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Writer's pictureAnshul P

RV 1.37.10

Updated: Jan 19, 2021


Rig Ved 1.37.10


Praan is dependent on Water to live. There will be no Praan without water. This same water provides strength too. On acquiring strength there comes speech accomplishment. It is then we attain the Param Gyan of Parmatma. This makes the Jeev grateful


उदु॒ त्ये सू॒नवो॒ गिरः॒ काष्ठा॒ अज्मे॑ष्वत्नत ।

वा॒श्रा अ॑भि॒ज्ञु यात॑वे ॥


Translation :


उत् ऊ - Beautifully.


त्ये - They.


सूनवः - One who gives birth.


गिरः - Sound.


काष्ठाः - Of Water.


अज्मेषु - While going.


अत्नतः- To spread.


वाश्राः - Neighing cows.


अभिज्ञु - Knee deep in water.


यातवे - For going.


Explanation : The sound making Marudgans have bought out the water for Yagya. In that flowing water the thirsty cows go down on their knees neighing loudly.


Deep meaning: Praan is dependent on Water to live. There will be no Praan without water. This same water provides strength too. On acquiring strength there comes speech accomplishment. It is then we attain the Param Gyan of Parmatma. This makes the Jeev grateful.




#मराठी



ऋग्वेद १.३७.१०



उदु॒ त्ये सू॒नवो॒ गिरः॒ काष्ठा॒ अज्मे॑ष्वत्नत ।

वा॒श्रा अ॑भि॒ज्ञु यात॑वे ॥


भाषांतर:


उत् ऊ - सुंदर रूपाने.


त्ये - ते.


सुनवः - जन्म देणारे.


गिरः - शब्द नाद.


काष्ठाः - पाण्याचे.


अज्मेषु - चालत वेळी.


अत्नतः- वाढवणे.


वाश्राः - हंबरत असलेली गाई.


अभिज्ञु - गुडघ्यावर पर्यंत पाणी.


यातवे - जाण्यासाठी.


भावार्थ:शब्द नाद करणारे मरूदगण यज्ञासाठी जल निःसृत करत आहे. त्या वाहता पाण्यात तहानलेल्या गाई गुडघे टेकून आनंदाने हंबरत आहेत.


गूढार्थ: प्राण हा सर्वस्वी पाण्यावर अवलंबून असतो कारण पाण्याविना प्राण असंभव आहे..पाण्याने अग्नि प्राप्त होते ज्याने तेज उत्पन्न होतो. ते प्राप्त होउन वाग् सिद्धी येते. तेंव्हा परमात्मा प्राप्त झाल्यावर जीव कृतकृत्य होतो.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३७.१०



उदु॒ त्ये सू॒नवो॒ गिरः॒ काष्ठा॒ अज्मे॑ष्वत्नत ।

वा॒श्रा अ॑भि॒ज्ञु यात॑वे ॥


अनुवाद:


उत् ऊ - सुंदर तरह से।


त्ये - वे।


सुनवः - जन्म देनेवाला।


गिरः - शब्द या वाणी।


काष्ठाः - पानी का।


अज्मेषु - चलते समय।


अत्नतः- बढाना।


वाश्राः - गाय का रंभाना।


अभिज्ञु - घुटनों तक पानी।


यातवे - जाना।


भावार्थ:शब्द नाद करनेवाले मरूदों ने यज्ञ के जल को निःसृत किया। उस बहनेवाले जल से गायें रंभाते हुए घुटने टेक कर जल पीने के लिए विवश हैं।


गूढार्थ: जल से प्राण हैं क्योंकि वह छूट जाने से प्राण नही रहेंगें. जल से ही अग्नि द्वारा बल मिलेगा, इस बल से तेज मिलेगा. तेज प्राप्त होने पर वाग् सिद्धी मिलेगी। तब कहीं जाकर परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। इससे जीव कृतकृत्य हुआ।



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