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Writer's pictureAnshul P

RV 1.32.3

Updated: Oct 1, 2020


TOTAL SURRENDER OF MIND IN PARMATMA WILL MAKE YOU FREE FROM VICES AND PHYSICAL SANTAAP


Rig Ved 1.32.3


It says that whatever we have dedicated to Parmatma, he has accepted it. We have surrendered our mind, Intellect etc. In other words we have dedicated and surrendered everything to him. He has accepted our total surrender. Our mind is in Parmatma. We are free in mind denotes that we are free from Maya. We are free from thoughts denotes that we are free from conflicts. Now we are happy, satisfied and contented. Our vices, Our Mental, Physical, etc worries have been destroyed because Parmatma is showering his grace on us.


वृ॒षा॒यमा॑णोऽवृणीत॒ सोमं॒ त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्य॑ ।

आ साय॑कं म॒घवा॑दत्त॒ वज्र॒मह॑न्नेनं

प्रथम॒जामही॑नां ॥


Translation :


वृषायमाणा - Like powerful bull.


अवृणित् - To choose.


सोमम् - Of Som.


त्रिकद्रुकेषु - In three Yagya's.


अपिबत् - To drink.


सुतस्य - The grinded Som.


सायकम् - Of weapons.


मघवा - For rich.


अदत् - To carry.


वज्रम् - Of Vajra.


अहन् - To kill.


एनम् - Them.


प्रथमाजम - The main one.


Explanation :This mantra says that Indra drinks Somras just like a strong bull.He drinks the Somras made sacred by chanting mantras from three Yagya vessels. The wealthy Indra uses bow and Vajra to break the main cloud.


Deep meaning:-It says that whatever we have dedicated to Parmatma, he has accepted it. We have surrendered our mind, Intellect etc. In other words we have dedicated and surrendered everything to him. He has accepted our total surrender. Our mind is in Parmatma. We are free in mind denotes that we are free from Maya. We are free from thoughts denotes that we are free from conflicts. Now we are happy, satisfied and contented. Our vices, Our Mental, Physical, etc worries have been destroyed because Parmatma is showering his grace on us.




#मराठी


ऋग्वेद १.३२.३


वृ॒षा॒यमा॑णोऽवृणीत॒ सोमं॒ त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्य॑ ।

आ साय॑कं म॒घवा॑दत्त॒ वज्र॒मह॑न्नेनं

प्रथम॒जामही॑नां ॥


भाषांतर :


वृषायमाणाः - शक्तिमान बाळा सारखे.


अवृणीत - निवडले.


सोमम् - सोमाचे.


त्रिकद्रुकेषु - तीन यागांचा.


अपिबत् - प्राशन करणे.


सुतस्य - वाटून काढलेले.


सायकम् - शस्त्रास.


मघवा - धनवानांना.


आ अदत् - धारण करणे.


वज्रम् - वज्राचे.


अहन् - मारणे.


एनम् - ह्यांचे.


प्रथमाजम - सर्वप्रथम उत्पन्न झालेले.


भावार्थ:ह्या मंत्रात म्हटले आहे की इन्द्रांने शक्तिशाली बैला प्रमाणे सोमरसाचे प्राशन केला.यज्ञात तीन पात्रात अभिमंत्रित केलेले सोमरसा त्यांने पिउन टाकला.धनवान इन्द्रांने बाण आणि वज्राने प्रमुख मेघांचे तुकडे तुकडे केले.


गूढार्थ: इथे म्हटलेले आहे की आम्ही जे काही परमात्मांना अर्पित केलेला आहे ते त्यांनी स्वीकारले आहे.आमचा मन परमात्मा कडे जात आहे.संपूर्ण समर्पणाला त्यांनी ग्रहण केला. मनांनी मुक्त आहोत तर आपोआप मायानी मुक्त झालो.बुद्धी ने मुक्त आहोत तर द्वंद्व तून मुक्ति मिळाली. सर्व प्रकारे मुक्त आहोत तर आम्ही आनंदित राहतो,संतुष्ट आणि तृप्त राहतो.समर्पण करण्या मुळे आमचे समस्त विकार,मानसिक, शारीरिक, दैहिक संताप नष्ट झाले कारण की परमात्मांचा आम्हावर अनुग्रह आहे.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३२.३


वृ॒षा॒यमा॑णोऽवृणीत॒ सोमं॒ त्रिक॑द्रुकेष्वपिबत्सु॒तस्य॑ ।

आ साय॑कं म॒घवा॑दत्त॒ वज्र॒मह॑न्नेनं

प्रथम॒जामही॑नां ॥


अनुवाद:


वृषायमाणाः - शक्तिशाली सांड जैसा।


अवृणित् - चुना।


सोमम् - सोम को।


त्रिकद्रुकेषु - तीन यागों में।


अपिबत् - पान करना।


सुतस्य - पीसे हुए ।


सायकम् - शस्त्र को।


मघवा - धनवान नें।


आ अदत् - धारण करना।


वज्रम् - वज्र को।


अहन् - मारना।


एनम् - इनके।


प्रथमाजम - सबसे पहले सामने आना।


भावार्थ:इस मंत्र में कहा गया है कि अति शक्तिशाली इन्द्र ने सांड की तरह तेजी से सोमरस को ग्रहण किया। यज्ञ में तीन पात्रों में रखे हुए अभिमंत्रित सोमरस का पान किया। ऐश्वर्य वान इन्द्र ने बाण और वज्र से प्रमुख मेघों को छिन्न भिन्न किया।


गूढार्थ: इसमें यह बताया गया है कि हमने जो भी परमात्मा को अर्पित किया,उसे उन्होंने स्वीकृत किया।इसका अर्थ है कि हमने परमात्मा के प्रति मन, बुद्धि अर्थात पूर्ण समर्पण करते हैं। संपूर्ण समर्पण ही उनको ग्रहण है। हमारा मन परमात्मा में चला गया। मन से मुक्त हैं अर्थात हम माया से मुक्त हैं। बुद्धि से मुक्त हुए तो द्वंद से मुक्त हुए ।इन सबसे मुक्त होते ही हम आनंदित हो गए,संतुष्ट हो गए,तृप्ति आ गयी। समर्पण करने से हमारे सारे विकार,मानसिक,शारीरिक, दैहिक संताप नष्ट हो गए हैं क्योंकि परमात्मा का हम पर अनुग्रह है।



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