Rig Ved 1.36.8
If your inner inclinations are strong and healthy, then your body and mind are healthy. It means that we are free from evil and vices. Mind will be free from all negativity. This enables us to perform good deeds. This means that we have attained a pure mind capable of meeting the Parmatma. This is what Shruti Bhagwati Ved wants to say.
घ्नंतो॑ वृ॒त्रम॑तर॒न्रोद॑सी अ॒प उ॒रु क्षया॑य चक्रिरे ।
भुव॒त्कण्वे॒ वृषा॑ द्यु॒म्न्याहु॑तः॒ क्रंद॒दश्वो॒ गवि॑ष्टिषु ॥
Translation:
घ्नन्तः - To attack.
वृत्रम् - Vritra.
अतरन् - To kill.
क्षयाय - In order to stay.
रोदसी - Dhyulok Prithvi.
अपः - Space.
उरू - Spread.
चक्रिरे - Done.
गविष्टिषु - To wage a war for cow wealth.
क्रन्दत् - To neigh.
अश्वः - Horses.
कण्वे - Kanva.
द्युम्नी - Wealthy.
आहुतः - Yagya on all sides.
वृषा - For wishes.
भुवत् - To rain.
Explanation : This mantra says the devtas killed Vritra. In order to make more place habitable they spread around Dhyulok, Prithvi and Space. Their wish for horses, cows etc made Kanva rishi light a Agni and make them strong through Yagya.
Deep meaning: If your inner inclinations are strong and healthy, then your body and mind are healthy. It means that we are free from evil and vices. Mind will be free from all negativity. This enables us to perform good deeds. This means that we have attained a pure mind capable of meeting the Parmatma. This is what Shruti Bhagwati Ved wants to say.
📸 Credit - artbygurudesign(Instagram handle)
#मराठी
ऋग्वेद १.३६.८
घ्नंतो॑ वृ॒त्रम॑तर॒न्रोद॑सी अ॒प उ॒रु क्षया॑य चक्रिरे ।
भुव॒त्कण्वे॒ वृषा॑ द्यु॒म्न्याहु॑तः॒ क्रंद॒दश्वो॒ गवि॑ष्टिषु ॥
भाषांतर :
घ्नन्तः - प्रहार करणे.
वृत्रम् - वृत्र.
अतरन् - मारणे.
क्षयाय - राहण्यासाठी.
रोदसी - द्यावा पृथ्वी.
अपः - अंतरिक्ष.
उरू - विस्तृत.
चक्रिरे - करणे.
गविष्टिषु - गोधन साठी युद्ध.
क्रन्दत् - शब्द करणे.
अश्वः - अश्व.
कण्वे - कण्व.
द्युम्नी - धनवान.
आहुतः - चारही बाजून यज्ञ.
वृषा - कामनांचे.
भुवत् - वर्षा होणे.
भावार्थ: ह्या मंत्रामध्ये म्हटलेले आहे की देवतांनी वृत्राचे वध केला. प्राणीमात्रांस राहाण्यास अनुकूल अशा द्युलोक, पृथ्वी आणि अंतरिक्षाचा विस्तार केला. गो,अश्व इत्यादिंची इच्छा करून कण्व ऋषीने अग्निला प्रकाशित करून आहुतींचे द्वारे त्यांना बलवान केले.
गूढार्थ: जर इन्द्रिये प्रसन्न आणि स्वस्थ आहेत तर शरीर आणि मन स्वस्थ असते .म्हणजे अाम्ही आता विषय रहित आणि विकार रहित झालो. मन आता राग द्वेषाने रहित झाले.तेंव्हाच सत्कर्म करण्याचा आभास येतो.अर्थात ही सात्विक मनाची उपलब्धी आहे ज्या मधे परमात्माचे साक्षात्कार करण्याची क्षमता असते. हे साक्षात्काराची बातमी श्रुति भगवती म्हणत आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३६.८
घ्नंतो॑ वृ॒त्रम॑तर॒न्रोद॑सी अ॒प उ॒रु क्षया॑य चक्रिरे ।
भुव॒त्कण्वे॒ वृषा॑ द्यु॒म्न्याहु॑तः॒ क्रंद॒दश्वो॒ गवि॑ष्टिषु ॥
अनुवाद:
घ्नन्तः - प्रहार करना।
वृत्रम् - वृत्र।
अतरन् - मारना।
क्षयाय - रहने के लिए।
रोदसी - द्यावा पृथ्वी।
अपः - अंतरिक्ष।
उरू - विस्तृत।
चक्रिरे - किया।
गविष्टिषु - गोधन पाने के लिए युद्ध।
क्रन्दत् - हिहिनाते हुए।
अश्वः - घोडे।
कण्वे - ऋषि कण्व।
द्युम्नी - धनवान।
आहुतः - हर तरफ से यज्ञ।
वृषा - कामनाओं का।
भुवत् - वर्षा होना।
भावार्थ:इस मंत्र में कहा गया है कि देवताओं ने वृत्र का वध कर दिया। प्राणियों के लिए अनुकूल निवास हेतु उन्होंने द्युलोक, पृथ्वी और अंतरिक्ष का विस्तार किया। गो, अश्व आदि की कामना हेतु कण्व ऋषि ने अग्नि को प्रकाशित कर आहुतियोॆं द्वारा उन्हें बलवान बनाया।
गूढार्थ :अगर इन्द्रियां प्रसन्न और स्वस्थ हैं तो शरीर स्वस्थ है और मन स्वस्थ है, इसका अर्थ हुआ की हम विषय रहित और विकार रहित हैं। मन राग द्वेष से रहित है तभी उसको सत्कर्म करने का आभास होगा, मतलब की वह सात्विक मन की उपलब्धि जिसमें परमात्मा से साक्षात्कार करने की क्षमता हो। इसी साक्षात्कार की बात यहां श्रुति भगवती कर रहीं हैं।
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