Rig Ved 1.34.5
The facts of the previous mantras are also repeated here. It also says that Atma itself is Prakash Swarup. We have to awaken the Atma for it to acquire the Prakash Swarup. Then only we experience the feeling of Pleasure and our imaginations too become pure or Satvik. Then only can we sleep peacefully.
त्रिर्नो॑ र॒यिं व॑हतमश्विना यु॒वं त्रिर्दे॒वता॑ता॒ त्रिरु॒ताव॑तं॒ धियः॑ ।
त्रिः सौ॑भग॒त्वं त्रिरु॒त श्रवां॑सि नस्त्रि॒ष्ठं वां॒ सूरे॑ दुहि॒ता रु॑ह॒द्रथं॑ ॥
Translation :
अश्विना - Ashwini Kumars!
युवम् - Both.
नः - We
त्रिः - Three.
रयिम् - Wealth.
वहतम् - To give.
देवताता - Yagyakarma with devtas.
उत - And.
धियः - Intellect.
अवतम् - Protection.
सौभदत्वम् - For good.
श्रवांसि - For foodgrains.
वाम् - Yours.
त्रिष्ठम् - Chariot with three wheels.
रथम् - On chariot.
सूरे - Of Surya.
दुहिता - Daughter.
आ रूहत् - Has climbed.
Explanation : Here Ashwini Kumars are requested to provide food and Wealth three times and To attend the Yagyakarma along with devtas three times. Also provide us intellect three times. To let us have the benefit of luck three times. Give us foodgrains three times. The daughter of Suryadev Usha is sitting on your chariot with three wheels.
Deep meaning:-The facts of the previous mantras are also repeated here. It also says that Atma itself is Prakash Swarup. We have to awaken the Atma for it to acquire the Prakash Swarup. Then only we experience the feeling of Pleasure and our imaginations too become pure or Satvik. Then only can we sleep peacefully.
ऋग्वेद १.३४.५
त्रिर्नो॑ र॒यिं व॑हतमश्विना यु॒वं त्रिर्दे॒वता॑ता॒ त्रिरु॒ताव॑तं॒ धियः॑ ।
त्रिः सौ॑भग॒त्वं त्रिरु॒त श्रवां॑सि नस्त्रि॒ष्ठं वां॒ सूरे॑ दुहि॒ता रु॑ह॒द्रथं॑ ॥
भाषांतर :
अश्विना - हे अश्विनीदेवांनों!
युवम् - आपण दोघे.
नः - आम्ही.
त्रिः - तीन.
रयिम् - धन.
वहतम् - प्रदान करणे.
देवताता - देवयुक्त यज्ञकर्म.
उत - आणि.
धियः - बुद्धी ची.
अवतम् - रक्षण.
सौभदत्वम् - सौभाग्यआस.
श्रवांसि - अन्नाचे.
वाम् - आपले.
त्रिष्ठम् - तीन टाकावा युक्त.
रथम् - रथात.
सूरे - सूर्याची.
दुहिता - पुत्री.
आ रूहत् - आरूढ आहेत.
भावार्थ: इथे अश्विनी कुमारांना निवेदन केलेले आहे की आपण आम्हास तीन वेळा धन आणि संपत्ती प्रदान करावे. देवयुक्त यज्ञकर्मात तीन वेळी यावेत. आम्हास बुध्दी पण तीनदा प्रदान करावेत. आमचे सौभाग्य संपादन तीन वेळा करावेत.घन धान्य पण तीन वेळा प्रदान करावे.आपले तीन चाकयुक्त रथात सूर्यपुत्री उषा आरूढ आहे.
गूढार्थ: पूर्व लिहिलेल्या मंत्रांच्या तत्व इथे ही सांगितलेले आहेत .ह्याच बरोबर आत्माला प्रकाशस्वरूप म्हटलेले आहे. इथे आत्म्याचे प्रकाशाने जाग्रत अवस्था प्रकाशित झाल्यावर आमच्यामधे एक सुखद अनुभूती येते,तेंव्हा जाउन आमची कल्पनामधे सात्विक अनुभूती येणार. झोप ही श्रेष्ठ येणार.
ऋग्वेद १.३४.५
त्रिर्नो॑ र॒यिं व॑हतमश्विना यु॒वं त्रिर्दे॒वता॑ता॒ त्रिरु॒ताव॑तं॒ धियः॑ ।
त्रिः सौ॑भग॒त्वं त्रिरु॒त श्रवां॑सि नस्त्रि॒ष्ठं वां॒ सूरे॑ दुहि॒ता रु॑ह॒द्रथं॑ ॥
अनुवाद:
अश्विना - हे अश्विनीदेवों!
युवम् - आप दोनो।
नः - हमें।
त्रिः - तीन।
रयिम् - धन।
वहतम् - प्रदान करना।
देवताता - यज्ञकर्म जो देवताओ से युक्त है।
उत - और।
धियः - बुद्धि की।
अवतम् - रक्षा।
सौभदत्वम् - सौभाग्य को।
श्रवांसि - अन्न को।
वाम् - आपके।
त्रिष्ठम् - ती पहिये वाला।
रथम् - रथ पर।
सूरे - सूर्य की।
दुहिता - पुत्री।
आ रूहत् - आऱूढ है।
भावार्थ:यहां अश्विनी कुमारों से निवेदन है कि अश्विनी कुमारो! आप हमे धन और संपत्ति तीन बार प्रदान करें।देवताओं की उपस्थिति वाले यज्ञकर्म में तीन बार आइए ।साथ ही बुद्धि भी हमे तीन बार प्रदान करें।हमारा सौभाग्य संपादन भी तीन बार करें। अन्न भी हमें तीन बार दें। आपके तीन पहिये वाले रथ में सूर्य पुत्री उषा चढा हुई हैं।
गूढार्थ: पूर्व लिखित मंत्र की ही बातें यहाँ दोहराने के साथ साथ यहां आत्मा को प्रकाश स्वरूप बताया गया है। यहां आत्मा के प्रकाश से जाग्रत अवस्था प्रकाशित हो,हम सुखद अनुभव करें,तब कहीं जाकर हमारी कल्पना सात्विक होगी और नींद भी आनंददायक होगी।
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