STAY IN THE SHELTER OF PARMATMA TO GET RID OF BIRTH DEATH CYCLE.
Rig Ved 1.32.14
When there is a forceful flow then no outer vice can have any effect on you nor can it distract you. That time your inner vices like lust, anger, pride, love etc try to distract. But your inner knowledge and the benevolence,mercy and compassion of Parmatma doesn't allow this. Jeev has chosen Parmatma and has taken his shelter. Then nothing can affect him. He is safe from outer influences. For example Hiranyakashyap tried to destroy Prahlad in many ways but was unsuccessful. Similarly we can say that for Indra and Vritrasur. No one can stand before the power of Parmatma. No Maya can stand before Mayapati,the Swami. When the jeev is in the clutches of Maya, then he is defeated. He falls prey to the vicious cycle of birth and death. This is called Bhavsagar bandhan. But when this jeev is in Parmatma's shelter then he has no reason for him to be afraid.
अहे॑र्या॒तारं॒ कम॑पश्य इंद्र हृ॒दि यत्ते॑ ज॒घ्नुषो॒ भीरग॑च्छत् ।
नव॑ च॒ यन्न॑व॒तिं च॒ स्रवं॑तीः श्ये॒नो न भी॒तो अत॑रो॒ रजां॑सि ॥
Translation :
अहेः - Who.
यातारम् - The Killer.
कम् - Who.
अपश्यः - To see.
इन्द्र - Indradev!
ह्रदी - In your mind.
यत् - if.
ते - Yours.
जघ्नुषः - While killing Vritrasur.
भीः - Fear.
अगच्छत् - Has arrived.
नव च नवातिम् च - Ninty nine
स्त्रवंतिः - Flowing rivers.
श्येनःन - Like eagle.
भीतः - Fear.
अंतरः - To cross.
रजांसि - In water.
Explanation: This mantra says that Indra is fearless. If he had been fearful who else would have done this difficult job.No one can do this job besides Indra. He is so strong that just in a short time he could cross the Ninty nine flowing rivers like an eagle.
Deep meaning:- When there is a forceful flow then no outer vice can have any effect on you nor can it distract you. That time your inner vices like lust, anger, pride, love etc try to distract. But your inner knowledge and the benevolence,mercy and compassion of Parmatma doesn't allow this. Jeev has chosen Parmatma and has taken his shelter. Then nothing can affect him. He is safe from outer influences. For example Hiranyakashyap tried to destroy Prahlad in many ways but was unsuccessful. Similarly we can say that for Indra and Vritrasur. No one can stand before the power of Parmatma. No Maya can stand before Mayapati,the Swami. When the jeev is in the clutches of Maya, then he is defeated. He falls prey to the vicious cycle of birth and death. This is called Bhavsagar bandhan. But when this jeev is in Parmatma's shelter then he has no reason for him to be afraid.
📸Credit-Sakshi mam
#मराठी
ऋग्वेद १.३२.१४
अहे॑र्या॒तारं॒ कम॑पश्य इंद्र हृ॒दि यत्ते॑ ज॒घ्नुषो॒ भीरग॑च्छत् ।
नव॑ च॒ यन्न॑व॒तिं च॒ स्रवं॑तीः श्ये॒नो न भी॒तो अत॑रो॒ रजां॑सि ॥
भाषांतर :
अहेः - कोणी.
यातारम् - हन्ता ने.
कम् - कोण.
अपस्यः - बघने.
इन्द्र - इन्द्र!
ह्रदी - मनात.
यत् - जर.
ते - आपले.
जघ्नुषः - वृत्राला मारताना.
भीः - भय.
अगच्छत् - आलेला.
नव च नवातिम् च - नव्यान्नव.
स्त्रवंतिः - प्रवाहमान नद्या.
श्येनः - गरूडा सारखे.
भीतः - भयभीत.
अतरः - पार पाडणे.
रजांसि - पाण्यात.
भावार्थ ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की इन्द्र हा निर्भय आहे.जर भयभीत होणार तर असे कोणते वीर व्यक्तिस हा दुष्कर कार्य देणार? कारण त्यांचे व्यतिरिक्त अजून कोणी ही नाही. ते इतके बळवंत आहेत की बघता बघता ते नव्यावन्नव जल प्रवाहांना गरूड पक्षी सारखे ओलांडून गेले.
