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Writer's pictureAnshul P

RV 1.32.13

Updated: Oct 23, 2020


ONCE YOUR INNER KNOWLEDGE HAS AWAKENED NOTHING CAN DISTRACT YOU.


Rig Ved 1.32.13


The Spiritual meaning of this mantra is that when your inner Knowledge is awakened then no worldly invasion can have any effect on you. Your five senses(ज्ञानेंद्रिय) and their five vices dont distract you. This shows that your inner Knowledge is truly empowered. Your good sense has prevailed. Therefore you can never be distracted and this prevents your degradation. You will win over all your worries.


नास्मै॑ वि॒द्युन्न त॑न्य॒तुः सि॑षेध॒ न यां मिह॒मकि॑रद्ध्रा॒दुनिं॑ च ।

इंद्र॑श्च॒ यद्यु॑यु॒धाते॒ अहि॑श्चो॒ताप॒रीभ्यो॑ म॒घवा॒ वि जि॑ग्ये ॥


Translation :


अस्मै - This.


न विद्युत - Without thunder.


न तन्यतु - Without noisy clouds.


सिषेध् - Unsuccessful.


याम् मिहम् - Of rainfall.


अकिरत् - Projected.


ह्रदुनिम् च - Of Vajra.


इन्द्रःच - And Indra.


यत् - That time.


युयुधाते - Together.


अहिः - Vritra.


उत् - Which.


अपरीभ्यः - Others too.


मघवा - Wealthy Indra.


वि जिग्ये - Especially.


Explanation:- This mantra says that Vritra used all the tactics to defeat Indradev by using lightening, loud roaring of Clouds and ice rain in this frightening war. But he was always unsuccessful. All his use of deadly weapons proved fruitless. He could not defeat Indra. The Asur tried all the methods of execution but failed.


Deep meaning: The Spiritual meaning of this mantra is that when your inner Knowledge is awakened then no worldly invasion can have any effect on you. Your five senses(ज्ञानेंद्रिय ) and their five vices dont distract you. This shows that your inner Knowledge is truly empowered. Your good sense has prevailed. Therefore you can never be distracted and this prevents your degradation. You will win over all your worries.



📸Credit-Kamlesh Pradhan ji


#मराठी


ऋग्वेद १.३२.१३


नास्मै॑ वि॒द्युन्न त॑न्य॒तुः सि॑षेध॒ न यां मिह॒मकि॑रद्ध्रा॒दुनिं॑ च ।

इंद्र॑श्च॒ यद्यु॑यु॒धाते॒ अहि॑श्चो॒ताप॒रीभ्यो॑ म॒घवा॒ वि जि॑ग्ये ॥


भाषांतर :-


अस्मै - ह्या.


न विद्युत - विना वीज.


न तन्यतु - विना मेघांची गर्जना.


सिषेध् - निष्फळ.


याम् मिहम् - ज्या पाउसाने.


अकिरत् - प्रक्षिप्त करणे.


ह्रदुनिम् च - वज्राचे.


इन्द्रःच - इन्द्रा आणि.


यत् - ज्या वेळी.


युयुधाते - दोघे बरोबर.


अहिः - वृत्र.


उत् - ज्या.


अपरीभ्यः - अन्य.


मघवा - धनवान इन्द्र.


वि जिग्ये - विशेष रूपात.


भावार्थ:ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की वृत्राने ह्या भीषण युद्धात कधी ढगांचा गडगडाट,,कधी मेघांचा थयथयाात, तर कधी हिम वर्षाव करून इन्द्रांला पराभूत करण्याचे प्रयाेग केले, पण असफल राहिला. त्याचे समस्त घातक प्रयोग निष्फळ ठरले. इन्द्रदेवने असुरांचे प्रयास निरस्त केले. ते इन्द्रांचे विजय थांबवू शकले नाहीत.


गूढार्थ: ह्याचे आध्यात्मिक अर्थ आहे की जेंव्हा विवेक जागृत होते तेंव्हा कोण्त्याही प्रकाराचे सांसारिक आक्रमणांचा प्रभाव आपल्यावर होणार नाही.आमचे पाच ज्ञानेंद्रियेमधे पाच विषयां मधून मन विचलित होणे अशक्य आहे., ते विकृत पण होणार नाही. कारण विवेक जागृत झाले आहे आणि सद्बुद्धि प्राप्त झालेली आहे.मन विचलित नसणार आणि पतन पण अशक्य आहे.प्रत्येक मुश्किलानी वाचलेले आहोत.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३२.१३


नास्मै॑ वि॒द्युन्न त॑न्य॒तुः सि॑षेध॒ न यां मिह॒मकि॑रद्ध्रा॒दुनिं॑ च ।

इंद्र॑श्च॒ यद्यु॑यु॒धाते॒ अहि॑श्चो॒ताप॒रीभ्यो॑ म॒घवा॒ वि जि॑ग्ये ॥


अनुवाद:-


अस्मै - इस।


न विद्युत - न तो बिजली।


न तन्यतु - न मेघ गर्जन।


सिषेध् - असफल।


याम् मिहम् - जिस जल वर्षा को।


अकिरत् - प्रक्षिप्त किया।


ह्रदुनिम् च - वज्र को।


इन्द्रःच - इन्द्र और।


यत् - जिस समय।


युयुधाते - साथ में दोनों।


अहिः - वृत्र।


उत् - जिस।


अपरीभ्यः - दूसरी भी।


मघवा - धनवान इन्द्र।


वि जिग्ये - विशेष रूप से।


भावार्थ:इस मंत्र में बताया गया है कि वृत्र इस भीषण युद्ध में कभी विद्युत का तो कभी भयावह मेघ गर्जन का तो कभी हिम वर्षा का प्रयोग इन्द्रदेव को परास्त करने के लिये प्रयुक्त कर रहा था,पर सफल न हो सका।उसके समस्त घातक प्रयोग व्यर्थ ही नष्ट हो गए। इन्द्रदेव ने असुरों के सारे प्रयोग निष्फल किये। वह इन्द्र की विजय को रोक नहीं पाये।


गूढार्थ: इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि जब विवेक जागृत हो जाता है तो किसी भी प्रकार के सांसारिक आक्रमणोंका, की जैसे कि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ के पांच विषय हैं, तब किसी भी प्रकार के विषय से मन की विचलित नहीं होता विकृत न होता है। यह दर्शाता है कि उसमे विवेक जागृत हो गया। उसे सद्बुद्धि प्राप्त हो गई इसलिए अब मन विचलित नहीं होगा।इससे इसका पतन नहीं होगा।वह हर तरह की मुश्किल से बच जाएगा।




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