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Writer's pictureAnshul P

RV 1.34.4

Updated: Nov 14, 2020


Rig Ved 1.34.4


This mantra describes the four stages-:वैश्वानर(Protection) तेजस (Energy) प्राग (Knowledge) and तूरीय (Pure Consciousness). If we want to keep our mind healthy then we have to compulsorily consume food. It is this food that keeps our mind, Chitta(चित्त) and intelligence happy (three things). Here Ashwini Kumars are requested that they help us achieve our nourishment, protection and augmentation.


त्रिर्व॒र्तिर्या॑तं॒ त्रिरनु॑व्रते॒ जने॒ त्रिः सु॑प्रा॒व्ये॑ त्रे॒धेव॑ शिक्षतं ।

त्रिर्नां॒द्यं॑ वहतमश्विना यु॒वं त्रिः पृक्षो॑ अ॒स्मे अ॒क्षरे॑व 


Translation:-


अश्विना - Oh Ashwini Kumars!


युवम् - Both.


त्रिः - Three.


वर्ति - In the house.


यातम् - Come.


अनुवृते - Agreeable.


जने - Near men.


सुप्राव्ये - Suitable for protection.


त्रेधा इव - In three ways.


शिक्षतम् - To teach.


नान्द्यम् - Three times.


वहतम् - To get.


अक्षरा इव - Rain water.


अस्मे - We.


पृक्षः - Foodgrains.


पिन्वतम् - To give.


Explanation - Here Ashwini Kumars are requested to come to Yajmans house three times. Also they are requested to visit homes of three suitable and worthy for protection. He is requested to teach us three times along with providing happy and good results three times. He is requested not to stop doing these things but continue giving us these things repeatedly just as Indradev does not stop giving rains after one time.


Deep meaning:-This mantra describes the four stages-:वैश्वानर(Protection) तेजस (Energy) प्राग (Knowledge) and तूरीय (Pure Consciousness). If we want to keep our mind healthy then we have to compulsorily consume food. It is this food that keeps our mind, Chitta(चित्त) and intelligence happy (three things). Here Ashwini Kumars are requested that they help us achieve our nourishment, protection and augmentation.


📸Credit-lordmahadevstorirs


Cvgjbfsadfr

#मराठी


ऋग्वेद १.३४.४


त्रिर्व॒र्तिर्या॑तं॒ त्रिरनु॑व्रते॒ जने॒ त्रिः सु॑प्रा॒व्ये॑ त्रे॒धेव॑ शिक्षतं ।

त्रिर्नां॒द्यं॑ वहतमश्विना यु॒वं त्रिः पृक्षो॑ अ॒स्मे अ॒क्षरे॑व 


अनुवाद:


अश्विना - अश्विनी देव!


युवम् - आपण दोघे.


त्रिः - तीन.


वर्ति - घरात.


यातम् - यावे.


अनुवृते - अनुकूल.


जने - मनुष्यांच्या कडे.


सुप्राव्ये - रक्षा करणे योग्य.


त्रेधा इव - तीन प्रकाराने.


शिक्षतम् - शिक्षा देणे.


नान्द्यम् - तीन वेळा.


वहतम् - प्राप्त करणे.


अक्षरा इव - वर्षावाचे जल.


अस्मे - आम्ही.


पृक्षः - अन्न.


पिन्वतम् - प्रदान करणे.


भावार्थ - अश्विनी कुमारांना निवेदन केले आहे की त्यानी आमच्या घरी तीन वेळा यावे.त्याच बरोबर कोणतेही तीन अनुकूल आणि तीन रक्षण योग्य व्यक्तिंच्या घरी पण जावे. आम्हास आपण तीन वेळा शिक्षण द्यावे. तसेच तीन वेळा प्रसन्नेतेचे फळ द्यावे.अंततः तीन वेळा अन्न द्यावे.त्यांना एक विनंती आहे की हे कार्य करून मात्र थांबवू नये.जसे इंद्रदेव एकदा पर्जन्य देउन थांबत नाहीत तसे आपण सतत देत राहावे.



गूढार्थ:ह्या मंत्रात आत्म्याचे चार पाद सांगितलेले आहेत- वैश्वानर, तेजस,प्राग आणि तूरीय. जर आम्ही आपले मन स्वस्थ ठेवू इच्छितो तर त्या अवस्थे साठी आहार घेणे आवश्यक आहे. हा आहार मनाचे स्वास्थ्यासाठी आवश्यक आहे. हा आहार खाउन मन, बुद्धि आणि चित्त(तीन वस्तूंकडे संकेत) प्रसन्न राहतो.इथे अश्विनीकुमारांना प्रार्थना केलेली आहे की त्यांनी तीन वस्तू म्हणजे पोषण, रक्षण आणि संवर्धन करावेत.


#हिन्दी


ऋग्वेद १.३४.४


त्रिर्व॒र्तिर्या॑तं॒ त्रिरनु॑व्रते॒ जने॒ त्रिः सु॑प्रा॒व्ये॑ त्रे॒धेव॑ शिक्षतं ।

त्रिर्नां॒द्यं॑ वहतमश्विना यु॒वं त्रिः पृक्षो॑ अ॒स्मे अ॒क्षरे॑व 


अनुवाद:


अश्विना - अश्विनी देवों!


युवम् - आप दोनों।


त्रिः - तीन।


वर्ति - घर में।


यातम् - आइए।


अनुवृते - अनुकूल।


जने - मनुष्य के पास।


सुप्राव्ये - मनुष्य के पास रक्षा करने योग्य।


त्रेधा इव - तीन प्रकार से।


शिक्षतम् - शिक्षा देना।


नान्द्यम् - तीन बार।

:

वहतम् - प्राप्त करना।

'

अक्षरा इव - वर्षा का जल।


अस्मे - हमें।


पृक्षः - अन्न।


पिन्वतम् - प्रदान करना।


भावार्थ - अश्विनी कुमारों से यहां निवेदन किया गया है कि वे तीन बार हमारे घर पर आयें।साथ ही किन्हीं तीन अनुकूल मनुष्यो के पास आयें और तीन रक्षा करने योग्य मनुष्यों के पास आयें।हमें तीन बार शिक्षा दें। तीन बार प्रसन्नतादायक फल दें। अंततः हमें तीन बार अन्न प्रदान करें। मात्र यह काम बार बार करें केवल एक बार करके रूकें नहीं, ठीक उसी प्रकार जैसे इंद्रदेव बार बार वर्षाव करते हैँ।


गूढार्थ: इस मंत्र में आत्मा के चार पाद बताए गये हैं - वैश्वानर, तेजस, प्राग और तूरीय। अगर हमें अपने मन को स्वस्थ रखना है तो उसके लिए आहार या भोजन आवश्यक है। इसी आहार को खाकर मन, चित्त और बुद्धि ( तीन वस्तुओं की ओर संकेत) प्रसन्न रहते हैं। यहां अश्विनी कुमारों से प्रार्थना की गई है कि वे इसके लिए तीन स्थितियों का अर्थात पोषण, रक्षण और संवर्द्धन तीनों करें।



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