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Writer's pictureAnshul P

RV 1.33.13

Updated: Nov 7, 2020


Rig Ved 1.33.13


This means Jeev and Brahm are one. Very excited means that Jeev is the Brahma, this also proved that the Atma is Brahm itself. Knowledge has been mounted on Vritra(वृत्ति, Inner inclinations). Whatever is there, it is Brahma, everything is Atma. This is the epitome of Vedas. When Jeev has decided this, He has accomplished everything.


अ॒भि सि॒ध्मो अ॑जिगादस्य॒ शत्रू॒न्वि ति॒ग्मेन॑ वृष॒भेणा॒ पुरो॑ऽभेत् ।

सं वज्रे॑णासृजद्वृ॒त्रमिंद्रः॒ प्र स्वां म॒तिम॑तिर॒च्छाश॑दानः ॥


Translation:


अस्य - His.


सिध्मः - The one completing the work


अभि - To aim.


शत्रून - The enemies.


अजिगात् - Fall.


तिग्मेन - Sharp.


वज्रेण - With Vajra.


वृषभेण - Best.


पुरः - From towns.


वि अभेत् - Destroyed in many ways.


इन्द्रः - Indra.


वृत्रम् - On Vrittra.


सम् असृजत् -


शाशदानः - To arrange and put.


स्वाम् - Ours. Org


मतिम् - Of intellect.


प्र अतिरत् - To take it forward nicely.


Explanation:This mantra says that Indra aimed his Vajra and then destroyed the enemy. His best and sharp arrows destroyed the forts of Vritra. When he had killed Vritra by his Vajra, he was very elatèd and excited.


Deep meaning:- This means Jeev and Brahm are one. Very excited means that Jeev is the Brahma, this also proved that the Atma is Brahm itself. Knowledge has been mounted on Vritra(वृत्ति, Inner inclinations). Whatever is there, it is Brahma, everything is Atma. This is the epitome of Vedas. When Jeev has decided this, he has accomplished everything.



#मराठी


ऋग्वेद १.३३.१३


अ॒भि सि॒ध्मो अ॑जिगादस्य॒ शत्रू॒न्वि ति॒ग्मेन॑ वृष॒भेणा॒ पुरो॑ऽभेत् ।

सं वज्रे॑णासृजद्वृ॒त्रमिंद्रः॒ प्र स्वां म॒तिम॑तिर॒च्छाश॑दानः ॥


भाषांतर:


अस्य - आपल्या.


सिध्मः - कार्य साधक.


अभि - लक्ष्य करून.


शत्रून् - शत्रू ने.


अजिगात् - पडणे.


तिग्मेन - तीक्ष्ण.


वज्रेण - वज्राने.


वृषभेण - श्रेष्ठा.


पुरः - नगरांचे.


वि अभेत् - अनेक प्रकाराने नष्ट करणे.


इन्द्रः - इन्द्रांने.


वृत्रम् - वृत्रास.


सम् असृजत् - संयोजित पद्धती ने ठेवणे.


शाशदानः - त्याला मारताना.


स्वाम् - आपल्याला.


मतिम् - बुद्धी.


प्र अतिरत् - चांगल्या पद्धती ने वृद्धी करणे.


भावार्थ: ह्या मंत्रात म्हटलेले आहे की इन्द्राने अापले वज्र शत्रूंना लक्ष करून चालविले. त्यांचे तीक्ष्ण आणि श्रेष्ठ बाणाने वृत्राचे किल्ले उध्वस्त झाले.तेंव्हा वज्राने इन्द्रांने वृत्रास मारून टाकले आणि अति उत्साहित झाले.


गूढार्थ: ह्याचे अर्थ असे की जीव व ब्रह्म एकच आहे.अति उत्साही चे तात्पर्य आहे की जीव हेच ब्रह्म आहे.निश्चित रूपाने हे सिद्ध होते की माझे ह्दयात स्थित आत्मा हाच ब्रह्म आहे. वृत्रात(वृत्ति) ज्ञान आरूढ झाला.हे निश्चित झाले की सर्व काही ब्रह्मच आहे, सर्व काही आत्माच आहे. हे वेदाचे परम आणि चरम तात्पर्य आहे. हे निश्चित झाल्यावर जीव कृतकृत्य होउन जातो.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३३.१३


अ॒भि सि॒ध्मो अ॑जिगादस्य॒ शत्रू॒न्वि ति॒ग्मेन॑ वृष॒भेणा॒ पुरो॑ऽभेत् ।

सं वज्रे॑णासृजद्वृ॒त्रमिंद्रः॒ प्र स्वां म॒तिम॑तिर॒च्छाश॑दानः ॥


अनुवाद:


अस्य - इनका।


सिध्मः - कार्य साधक।


अभि - लक्ष्य करके।


शत्रून् - शत्रुओं के।


अजिगात् - गिरना।


तिग्मेन - तीक्ष्ण।


वज्रेण - वज्र से।


वृषभेण - श्रेष्ठ।


पुरः - शहरों के।


वि अभेत् - अनेक प्रकार से तहस नहस करना।


इन्द्रः - इन्द्र ने।


वृत्रम् - वृत्र पर।


सम् असृजत् - संयोजित करके लगाना।


शाशदानः - उसे मारते हुए।


स्वाम् - अपनी।


मतिम् - बुद्धि क।


प्र अतिरत् - अच्छी तरह से बढाया ।


भावार्थ: इस मंत्र में कहा गया है कि इन्द्र ने अपने वज्र से शत्रुओं पर लक्ष्य करके चलाया। उनके तीक्ष्ण और श्रेष्ठ बाण से वृत्र के किले तहस नहस हो गये।जब वज्र से इन्द्र ने वृत्र को मार गिराया, तब वे अति उत्साहित हो गये।


गूढार्थ: इसका अर्थ यह हुआ की जीव और ब्रह्म एक ही है। अति उत्साहित होने का अर्थ हुआ की जीव ब्रह्म ही है, निशिचत रूप से सिद्ध होता है कि मेरे ह्दय के भीतर आत्मा ब्रह्म ही है। वृत्र(वृत्ति) मे ज्ञान आरूढ़ हो गया। यह निश्चय हो गया कि सब कुछ ब्रह्म ही है, सब कुछ आत्मा ही है।यह वेद का चरम और परम तात्पर्य है। यह निश्चय आ जाने से जीव कृतकृत्य हो जाता है।



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