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Writer's pictureAnshul P

RV 1.32.2

Updated: Sep 30, 2020


TRUE KNOWLEDGE IS ACHIEVED BY CLEANSING YOUR THOUGHTS AND MIND.


Rig ved 1.32.2


Here we take the meaning of Clouds same as genial or saintly. The clouds remove the saltiness of ocean water and make it sweet. Vajra denotes mountainous region where it rains heavily, which is the origin point of all rivers. The rivers flow and carry away the garbage. Through evaporation they again become cloud. This stands for purity of thought and deed along with senses. This brings divinity in life when our mind and senses are cleansed and become pure. This is the ultimate Knowledge.


अह॒न्नहिं॒ पर्व॑ते शिश्रिया॒णं त्वष्टा॑स्मै॒ वज्रं॑ स्व॒र्यं॑ ततक्ष ।

वा॒श्रा इ॑व धे॒नवः॒ स्यंद॑माना॒ अंजः॑ समु॒द्रमव॑ जग्मु॒रापः॑ ॥


Translation :


अहन् - To kill.


अहिम् - Of Clouds.


पर्वते - On the mountain.


शिश्रीयाणम् - To take shelter.


त्वष्टा - Vishwakarma.


अस्मै - For this.


वज्रम् - Of Vajra.


स्वर्यम् - Singing in good words.


ततक्ष - To build.


वाश्राः - Bellows.


धेनवःइव - Like cows.


स्यंदमाना - Flowing.


अंजः - In all respects.


समुद्रमः - Towards Ocean.


अव जग्मुः - Going downwards.


अापः - Water waves.


Explanation : This mantra

says that Twashta Dev has made such a Vajra that works on the sound of pronounced words for Indra,which he uses to break the clouds for water to rain. The clouds make the sound of bellowing of cows and travel towards Ocean.


Deep meaning:- Here we take the meaning of Clouds same as genial or saintly. The clouds remove the saltiness of ocean water and make it sweet. Vajra denotes mountainous region where it rains heavily, which is the origin point of all rivers. The rivers flow and carry away the garbage. Through evaporation they again become cloud. This stands for purity of thought and deed along with senses. This brings divinity in life when our mind and senses are cleansed and become pure. This is the ultimate Knowledge.


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📸Credit-annu_gods


#मराठी


ऋग्वेद १.३२.२


अह॒न्नहिं॒ पर्व॑ते शिश्रिया॒णं त्वष्टा॑स्मै॒ वज्रं॑ स्व॒र्यं॑ ततक्ष ।

वा॒श्रा इ॑व धे॒नवः॒ स्यंद॑माना॒ अंजः॑ समु॒द्रमव॑ जग्मु॒रापः॑ ॥


भाषांतर :


अहन् - वध करणे.


अहिम् - मेघांचे.


पर्वते - पर्वतात.


शिश्रीयाणम् - आश्रय घेणारे.


त्वष्टा - विश्वकर्मा.


अस्मै - ह्या साठी.


वज्रम् - वज्राचे.


स्वर्यम् - सुंदर शब्दात स्तुति.


ततक्ष - निर्माण करणे.


वाश्राः - हंबरडणे.


धेनवःइव - गाई सारखे.


स्यंदमानाः - प्रवाहमान.


अंजः - सर्व प्रकारे.


समुद्रमः - समुद्रात.


अव जग्मुः - खाली वाहणे.


अापः - जलधारा.


भावार्थ:ह्या मंत्रात म्हटले आहे की, त्वष्टादेवांनी असे वज्र निर्माण केले आहे,जे इन्द्राच्या एका शब्दाच्या उच्चारणाने मेघांना फोडून पाउस पाडते आणि गाईंच्या जोरात ओरडण्यासारखा आवाज करित समुद्राकडे वाहू लागतो.


गूढार्थ: इथे सज्जनता आणि संतभावचे जे तात्पर्य आहे मेघांना त्याच दृष्टिकोणाने पाहिले आहे. समुद्रातील पाण्याचे खारटपणा काढून मेघ त्या पाण्याला शुद्ध करून गोड करतात.वज्राचा अर्थ पर्वत प्रदेश घेतले जाइल जिथे अधिक वर्षाव होतो,जिथे नद्यांचे उद्गम स्थल असतो.नदी सर्व घाण वाहून समुद्राकडे वाहत असते.पुनः पाण्याची वाफ होउन मेघ बनून वर्षाव करून तो पाणी शुध्द होउन पडतो,तसेच इथे कर्माची शुद्धी, भाव व विचार आणि त्यांच्या प्रयोजनाची शुद्धी होते.हे जीवनात दिव्य भाव आणतो. जेंव्हा समस्त इन्द्रियांचे,चित्ताचे आणि मनाचे शुद्धीकरण होये तेंव्हा खरे ज्ञान प्राप्त होते.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३२.२


अह॒न्नहिं॒ पर्व॑ते शिश्रिया॒णं त्वष्टा॑स्मै॒ वज्रं॑ स्व॒र्यं॑ ततक्ष ।

वा॒श्रा इ॑व धे॒नवः॒ स्यंद॑माना॒ अंजः॑ समु॒द्रमव॑ जग्मु॒रापः॑ ॥


अनुवाद:


अहन् - वध करना।


अहिम् - बादलों का।


पर्वते - पर्वत पर।


शिश्रीयाणम् - आश्रय लेना।


त्वष्टा - विश्वकर्मा।


अस्मै - इसके लिए।


वज्रम् - वज्र का।


स्वर्यम् - अच्छे शब्दों की स्तुति।


ततक्ष - निर्माण करना।


वाश्राः - रंभाना।


धेनवःइव - गाय जैसे।


स्यंदमानाः - प्रवाहमान।


अंजः - सभी तरह से।


समुद्रमः - समुद्र की ओर।


अव जग्मुः - नीचे जानेवाले ।


अापः - जलधारा ।


भावार्थ: इस मंत्र में कहा गया है कि इन्द्रदेव के लिए त्वष्टा देव ने शब्द से चलनेवाले वज्र का निर्माण किया है जिसके उपयोग से इन्द्र ने बादलों को छिन्न भिन्न करके जल की वर्षा करायी है। गौअें जिस प्रकार रम्भाती हैं, उसी प्रकार मेघ आवाज करते हुए समुद्र की ओर चले गए।


गूढार्थ: सज्जनता या संत भाव का जो तात्पर्य है वहीं बादलों को भी उसी दृष्टिकोण से लिया गया है। समुद्र के खारे जल का खारापन निकालकर बादल उस जल को मीठा करते हैं। वज्र का अर्थ पर्वतीय क्षेत्रों से है जहां अधिक वर्षा होती है ,जहां से नदियाँ निकलती हैं और समुद्र की ओर जाती हैं, साथ में गंदगी ले जाती हैं,पुनः वाष्प द्वारा आकाश में बादल बन जाती हैं।यहां कर्म की शुद्धि, भाव,विचार की शुद्धि और उसके प्रयोजन की शुद्धि होती है।इसीसे जीवन में दिव्यता आती है। जब समस्त इन्द्रियों का,चित्त का ,मन का शोधन हो जाता है,तब वह अपने विवेक द्वारा अपना चरम भाव पा जाता है।



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