Rig Ved 1.34.6
Dhaatu means senses(इन्द्रियां). The three senses give us happiness 1) when senses are away from the subjects 2) when they are totally satisfied by their senses, it is only then our mind, intelligence and चित्त(inner inclinations) are happy, Atma experiences Chhidabhaas(Divine intelligence). The mind experiences wishes. But only when your mind is satisfied your senses too are satisfied. When mind is happy it becomes pure. Pure mind awakens your Virtue. Then only your thoughts are pure, Pure thoughts give you the Knowledge to realise the difference between Atma and Anaatma. Then only the jeev is Grateful.
त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः ।
ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥
Translation :
अश्विना - Oh Ashwini Kumars!
नः - For us.
त्रिः - Three.
भेषजा - Medicine.
दिव्यानि - From Dhyulok.
दत्तम् - To give.
पार्थिवानि - Produced from Prithvi.
अद्रभ्यःॐ - In space.
शंयोः - Son of Brahaspati.
ओमानम् - Special Happiness.
ममकाय - Mine.
सूनवे - For son.
शुभस्पति - The creator of sacred medicines.
त्रिधानु - Three roots.
शर्म - For happiness.
वहतम् - To give.
Explanation : Here Ashwini Kumars are requested to provide medicines availed from Space, Dhyulok and Prithvi three times. Also to protect our son in the same way as he had protected Brahaspati's son Shainyu. He is requested to provide Medicine and Happiness frequently but happiness should be permanent. This happiness should destroy Vaat(air+ ether), Pitta(fire+ water) and Kaff (water+ earth) in our body.
Deep meaning: Dhaatu means senses(इन्द्रियां). The three senses give us happiness 1) when senses are away from the subjects 2) when they are totally satisfied by their senses, it is only then our mind, intelligence and चित्त(inner inclinations) are happy, Atma experiences Chhidabhaas(Divine intelligence). The mind experiences wishes. But only when your mind is satisfied your senses too are satisfied. When mind is happy it becomes pure. Pure mind awakens your Virtue. Then only your thoughts are pure, Pure thoughts give you the Knowledge to realise the difference between Atma and Anaatma. Then only the jeev is Grateful.
📸Credit-Artkratfter
#मराठी
ऋग्वेद१.३४.६
त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः ।
ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥
भाषांतर :
अश्विना - अश्विन कुमार!
नः - आमच्या साठी.
त्रिः - तीन.
भेषजा - औषधी.
दिव्यानि - द्युलोकात.
दत्तम् - देणे.
पार्थिवानि - पृथ्वी वर उत्पन्न.
अद्रभ्यःॐ - अंतरिक्षात.
शंयोः - ब्रहस्पति पुत्र.
ओमानम् - सुख विशेष.
ममकाय - माझे.
सूनवे - पुत्रास.
शुभस्पति - शुभ औषधिंचे पालक.
त्रिधानु - तीन धातु.
शर्म - सुखासि.
वहतम् - प्रदान करणे.
भावार्थ:इथे अश्विनी कुमारांना म्हटलेले आहे की त्यांनी यजमानांसाठी स्वर्गलोकातून, पृथ्वीतून आणि अंतराळातून उत्पन्न झालेली औषधे तीन वेळा प्रदान करावीत. जसे त्यांनी ब्रहस्पति पुत्र शंयुचे रक्षण केले तसे रक्षण आमच्या पुत्राचे पण करावे.औषधं आणि सुख अनेकदा करावे परंतु सुख मात्र वारंवार द्यावे. हा सुख वात, पित्त आणि कफाचे शमन करणारे असावे.
गूढार्थ: इन्द्रियांना धातु म्हणतात. तीनही धातूंची प्रसन्नते मुळे १) इन्द्रिये जेंव्हा आपल्या हून मागे होतात २) आपल्या विषयाची पूर्णता ने तृप्त होतात, तर मन, बुद्धी आणि चित्त प्रसन्न होतात.आत्म्यात चिदाभासाची अनुभूती होते. मनाची संतुष्टिने इन्द्रिय प्रसन्न होतिल.मन प्रसन्न झाल्यावर निर्मल होतो.निर्मल मन सद्बुद्धिस प्रेरित करतो तेव्हा विचार शुद्ध होतात.शुद्ध विचार आत्मा अनात्माचा विवेक आणतात , तेंव्हा जीव कृतकृत्य होतो.
हिन्दी
ऋग्वेद१.३४.६
त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः ।
ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥
अनुवाद:
अश्विना - अश्विनीकुमारों!
नः - हमारे लिए।
त्रिः - तीन।
भेषजा - औषधियां.
दिव्यानि - द्युलोक की।
दत्तम् - देना।
पार्थिवानि - पृथ्वी पर उत्पन्न।
अद्रभ्यःॐ- अंतरिक्ष से।
शंयोः - बृहस्पति पुत्र।
ओमानम् - विशेष सुख।
ममकाय - मेरे।
सूनवे - पुत्र को।
शुभस्पति - शुभ औषधियों के पालक!
त्रिधानु - तीन धातु।
शर्म - सुख को।
वहतम् - प्रदान करना।
भावार्थ: यहां अश्विनी कुमारों से कहा गया है कि वे यजमानों को स्वर्गलोक से, पृथ्वी पर उत्पन्न औषधि और आकाश से प्राप्त होनेवाली औषधियां तीन बार प्रदान करें। बृहस्पति पुत्र शंयु की तरह उनके पुत्रों को भी सुरक्षा प्रदान करें। औषधियां और सुख बार बार प्रदान करें परंतु सुख सदा के लिए दें।यह सुख वात, पित्त और कफ का शमनकारक हो।
गूढार्थ: धातु कहते हैं इन्द्रियों को।तीनों धातुओं की प्रसन्नता से, १)क्योंकि इन्द्रियाँ जब अपने विषय से हटती हैं २)अपने विषय से पूर्णता से तृप्त हो जाती हैं, तो फिर मन, बुद्धि और चित्त प्रसन्न होते हैं। आत्मा में चिदाभास की अनुभूति होती है। मन के लिए कहा है कि इच्छा, शुभेक्षा मन मे होगी। मन की संतुष्टि इन्द्रियों की प्रसन्नता से होती है। मन प्रसन्न होने पर निर्मल हो जाता है। निर्मल मन सद्बुद्धि के लिए प्रेरित करता है। तब विचार शुद्व होगा, शुद्ध विचार से आत्मा अनात्मा का विवेक होगा और उससे जीव कृतकृत्य हो जाता है।
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