Rig Ved 1.37.1
This mantra points out towards ब्राम्ही वृत्ति (Bramhi Vritti) where the seeker or Sadhak only meditates about Parmatma. Lokpals like Brahma etc, Sanak etc and Shukdeoji and other Paramhansas do not leave the thought of Brahm even for a second. Some people just talk about Brahma but lack this inclination, so they do not get Moksha. Those who possess this vritti always carry the best thoughts of Brahma.
क्री॒ळं वः॒ शर्धो॒ मारु॑तमन॒र्वाणं॑ रथे॒शुभं॑ ।
कण्वा॑ अ॒भि प्र गा॑यत ॥
Translation:-
कण्वः - Maharishi belonging to the clan or gotra of Kanva.
वः - For us.
क्रीळम् - Follow.
रथेशुभम् - Sitting on the chariot.
मारूतम् - Marudgans.
शर्धः - Of strength.
अभि - Aim.
प्र गायत - To praise.
Explanation:- Oh the Rishis belonging to Kanva gotra! The playful, Strong and non violent Marudgans are sitting on their Chariot. You are requested to sing their praises.
Deep meaning: This mantra points out towards ब्राम्ही वृत्ति (Bramhi Vriti) where the seeker or Sadhak only meditates about Parmatma. Lokpals like Brahma etc, Sanak etc and Shukdeoji and other Paramhansas do not leave the thought of Brahm even for a second. Some people just talk about Brahma but lack this inclination, so they do not get Moksha. Those who possess this Vritti always carry the best thoughts of Brahma.
📸Credit - Lordshivaspirituality (Instagram handle)
#मराठी
ऋग्वेद १.३७.१
क्री॒ळं वः॒ शर्धो॒ मारु॑तमन॒र्वाणं॑ रथे॒शुभं॑ ।
कण्वा॑ अ॒भि प्र गा॑यत ॥
भाषांतर:
कण्वाः - कण्व गोत्रात उत्पन्न महर्षी.
वः - आमच्या साठी.
क्रीळम् - विहरणशील.
रथेशुभम् - रथामधे सजलेले.
मारूतम् - मरूदगण.
शर्धः - बळाला.
अभि - लक्ष्य.
प्र गायत - स्तुति करणे.
भावार्थ:हे कण्व गोत्राचे ऋषी! क्रिडा युक्त, बलवान आणि अहिंसक प्रवृत्तीचे मरूदगण रथात शोभायमान आहेत.आपण त्यांचे स्तुती गान करावे.
गूढार्थ: इथे ब्राम्ही वृत्ति कडे संकेत आहे जिथे साधक प्रत्येक क्षणी परमात्म्याचे चिंतन करत असतो.ब्रम्हादी लोकपाल, सनकादी आणि शुकदेवादी सारख्या परमहंसांप्रमाणे एकही क्षण विना ब्रम्हमय होउन राहतच नाही. जे लोक ब्रम्हाबद्दल बोलतात पण ह्या वृत्तिने रहित असतात त्यांना मोक्ष मिळत नाही आणि ज्यांच्या मधे ही वृत्ति असते ते श्रेष्ठ ब्रह्मभावाला प्राप्त करतात.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३७.१
क्री॒ळं वः॒ शर्धो॒ मारु॑तमन॒र्वाणं॑ रथे॒शुभं॑ ।
कण्वा॑ अ॒भि प्र गा॑यत ॥
अनुवाद:
कण्वाः - कण्व गोत्र में उत्पन्न महर्षि.
वः - अपने लिए।
क्रीळम - विहरणशील।
रथेशुभम् - रथ पर सजे हुए।
मारूतम् - मरूदगण ।
शर्ध - बल को।
अभि - निशानाृ
प्र गायक - स्तुति करना।
भावार्थ:हे कण्व गोत्र के ऋषियों! क्रीड़ा युक्त बलवान और अहिंसक वृत्तिवाले मरूदगण रथ पर सजे हुए हैं। आप सब उनके लिए स्तुति गान करें।
गूढार्थ: यहां ब्राम्ही वृत्ति की ओर संकेत है जहां साधक प्रत्येक क्षण परमात्मा का ही चिन्तन करता है। ब्रह्मादि लोकपाल, सनकादि तथा शुकदेवादि परमहंसों के समान एक क्षण भी ब्रह्ममय होने से हटना नहीं है।जो ब्रह्म की तो बात करते हैं पर इस वृत्ति से रहित हैं वे मोक्ष नहीं पाते।जिनमें यह वृत्ति पायी जाती है वे ही श्रेष्ठ ब्रह्मभाव को प्राप्त होते हैँ।
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