EVERYTHING BELONGS TO PARMATMA, WE CAN OFFER ONLY BHAKTI.
Rig Ved1.33.3
Here we request the Parmatma that you have given us life, along with it you have provided us all the things for our comfort. You also have provided us the Panch Bhoot or five elements for our happiness. Since it is you that has provided us each and everything, what can we give you in return. We submit your gift to you only. It will be our fallacy to think that we can give something to Parmatma. This is the extreme form of Bhakti. This is a prayer to Parmatma.
नि सर्व॑सेन इषु॒धीँर॑सक्त॒ सम॒र्यो गा अ॑जति॒ यस्य॒ वष्टि॑ ।
चो॒ष्कू॒यमा॑ण इंद्र॒ भूरि॑ वा॒मं मा प॒णिर्भू॑र॒स्मदधि॑ प्रवृद्ध ॥
Translation:-
सर्वसेनः - All army.
इषुधीन् - Quiver.
नि असक्त - To put.
अर्य - Master.
यस्य गाः - The cow.
वष्टि - To give.
समजति - In all aspects.
प्रवृद्ध इंद्र - Oh Strong Indra!
भूरि आमम् - Wealth.
चोष्कूयमाणः - To give.
अस्मत अधि - From Us.
पणिः - Like businessman.
मा भूः - Not to do.
भावार्थ: Here Rishi tells us that Indra is standing in front of his army with quiver attached to his body. He is the owner of everything so he takes away the Cows from Asur Panni and returns them to the owner if they request for the return. Indra is requested to not act as businessman and ask for its rate.
Deep meaning:-Here we request the Parmatma that you have given us life, along with it you have provided us all the things for our comfort. You also have provided us the Panch Bhoot or five elements for our happiness. Since it is you that has provided us each and everything, what can we give you in return. We submit your gift to you only. It will be our fallacy to think that we can give something to Parmatma. This is the extreme form of Bhakti. This is a prayer to Parmatma.
📸Credit-Vimanika comics
#मराठी
ऋग्वेद१.३३.३
नि सर्व॑सेन इषु॒धीँर॑सक्त॒ सम॒र्यो गा अ॑जति॒ यस्य॒ वष्टि॑ ।
चो॒ष्कू॒यमा॑ण इंद्र॒ भूरि॑ वा॒मं मा प॒णिर्भू॑र॒स्मदधि॑ प्रवृद्ध ॥
भाषांतर
सर्वसेनः - सर्व सेना.
इषुधीन् - भाता.
नि असक्त - लागणे.
अर्य - स्वामी.
यस्य गाः - ज्या गाई.
वष्टि - देणे.
समजति - सर्व प्रकारे.
प्रवृद्ध इंद्र - हे शक्ती शालू इंद्र!
भूरि आमम् - खूप धन।
चोष्कूयमाणः - देणे.
अस्मत अधि - आमच्या.
पणिः - व्यापारी सारखे.
मा भूः - न करणे
भावार्थ:ऋषी प्रार्थना करत आहेत की समस्त सैन्य समोर भाता लावून उभे आहेत.ते सर्वांचे स्वामी आहेत म्हणून ज्यांनी गाई मागितल्या त्यांची गाई सोडावून त्यांना देत आहेत. शक्तिमान इंद्राला ते विनंति करतात की कृपया आपण व्यापारा सारखे मूल्य आमच्या पासून मागू नका.
गूढार्थ: इथे परमात्मा कडे प्रार्थना केली आहे की आपण आम्हास जीवन देतात, आपणच आम्हाला जगण्यासाठी समस्त सामग्री प्रदान करतात आणि ह्याच बरोबर आमच्या आनंदासाठी सर्व प्रकाराचे पंचभूतांचे आणि पंच विषयांची सामग्री प्रदान करतात सर्व आपण दिल्या मुळे आम्ही आपल्याला काय अर्पित करू।सर्व आपल्याला अर्पितच आहे. ही आमची भ्रांति असणार की आपण काही देउ शकतो.ही भक्तिची चरम सीमा आहे.इथे परमात्माची स्तुती केलेली आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद१.३३.३
नि सर्व॑सेन इषु॒धीँर॑सक्त॒ सम॒र्यो गा अ॑जति॒ यस्य॒ वष्टि॑ ।
चो॒ष्कू॒यमा॑ण इंद्र॒ भूरि॑ वा॒मं मा प॒णिर्भू॑र॒स्मदधि॑ प्रवृद्ध ॥
अनवाद
सर्वसेनः - सारी सेना।
इषुधीन् - तरकश।
नि असक्त - लगाना।
अर्य - स्वामी।
यस्य गाः - जो गाय।
वष्टि - देना।
समजति - सभी प्रकार से।
प्रवृद्ध इंद्र - हे शक्तिशाली इंद्र!
भूरि आमम् - बहुत धन।
चोष्कूयमाणः - देना।
अस्मत अधि - हमसे।
पणिः - व्यापारी जैसे।
मा भूः - न करिये।
भावार्थ:ऋषि प्रार्थना कर रहे हैं कि सारी सेना के सामने इंद्र तरकश लगाए खडे हैं।वे सबके स्वामी हैं तो जिसे चाहे उसी की गाय को पणि नामक असुर से मांगनेवाले की गाय छुडाकर उसके पास भेजते हैं। हे शक्तिशाली इंद्र आपसे निवेदन है कि आप व्यापारी के समान हमसे मूल्य मत मांगिए।
गूढार्थ: इसमें परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि आप हमको जीवन देते हैं, आप हमें जीने के लिए समस्त सामग्री प्रदान करते हैं और इसके साथ ही हमारे आनंद के लिए समस्त प्रकार के पंचभूत और पंच विषय हैं, वह भी हमें प्रदान करते हैं। चूंकि सब आपका ही दिया हुआ है तो भक्त बदले में क्या दे सकता है। आपका दिया हुआ आपको ही अर्पित करना है। यह हमारी भ्रांति होगी की हम परमात्मा को कुछ दे सकते हैं। यह भक्ति की चरम सीमा है जिसमें इस तरह के भाव झलकते हैं। यहां परमात्मा की स्तुति की गई है।
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