Rig Ved 1.36.7
To do a Namaskaar or bow before someone means that you are humble or without pride and ego. This means that we politely bow before you since you are better than me. Pranipaat(प्राणीपात) also means the same that we respect you without any vanity. Surrendering False pride is Namaskaar. Even in devotion or bhakti we say the same thing. We want to convey to Ishwar that we have nothing to offer but we leave all our pride and offer you ourselves without any pride in our body. You destroy all our evil karma. We bow before you so that you assimilate us and make us that capable. Destruction of our evils and surrender is Namaskaar. Therefore we pray same thing before and after any big rituals.
तं घे॑मि॒त्था न॑म॒स्विन॒ उप॑ स्व॒राज॑मासते ।
होत्रा॑भिर॒ग्निं मनु॑षः॒ समिं॑धते तिति॒र्वांसो॒ अति॒ स्रिधः॑ ॥
Translation :
नमस्विनः - To bow.
स्वराजम् - Self illuminating.
तम् - His.
घ ईम् - Yours.
इत्था - This way.
उप - Upaasana.
आसते - To do.
स्त्रिधः - For enemies.
अति तितिर्वांसः - To defeat fast.
मनुषः - Yajman.
होत्राभिः - In seven numbers.
अग्निम् - Agnidev.
समिन्धते - Illuminated on all sides.
Explanation : Yajmans bow(do Namaskaar) before self illuminating Agnidev by making the offerings of Havi. In order to give a fast defeat to enemies Yajmans illuminate the Agni through Hotah.
Deep meaning: To do a Namaskaar or bow before someone means that you are humble or without pride and ego. This means that we politely bow before you since you are better than me. Pranipaat(प्राणीपात) also means the same that we respect you without any vanity. Surrendering False pride is Namaskaar. Even in devotion or bhakti we say the same thing. We want to convey to Ishwar that we have nothing to offer but we leave all our pride and offer you ourselves without any pride in our body. You destroy all our evil karma. We bow before you so that you assimilate us and make us that capable. Destruction of our evils and surrender is Namaskaar. Therefore we pray same thing before and after any big rituals.
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#मराठी
ऋग्वेद १.३६.७
तं घे॑मि॒त्था न॑म॒स्विन॒ उप॑ स्व॒राज॑मासते ।
होत्रा॑भिर॒ग्निं मनु॑षः॒ समिं॑धते तिति॒र्वांसो॒ अति॒ स्रिधः॑ ॥
भाषांतर :
नमस्विनः - नतमस्तक.
स्वराजम् - स्वयं प्रकाशित.
तम् - त्या.
घ ईम् - आपल्या.
इत्था - ह्या प्रकारे.
उप - उपासना.
आसते - करणे.
स्त्रिधः - शत्रुंचे.
अति तितिर्वांसः - तीव्रतेने पराजित करण्याची इच्छा.
मनुषः - यजमान.
होत्राभिः - सात संख्या.
अग्निम् - अग्निचे.
समिन्धते - सर्व बाजूने प्रज्जवलित.
भावार्थ: नतमस्तक होणारे यजमान स्वयं प्रकाशित अग्निला हविश देउन उपासना करतात. शत्रूंना तीव्र पराजय देण्याची कामना करणारे यजमान होतां द्वारे प्रज्जवलित अग्निला सर्व बाजूने प्रदीपिका करत आहेत.
गूढार्थ: नतमस्तक होणे किंवा नमस्कार करण्याचे अर्थ आहे की आम्ही अभिमानाचा त्याग केला.
ह्याचे अर्थ असे की आम्ही विनम्रतेने आपल्या समोर वाकून राहतो कारण आपण श्रेष्ठ आहात.प्रणिपात म्हणजे आम्ही आपले आदर करतो विना अभिमान करून. मिथ्या अभिमानाचा त्यागच नमस्कार असतो.भक्तिमधे पण आपण हेच म्हणतो कारण आपण ईश्वराला सांगतो की आम्ही आपल्याला काहीही देण्यास असमर्थ आहोत पण ह्या मिथ्या देहाचे अभिमान त्यागून आपला सर्वस्व देत आहोत, आपण आमचे कुटिल कर्मांना नष्ट करा.आम्ही नमन करत आहे आपण आम्हास आत्मसात करा. त्याचे योग्य बनवा. आपल्या विकारांना त्यागून हा नमस्कार आहे,समर्पण करणे हेच नमस्कार आहे.म्हणून अनुष्ठानाचे पुढे आणि नंतर प्रार्थना केली जाते.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३६.७
तं घे॑मि॒त्था न॑म॒स्विन॒ उप॑ स्व॒राज॑मासते ।
होत्रा॑भिर॒ग्निं मनु॑षः॒ समिं॑धते तिति॒र्वांसो॒ अति॒ स्रिधः॑ ॥
अनुवाद:
नमस्विनः - नतमस्तक होकर।(नमस्कार)
स्वराजम् - स्वयं प्रकाशित।
तम् - उस।
घ ईम् - आपकी।
इत्था - इस प्रकार से।
उप - उपासना।
आसते - करना।
स्त्रिधः - शत्रुओं को।
अति तितिर्वांसः - तीव्रता से पराजित करने का मन।
मनुषः - यजमान।
होत्राभिः - सात संख्या वाले।
अग्निम् - अग्नि को।
समिन्धते - हर तरफ से प्रज्जवलित करना।
भावार्थ:नतमस्तक होनेवाले यजमान स्वयं प्रकाशित अग्नि को हवि देकर उपासना करते हैं। शत्रुओं को करारी पराजय देने की कामना करनेवाले यजमान होताओं द्वारा प्रज्जवलित अग्नि को सभी तरह से प्रदीप्त करते हैं।
गूढार्थ: नमस्कार या नतमस्तक होने का अर्थ है अभिमान से रहित होना।इसका अर्थ है कि हम विनम्रता से आपके सामने झुकते हैं क्योंकि आप हमसे श्रेष्ठ हैं। प्रणिपात का भी यही अर्थ है कि हम आपका आदर करते हैं बिना किसी अभिमान के। मिथ्या अभिमान त्यागने को नमस्कार कहते हैं, यहां भक्ति में भी यही कहते हैं क्योंकि हम कहना चाहते हैं कि ईश्वर हम आपको कुछ दे तो नही सकते पर इस मिथ्या देह का अभिमान त्यागकर अपना सर्वस्व दे रहें हैं, आप हमारे कुटिल कर्म को नष्ट करें। हम नमन करते है कि आप हमको आत्मसात करें,उस लायक बनें। हमारे विकारों का त्याग ही नमस्कार है, समर्पण करना ही नमस्कार है। इसीलिये अनुष्ठान के पहले और अंत मे यही प्रार्थना करते हैं।
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