गूढार्थ: जेंव्हा प्रवाह प्रचंड असतो तेंव्हा बाह्य विकार भक्ताला विचलित करू शकणार नाही पण तेंव्हा आंतरिक विकार त्याला विचलित करण्याचा प्रयत्न करणार. जसे काम, क्रोध, मद, मोह मत्सर हे विकार. पण विवेक प्राप्त झाल्यावर आणि परमात्मेची कृपा ,करूणा आणि अनुग्रह असल्यावर, स्वतःस परमात्याला समर्पित केल्यावर कोणत्याही प्रकाराचे विकार त्याला विचलित करणार नाही.तो बाह्य विकारापासून सुरक्षित आहे.उदाहरणात हिरण्यकश्यप ने प्रह्लादाला मारण्याचे अनेक प्रयत्न केले पण तो सुरक्षित राहिला. हीच स्थिति वृत्रासुरची आहे.परमात्म्याच्या शक्ति समोर कोणतीही मायावी शक्ति व्यर्थ असते.परमात्मा मायापति आहेत,त्याचे स्वामी आहेत.जेंव्हा जीव मायाचे अधीन असतो तेंव्हा तो परास्त होउन जातो. तो जन्म मरणाच्या चक्रात पडतो. हेच भवसागरचे बंधन आहे. जेंव्हा जीव परमात्म्याच्या चरणी शरण जातो तेंव्हा तो अभय होउन जातो.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३२.१४
अहे॑र्या॒तारं॒ कम॑पश्य इंद्र हृ॒दि यत्ते॑ ज॒घ्नुषो॒ भीरग॑च्छत् ।
नव॑ च॒ यन्न॑व॒तिं च॒ स्रवं॑तीः श्ये॒नो न भी॒तो अत॑रो॒ रजां॑सि ॥
अनुवाद:
अहेः - किसने।
यातारम् - हन्ता को।
कम् - किसने।
अपश्यः - देखना।
इन्द्र - इन्द्रदेव!
ह्रदी - मन में।
यत् - यदि।
ते - आपके।
जघ्नुषः - वृत्र को मारते समय।
भीः - भय।
अगच्छत् - आया हुआ।
नव च नवातिं च - निन्यानबे।
स्त्रवंतिः - बहनेवाली नदियों के।
श्येनःन - बाज पक्षी की तरह।
भीतः - डर जाना।
अतरः - पार करना।
रजांसि - जल को।
भावार्थ:
इस मंत्र में कहा गया है कि इन्द्र निडर हैं। यदि भयभीत होते तो ऎसे किस वीर को यह दुष्कर कार्य देते?क्योंकि यह कार्य इन्द्र के अलावा कोई नहीं कर सकता है। वे इतने बलवान हैं कि देखते देखते निन्यांवे जल प्रवाहों को बाज की तरह तेजी से पार कर गये।
गूढार्थ: जब प्रचंड प्रवाह होता है तब बाहर के विकार तो उसको विचलित नहीं कर सकते तब आंतरिक विकार उसे विचलित करने का प्रयत्न करेंगे। ये विकार जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर हैं। पर विवेक प्राप्त होने पर उसपर परमात्मा की कृपा है, करूणा है, आत्मा का अनुग्रह है।जीव परमात्मा के व्रत का वरण कर चुका, वह पूर्ण रूप से स्वयं को परमात्मा को समर्पित कर चुका।तब किसी प्रकार के विकार उसे विचलित नहीं कर सकते हैं, बाह्य विकारों से सुरक्षित है।.उदाहरणार्थ हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का प्रयत्न किया,पर कोई बाल बाँका नहीं हुआ।यह हाल यहां वृत्रासुर और देवराज इन्द्र का है। परमात्मा की शक्ति के आगे किसी भी मायावी की कोई शक्ति नहीं चल सकती। परमात्मा तो मायापति,उसके स्वामी हैं।लेकिन जीव जब माया के अधीन हो जाता है तब वह परास्त हो जाता है। तब वह जन्म मरण के चक्र में पड जाता है और इसीकी नाम भवसागर का बंधन है। जब जीव परमात्मा के शरण का वरण कर ले जाता है तब वह अभय हो जाता है।
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