तरह घोडा पास मे आयी मक्खियों को पूँछ हिलाकर उडा देता है उसी प्रकार बिना विचलित हुए उसे भी दूर कर दिया। हे इन्द्रदेव! आपने सोम और गौओं को जीतकर वत्र द्वारा अवरूद्ध सप्त नदियाँ जिनमे गंगा आदि हैं आपने जल को पुनः प्रवाहित कर पायीं।


गूढार्थ: इसमें सातों सरिताओं से तात्पर्य है सप्तलोक से।संपूर्ण शरीर जिसमें व्यष्ठि और समष्टि दोनों आते हैं, वहां पर परमात्मा सर्वव्यापक है। व्यापक होने के नाते इसकी सातों धाराएँ जिसमे भूलोक,सत्य लोक, स्वर्ग लोक, आदि इन सातों लोक को प्रकाशित करने से संपूर्ण विराट शरीर प्रकाशित हो गया या वह उपलब्ध हो जाता है।उपलब्ध कराने से समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त चेतन तत्व भी प्रकाशित होता है। विराट मे तल , अतल,सुतल, पाताल, तलातल आदि भी आते हैं।जैसे ही यह विराट प्रकाशित होता है, वह विराट हमारे अनुभव में आ जाता है। जाग्रत में विराट, सुषुप्ति में प्राग, स्वप्न में तेजस. सुषुप्ति का अभिमानी प्राग, प्राग का अभिमानी मैं जो है वह ईश्वर है।उसी प्रकार स्वप्न का अभिमानी तेजस, तेजस का अभिमानी ब्रह्म,जाग्रत का अभिमानी विश्व और विश्व का विराट।यही सात धाराएँ हैं। इन सात धाराओं को व्यष्ठि में लिया तो हमारे भीतर सात धातुएँ हैं,इन सात धातुओं के शोधन का ही नाम हो गया सप्त धारा।



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