Rig Ved 1.36.14
Here Agni is the Purohit or Acharya of the devtas. He is Prakash Swarup and Acharya Swarup. He is requested to call upon one and only Parmatma who is Keval Swarup(Only one), Chaitanya Swarup, Sakshi Swarup and Nirgun Swarup. We plead for that Parmeshwar. He will be the one to provide Param Kalyan and all the things that are best and who else but Parmatma and Parmaarth. Tommorrow if at all we attain the throne of Indra or become Chakravarti Samrat, then also we shall require the best paath through Parmatma.
ऊ॒र्ध्वो नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ नि के॒तुना॒ विश्वं॒ सम॒त्रिणं॑ दह ।
कृ॒धी न॑ ऊ॒र्ध्वाञ्च॒रथा॑य जी॒वसे॑ वि॒दा दे॒वेषु॑ नो॒ दुवः॑ ॥
Translation :
उर्ध्वः - High.
नः - Ours.
केतुना - With Knowledge.
अंहसः - With Sins.
नि पाहि - To save.
विश्वम् - All.
अत्रिणम् - The wild demons.
सं वह - To burn.
चरथाय - To roam.
जीवसे - To keep alive.
उर्ध्वान् - High.
कृधि - To do.
दुवः - Wealth in the form of offerings.
देवेषु - Near devtas.
विदाः - To bring.
Explanation : Oh Agnidev! You rise high and protect us from sins through Knowledge. We request you to destroy the enemies of humanity and help us proceed on the road to progress and forward our prayers to devtas.
Deep meaning: Here Agni is the Purohit or Acharya of the devtas. He is Prakash Swarup and Acharya Swarup. He is requested to call upon one and only Parmatma who is Keval Swarup, Chaitanya Swarup, Sakshi Swarup and Nirgun Swarup. We plead for that Parmeshwar. He will be the one to provide Param Kalyan and all the things that are best and who else but Parmatma and Parmaarth. Tommorrow if at all we attain the throne of Indra or become Chakravarti Samrat, then also we shall require the best paath through Parmatma.
#मराठी
ऋग्वेद १.३६.१४
ऊ॒र्ध्वो नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ नि के॒तुना॒ विश्वं॒ सम॒त्रिणं॑ दह ।
कृ॒धी न॑ ऊ॒र्ध्वाञ्च॒रथा॑य जी॒वसे॑ वि॒दा दे॒वेषु॑ नो॒ दुवः॑ ॥
भाषांतर :
उर्ध्वः - उन्नत.
नः - आमचे.
केतुना - ज्ञान द्वारे.
अंहसः - पापाने.
नि पाहि - वाचवणे.
विश्वम् - सर्व.
अत्रिणम् - भक्षक राक्षसाचा.
सं वह - जाळणे.
चरथाय - वितरणे.
जीवसे - जीवित राहण्यासाठी.
उर्ध्वान् - उन्नत.
कृधि - करने.
दुवः - हवि रूप धन.
देवेषु - देवां जवळ.
विदाः - घेउन येणे.
भावार्थ:हेअग्निदेव! आपण ऊंच उठून श्रेष्ठ ज्ञानाद्वारे आमच्या पापांचे रक्षण करा. मानवतेच्या शत्रूंना नष्ट करून जीवनाला प्रगती पथावर जाण्यासाठी आम्हाला मदत करा. आणि देवतांकडे आमची प्रार्थना पोचवू द्या.
गूढार्थ: इथे अग्निदेवांना देवतांचे पुरोहित किंवा आचार्य म्हटले आहे. ते प्रकाशस्वरूप आणि आचार्य स्वरूप आहेत. त्यांना विनंती आहे की त्यांने एकमेव परमात्म्याला आवाहन करावे जे केवलस्वरूप,चैतन्य स्वरूप, साक्षी स्वरूप और निर्गुण स्वरूप आहे. ते परम आहेत, श्रेयस्कर आहेत तेच परमात्मा आणि परमार्थीची प्राप्ति करून देतील. उद्या जर आम्ही इन्द्र किंवा चक्रवर्ती राजा झालो तेंव्हा पण श्रेयस्कर मार्ग परमात्मात्मेची प्राप्ति हीच राहणार.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३६.१४
ऊ॒र्ध्वो नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ नि के॒तुना॒ विश्वं॒ सम॒त्रिणं॑ दह ।
कृ॒धी न॑ ऊ॒र्ध्वाञ्च॒रथा॑य जी॒वसे॑ वि॒दा दे॒वेषु॑ नो॒ दुवः॑ ॥
अनुवाद:
उर्ध्वः - उन्नत होकर।
नः - हमें।
केतुना - ज्ञान द्वारा।
अंहसः - पाप से।
नि पाहि - बचाना।
विश्वम् - सभी।
अत्रिणम् - भक्षक राक्षसों को।
सं वह - जलाना।
चरथाय - विचरण करना।
जीवसे - जीवित रहने के लिए।
उर्ध्वान् - उन्नत।
कृधि - करना।
दुवः - हवि रूप धन।
देवेषु - देवताओं के पास।
विदाः - लाना।
भावार्थ: हे अग्निदेव! आप ऊंचे उठकर श्रेष्ठ ज्ञान द्वारा हमारे पापों की रक्षा करें। मानवता के शत्रुओं को विनष्ट करें जीवन के प्रगति पथ पर हमें आगे बढायें और हमारी देवताओं तक प्रार्थना पहुंचायें।
गूढार्थ:यहां अग्नि को देवताओं का पुरोहित या आचार्य कहा गया है वे प्रकाशस्वरूप हैं आचार्य स्वरूप हैं। उनसे ऩिवेदन है कि वे एक ही देव की उपलब्धि करायें जो केवल स्वरूप, चैतन्य स्वरूप,साक्षी स्वरूप और निर्गुण स्वरूप है उस देव की उपलब्धि कराने की प्रार्थना की गई है। हमारा जो परम कल्याण है,श्रेयस्कर है वह है परमात्मा और परमार्थ की प्राप्ति है। कल को हम इन्द्र या चक्रवर्ती राजा भी बन जायें तब भी हमारा श्रेयस्कर मार्ग परमात्मा की प्राप्ति ही है।
📸 Credit - Diwana.mahakal_ka (Instagram handle)
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