WITH COW ( GYAN) WEALTH YOU ARE NEAR TO INDRA( PARMATMA) .
Rig Ved 1.33.1
The common meaning of this mantra is that in vedic period cow was the biggest asset, so people desired more cows. The devtas wishing to get more cows denotes that here Indra means Parmatma and cow means intelligence. So it means that in order to attain true Knowledge we have to take the shelter of Parmatma. When this Knowledge overlaps our inner inclinations then only we can attain peace, our dissatisfaction will go and all our shortcomings will disappear. Then we get to attain the wealth of Knowledge, peace and satisfaction. We then become truly complete and rich.
एताया॒मोप॑ ग॒व्यंत॒ इंद्र॑म॒स्माकं॒ सु प्रम॑तिं वावृधाति ।
अ॒ना॒मृ॒णः कु॒विदाद॒स्य रा॒यो गवां॒ केतं॒ पर॑मा॒वर्ज॑ते नः ॥
Translation :
एत - Come.
गव्यन्तः - Of Cows.
इन्द्रम् - Of Indra.
उप अयाम - To come near.
अनामृण - Became non violent.
अस्माकण - Of ours.
प्रमतिम् - Of intelligence .
सु ववृधाति - In good way.
आत् - After this.
अस्य - This.
रायः गवाम् -
परम् - Wealth in the form of cows.
केतम् - Best.
नः - Us.
कुवित् - More.
आवर्जते - To give.
Explanation :As per Hiranyastup rishi the devtas mutually discussed that we should go to Indradev to get the Cow which was stopped by the demon named Pani. Indra is non violent and he will give us better insight to get more cows and will also grant us intelligence.
Deep meaning: - The common meaning of this mantra is that in vedic period cow was the biggest asset, so people desired more cows. The devtas wishing to get more cows denotes that here Indra means Parmatma and cow means intelligence. So it means that in order to attain true Knowledge we have to take the shelter of Parmatma. When this Knowledge overlaps our inner inclinations then only we can attain peace, our dissatisfaction will go and all our shortcomings will disappear. Then we get to attain the wealth of Knowledge, peace and satisfaction. We then become truly complete and rich.
📸Credit-guru_diaries(Insta)
#मराठी
ऋग्वेद १.३३.१
एताया॒मोप॑ ग॒व्यंत॒ इंद्र॑म॒स्माकं॒ सु प्रम॑तिं वावृधाति ।
अ॒ना॒मृ॒णः कु॒विदाद॒स्य रा॒यो गवां॒ केतं॒ पर॑मा॒वर्ज॑ते नः ॥
भाषांतर
एत - यावे.
गव्यन्तः - गाईंचे.
इन्द्रम् - इन्द्राचे.
उप अयाम - जवळ येणे.
अनामृण - हिंसा रहित होणे.
अस्माकण - आमच्या.
प्रमतिम् - बद्धिला.
सु ववृधाति - चांगल्या प्रकाराने.
आत् - ह्याचे नंतर.
अस्य - ह्या.
रायः गवाम् - गाई रूपी धनच्या संबंधात.
परम् - चांगले.
केतम् - ज्ञानासाठी.
नः - आमचे.
कुवित् - अधिक.
आवर्जते - प्रदान करणे.
भावार्थ :ऋषी हिरण्यस्तूप म्हणत आहेत की आम्हास पणि नावाचे असुराने थांबवलेली गाईंना प्राप्त करण्याची इच्छेने इन्द्रा जवळ जाउ या. इन्द्र हिंसारहित आहेत आणि ते आम्हास अधिक गाई प्राप्त करण्याची उत्तम बुद्धी आणि ज्ञान देतिल.
गूढार्थ: इथे भौतिक दृष्टी ने अर्थ आहे की वैदिक काळात सर्वांत मोठे धन गाईच्या प्राप्तिसाठी होते. इंद्राकडे जाण्याचा हेतू म्हणजे परमात्मा कडे जाणे आणि गाईंची कामना करतात.गाईची प्राप्ति साठी इन्द्राकडे जाण्याचा हेतू आहे परमात्माकडे जाउन गाईंच्या रूपात बोध प्राप्त करू.ईश्वर म्हणजे ज्ञान.हे बोध तेंव्हा प्राप्त होइल जेव्हा ईश्वराची कृपेने प्राप्त झाल्यावर वृती वर आरूढ ज्ञान प्राप्त होइल. तेंव्हा सर्व प्रकाराचे ज्ञान रूपी धन, आनंद आणि संतोष रूपी धन प्राप्त होइल आणि आम्ही समृध्द होऊ.आमच्यामधे पूर्णता येइल आणि आम्ही तृप्त होऊ.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३३.१
एताया॒मोप॑ ग॒व्यंत॒ इंद्र॑म॒स्माकं॒ सु प्रम॑तिं वावृधाति ।
अ॒ना॒मृ॒णः कु॒विदाद॒स्य रा॒यो गवां॒ केतं॒ पर॑मा॒वर्ज॑ते नः ॥
अनुवाद:
एत - आओ।
गव्यन्तः - गायों का।
इन्द्रम् - इन्द्र के।
उप अयाम - पास आना।
अनामृण - हिंसा रहित होकर।
अस्माकण - हमलोगो की।
प्रमतिम् - बुद्धि को।
सु ववृधाति - अच्छे प्रकार से।
आत् - इसके बाद।
अस्य - इस।
रायः गवाम् - गोधन से संबंधित।
परम् - बढिया।
केतम् - ज्ञान को।
नः - हमें।
कुवित् - ज्यादा।
आवर्जते - प्रदान करना।
भावार्थ : ऋषि हिरण्यस्तूप कहते हैं कि सब देवता आपस में कहते हैं कि हम पणि नामक असुर के द्वारा रोकी गई गौओं को प्राप्त करने की इच्छा से इन्द्र के पास चलें। इन्द्र हिंसा रहित हैं तथा हमें और अधिक गौओं का लाभ कराने की उत्तम बुद्धि बताएंगे और उत्तम ज्ञान देंगे।
गूढार्थ:
इसका भौतिक दृष्टि से अर्थ हुआ की वैदिक काल में गाय ही सबसे बडा धन था इसलिए गौओं की प्राप्ति की कामना की जाती थी। दूसरा हमारे यहां कहा गया है की इसकी प्राप्ति के लिए इन्द्र के पास जाएं ।गौओं से तात्पर्य है कि हमको बोध की प्राप्ति के लिए इन्द्र के पास जाएं, यानि साक्षात परमात्मा के पास जाएं। ईश्वर का तात्पर्य ज्ञान से है। इस बोध की प्राप्ति कराने के लिए ईश्वर की कृपा से जब बोध प्राप्त हो जाता है तब उस बोध के द्वारा हमारे अंतःकरण में वृत्यारूढ ज्ञान आ जाएगा तब असंतोष दूर हो जाएगा,अशांति और अभाव दूर हो जाएंगे. ये सब दूर होने से एक प्रकार का ज्ञान का धन, आनंद और संतोष का धन प्राप्त होगा और हम समृद्ध हो जाएँगे। हमे पूर्णता आ जाएगी और हम तृप्त हो जाएँगे।
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