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Writer's pictureAnshul P

RV 1.33.15

Updated: Nov 9, 2020


Rig Ved 1.33.15


This mantra says that Indra is wealthy. But his wealth is indestructible wealth of Enlightening glow and eternal happiness. This wealth is attainable only to deserving person and has the important factors of tradition, Intelligence, Asceticism and सम(Control), दम(inner inclinations)

, तितिक्षा (patience), समाधान(satisfaction) , उप्रति)(surrender), only that person deserves to be wealthy. You search only for water when you are thirsty.


आवः॒ शमं॑ वृष॒भं तुग्र्या॑सु क्षेत्रजे॒षे म॑घव॒ञ्छ्वित्र्यं॒ गां ।

ज्योक् चि॒दत्र॑ तस्थि॒वांसो॑ अक्रञ्छत्रूय॒तामध॑रा॒ वेद॑नाकः ॥


Translation :


मघवन् - Wealthy Indra!


शमम् - Silent.


वृषभम् - Best in qualities.


तुग्र्यासु गाम् - Water logged.


क्षेत्रजेषे - To win more area.


आवः - Save.


अत्र - Here.


ज्योति चित् - To stay.


तस्थिवांसः -


अक्रन् - keep enemity.


शत्रूयताम् - Are enemies.


अधरा - Worst.

वेदना - Sorrow.


अकः - To give.


Explanation: Oh wealthy Indra! You saved Rishi Shvaitreya(special Person) who wanted to expand his land and now was standing amidst fierce flow of water. For the long hours that you stood in the water, you dropped the enemies in it which gave them immense pain.


Deep meaning: This mantra says that Indra is wealthy. But his wealth is indestructible wealth of Enlightening glow and eternal happiness. This wealth is attainable only to deserving person and has the important factors of tradition, Intelligence, Asceticism and सम(Control), दम(inner inclinations)

, तितिक्षा (patience), समाधान(satisfaction) , उप्रति)(surrender), only that person deserves to be wealthy. You search only for water when you are thirsty.



📸Credit-artbygurudesign(Instagram handle)



#मराठी


ऋग्वेद १.३३.१५


आवः॒ शमं॑ वृष॒भं तुग्र्या॑सु क्षेत्रजे॒षे म॑घव॒ञ्छ्वित्र्यं॒ गां ।

ज्योक् चि॒दत्र॑ तस्थि॒वांसो॑ अक्रञ्छत्रूय॒तामध॑रा॒ वेद॑नाकः ॥


भाषांतर :


मघवन् - धनवान इंद्र!


शमम् - शांत.


वृषभम् - गुणाने श्रेष्ठ.


तुग्र्यासु गाम् - जलमग्न.


क्षेत्रजेषे - क्षेत्र प्राप्ति साठी.


आवः - वाचवणे.


अत्र - इथे.


ज्योति चित् - अवस्थित असणे.


तस्थिवांसः -


अक्रन् - शत्रूचा आहे.


शत्रूयताम् - शत्रूता ठेवणे.


अधरा - निकृष्ट.


वेदना - दुःख.


अकः - देणे.


भावार्थ: हे धनवान इंद्र! आपण क्षेत्र विस्ताराची इच्छा ठेवणारे व सशक्त जल प्रवाहात अडकलेले ऋषी श्वैज्ञेयांना( व्यक्ती विशेष) वाचवले. पाण्यात थांबून आपण फार सा वेळ युद्ध करत राहिले.त्या शत्रूंना पाण्यात पाडून आपण त्यांना प्रचंड त्रास दिलात.


गूढार्थ: ह्या मंत्राचे तात्पर्य आहे की इंद्र धनवान आहे.पण ते धन विनाशी नाही पण ते अविनाशी आहे म्हणजे तो प्रकाश स्वरूप आणि सुखकारक आहे.तेच व्यक्ति विशेष आहे.हे धन प्राप्त करण्याचा अधिकारी तो असतो जे परंपरा साधन, विवेक, वैराग्य आणि सम दम, तितिक्षा संप्रति समाधान उप्रति हे चार चतुष्ट्यानी संपन्न आहे. कारण जो पर्यंत तहान लागत नाही तो पर्यंत पाण्याचा शोध व्यर्थच आहे.




# हिन्दी


ऋग्वेद १.३३.१५

आवः॒ शमं॑ वृष॒भं तुग्र्या॑सु क्षेत्रजे॒षे म॑घव॒ञ्छ्वित्र्यं॒ गां ।

ज्योक् चि॒दत्र॑ तस्थि॒वांसो॑ अक्रञ्छत्रूय॒तामध॑रा॒ वेद॑नाकः ॥


अनुवाद:


मघवन् - धनवान इंद्र!


शमम् - शांत।


वृषभम् - गुणों में श्रेष्ठ।


तुग्र्यासु गाम् - जल मग्न।


क्षेत्रजेषे - क्षेत्र प्राप्ति के लिए।


आवः - बचाना।


अत्र - यहाँ।


ज्योति चित् - अवस्थित रहना।


तस्थिवांसः -


अक्रन् - शत्रुता है।


शत्रूयताम् - बैर रखना।


अधरा - निकृष्ट।


वेदना - दुःख।


अकः - देना।


भावार्थ: हे धनवान इंद्र! आपने क्षेत्र प्राप्ति की इच्छा रखने से सशक्त जल प्रवाहों से घिरनेवाले ऋषि श्वैत्रेय( व्यक्ति विशेष) की रक्षा की। यहां जलों में ठहरकर आप लंबे समय तक युद्ध करते रहे। उन शत्रुओं को जलों में गिराकर आपने उन्हे मार्मिक पीड़ा पहुंचाई।



गूढार्थ: इस मंत्र का तात्पर्य है इंद्र को धनवान बताना। पर इंद्र विनाशी धन से नही बल्कि अविनाशी धन से संपन्न हैं। वह धन प्रकाश स्वरूप और सुखकाकरक है। वह ही व्यक्ति विशेष हैं। इस धन को पाने का अधिकारी वही धनवान व्यक्ति है जो परंपरा साधन, विवेक, वैराग्य और सम, दम, तितिक्षा, संप्रति,समाधान उप्रति इन चार साधन चतुष्ट्य से संपन्न व्यक्ति हो, क्योंकि जब तक प्यास नहीं लगती तो पानी की व्यवस्था से क्या लाभ।



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