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Writer's pictureAnshul P

RV 1.37.15


Rig Ved 1.37.15


To fulfill the Sidhhi(Achievement) of a Karma we have to perform a ritual. Here Havi means to give something in offering to achieve a fulfillment.For this we have to destroy our egotism. The only hurdle between us and Parmatma is our ego. The distance to destroy this ego is same as the distance to reach Parmatma.


अस्ति॒ हि ष्मा॒ मदा॑य वः॒ स्मसि॑ ष्मा व॒यमे॑षां ।

विश्वं॑ चि॒दायु॑र्जी॒वसे॑ ॥


Translation :


वः - Yours.


मदाय - For satisfaction.


ष्म - Surely.


एषाम् - Is.


अयम् - We.


स्मसि ष्म - Surely is.


जीवरो - To live.


विश्वम् चित् - All.


आयुः - Age.


Explanation :Oh Marudgans! We have kept the havi ready for your happiness. We remember you in order to attain a long full happy life from you.


Deep meaning: To fulfill the Sidhhi(achievement) of a Karma we have to perform a ritual. Here Havi means to give something in offering to achieve a fulfillment.For this we have to destroy our egotism. The only hurdle between us and Parmatma is our ego. The distance to destroy this ego is same as the distance to reach Parmatma.


📸 Credit - Mahadev_devadidev(Instagram handle)



#मराठी


ऋग्वेद १.३७.१५


अस्ति॒ हि ष्मा॒ मदा॑य वः॒ स्मसि॑ ष्मा व॒यमे॑षां ।

विश्वं॑ चि॒दायु॑र्जी॒वसे॑ ॥


भाषांतर :


वः - आपली.


मदाय - तृप्ति साठी.


ष्म - आहे.


एषाम् - आपण.


अयम् - आम्ही.


स्मसि ष्म - निश्चितच.


जीवरो - जगण्या साठी.


विश्वम् चित् - सर्व.


आयुः - आयु.


भावार्थ:हे मरूदगण! आपले प्रसन्नते साठी हा हविश तयार आहे.आमच्या संपूर्ण सुखद आयु प्राप्त करण्या साठी आम्ही आपले स्मरण करतो.


गूढार्थ: कर्माच्या सिद्धीसाठी आम्ही अनुष्ठान करतो. हविश चे तात्पर्य आहे अर्पण अर्थात आम्ही सिद्धी प्राप्ति साठी समर्पण करतो.असे केल्यावर आम्ही अहंकार रहित होतो.आमच्या आणि परमात्म्याचा मधे असतो अहंकार. जितके अंतर अहंकार रहित होण्यास पार लागते तेवढेच अंतर परमात्मा प्राप्ति साठी पार करावे लागते.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३७.१५


अस्ति॒ हि ष्मा॒ मदा॑य वः॒ स्मसि॑ ष्मा व॒यमे॑षां ।

विश्वं॑ चि॒दायु॑र्जी॒वसे॑ ॥


अनुवाद:


वः - आपकी।


मदाय - संतुष्टि के लिए।


ष्म - है।


एषाम् - आपके।


अयम् - हमलोग।


स्मसि ष्म - निश्चित है।


जीवरे - जीने के लिए।


विश्वम् चित् - सभी।


आयुः - आयु।


भावार्थ:हे मरूतों!आपकी प्रसन्नता के लिए यह हविश तैयार है। हम सब समस्त सुखमय अायु प्राप्त करने के लिए आपका स्मरण करते हैं।



गूढार्थ: कर्म की सिद्धि के लिए अनुष्ठान का रूप दिया जाता है। हवि का तात्पर्य हो गया अर्पण जहां हम सिद्धि पाने के लिए समर्पण करते हैं। ऐसा करने से हम अहंकार से रहित हो जाते हैं। हमारे और परमात्मा के बीच में प्रतिबंध है तो केवल अहंकार का।जितनी दूरी अहंकार से रहित होने में है उतनी ही दूरी परमात्मा को प्राप्त करने में है।

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