Rig Ved 1.33.10
This mantra has two spiritual connotations - Bhakti(Devotion) and Gyan(Knowledge). When a person goes into Parmatma's shelter or sharan then all the evil and difficulties are taken away by Parmatma. Second meaning is that when jeev forgets it's real self then in order to attain it's real self he again goes into parmatma's sharan(Shelter). When he goes into the shelter of gyan all the darkness and ignorance Vanish. On attaining his real self he experiences divine happiness.
न ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या अंत॑मा॒पुर्न मा॒याभि॑र्धन॒दां प॒र्यभू॑वन् ।
युजं॒ वज्रं॑ वृष॒भश्च॑क्र॒ इंद्रो॒ निर्ज्योति॑षा॒ तम॑सो॒ गा अ॑दुक्षत् ॥
Translation :
ये - That.
दिवः - From Dhyulok.
पृथिव्याः - Of Earth.
अन्तम् - On this place.
न अापूः - Difficult to get.
मायाभिः - Joined with Karma.
धनादम् - The wealth provider.
न पर्यभूवन् - From all four sides.
वज्रम्- Of Vajra.
वृषभः - The water that irrigated.
इन्द्रः - From Indra.
ज्योतिषाः - With the help of shining vajra.
तमसः - Darkness.
निःअधुक्षतः - To get it completely.
Explanation : This mantra says that when the clouds in the form of Vritra stopped the flow of rain water from Dhyulok to Earth and the green Earth could not produce crops, then Indra took out his shining Vajra and squeezed out the entire water from the darkness emitting clouds.
Deep meaning:-This mantra has two spiritual connotations - Bhakti(Devotion) and Gyan(Knowledge) . When a person goes into Parmatma's shelter or sharan then all the evil and difficulties are taken away by Parmatma. Second meaning is that when jeev forgets it's real self then in order to attain it's real self he again goes into parmatma's sharan(Shelter). When he goes into the shelter of gyan all the darkness and ignorance vanish. On attaining his real self he experiences divine happiness.
📸Credit - Spiritual_world_devotee_290
#मराठी
ऋग्वेद १.३३.१०
न ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या अंत॑मा॒पुर्न मा॒याभि॑र्धन॒दां प॒र्यभू॑वन् ।
युजं॒ वज्रं॑ वृष॒भश्च॑क्र॒ इंद्रो॒ निर्ज्योति॑षा॒ तम॑सो॒ गा अ॑दुक्षत् ॥
भाषांतर :
ये - जे.
दिवः - द्युलोकात.
पृथिव्याः - धरती चे.
अन्तम् - स्थानात.
न अापूः - प्राप्त न होणे.
मायाभिः - कर्माने संयुक्त.
धनादम् - धन देणारे.
न पर्यभूवन् - चारही बाजू व्याप्त असणे.
युजम् चक्रे -
वज्रम्- वज्रासन.
वृषभः - जल सिंचन करणारे.
इन्द्रः - इन्द्रांने.
ज्योतिषाः- चमकणारे वज्राची सहायता ने.
तमसः - अंधार.
परि अधुक्षतः - संपूर्ण रूपात प्राप्त होणे.
भावार्थ:इथे सांगितलेले आहे की मेघ रूपी वृत्राने जेंव्हा जल वर्षावास द्युलोकाने पृथ्वी वर येण्यास थांबवले आणि हिरवी वसुन्धरा पीक पासून वंचित झाली तेंव्हा इंद्राने आपल्या जाज्वल्यमान वज्राने अधिक पसरवून देणारे मेघांचे समस्त पाणी पिळून टाकले.
गूढार्थ: ह्या मंत्राचे दोन आध्यात्मिक अर्थ आहेत - भक्ती आणि ज्ञान पथ.जेंव्हा आपण परमात्म्याचे शरण मधे असतो तेंव्हा जीवनात येणारी समस्त आपत्ती विपत्तीचा परमात्मा हरण करतो.दूसरे अर्थ आहे की जेव्हा जीव आपल्या वास्तविक स्वरूपाला विसरतो आणि तो पुनः आपले स्वरूप प्राप्त करण्यासाठी परमात्म्याची शरण मधे जाते. तेंव्हा ज्ञानाचे शरणात समस्त अज्ञान आणि अंधाराचा पण हरण होते.स्वरूप बोध झाल्याने तो दिव्य आनंदास प्राप्त होतो.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३३.१०
न ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या अंत॑मा॒पुर्न मा॒याभि॑र्धन॒दां प॒र्यभू॑वन् ।
युजं॒ वज्रं॑ वृष॒भश्च॑क्र॒ इंद्रो॒ निर्ज्योति॑षा॒ तम॑सो॒ गा अ॑दुक्षत् ॥
अनुवाद:
ये - जो।
दिवः - द्युलोक के।
पृथिव्याः - धरती के।
अन्तम् - स्थान में।
न अापूः - प्राप्त न होना।
मायाभिः - कर्मों से संयुक्त हो।
धनादम् - धन देनेवाले।
न पर्यभूवन् - चारों तरफ़ व्याप्त न होना।
वज्रम्- वज्र को।
वृषभः - जल सिंचन करनेवाले।
इन्द्रः - इन्द्र ने।
ज्योतिषाः - चमकते हुए वज्र की सहायता से।
तमसः - अंधकार।
परि अदुक्षतः - संपूर्ण रूप से प्राप्त कर लेना।
भावार्थ: यहां बताया गया है कि मेघ रूपी वृत्र के द्वारा जब जल को द्युलोक से धरती पर आने से रोक लिया गया और हरी भरी वसुन्धरा फसल से युक्त न हो पायी तब इन्द्र ने अपने जाज्वल्यमान वज्र से अंधकार फैलाने वाले मेघ का समस्त पानी निचोड़ लिया।
गूढार्थ: इस मंत्र के दो आध्यात्मिक अर्थ हैं- भक्ति पथ और ज्ञान पथ।जब कोई परमात्मा की शरण में होता है तब उसके जीवन में आनेवाली आपत्ति विपत्ति का परमात्मा हरण कर लेते हैं। दूसरा अर्थ है कि जब जीव अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है तब वह पुनः अपने स्वरूप को प्राप्त करने के लिए भी परमात्मा की शरण में जाता है। तब ज्ञान के शरण में जाने से उसके समस्त अज्ञान और अंधकार का भी हरण हो जाता है। स्वरूप बोध होने से वह दिव्य आनंद को प्राप्त कर लेता है।
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