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RV 1.37.2

Updated: Jan 11, 2021


Rig Ved 1.37.2


Here 'Marudgans came with a loud rambling noise' means that they have entered the Pran( there are ten types of Pran and sub Pran ie प्राणPraan), अपान( Apaan), उदान(Udan), व्यान(Vyan), समान(Samaan), धनंजय(Dhananjay),देवदत्त(Devdatt), क्रिकल( Krikal), नाग(Naag) and कूर्म(Kurm). It means that

we have attained strength. Through this strength we have to attain that Param Vastu that also through this body or Upaadhi. The body exists because of food. It works due to Praan through Annamay kosh(अन्नमय कोष), Manomay kosh(मनोमय कोष), Vigyanmay kosh( विज्ञानमय कोष) and Anandmai kosh( आनंदमय कोष). This achievement will be possible only through zeal(उत्साह) in our inclinations(वृत्ति). Shruti Bhagwati is requesting for the same.


ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभिः॑ सा॒कं वाशी॑भिरं॒जिभिः॑ ।

अजा॑यंत॒ स्वभा॑नवः ॥



Translation:


ये - Those who.


पृषतिभीः - with circular mark sitting on a deer.


स्वभानवः - Shining with one's own glow.


वाशीभिः - Loud rambling.


ऋष्टिभिः - Weapons.


अञ्जिभिः - Different ornaments.


साकम् - All.


अजायन्त - To take birth.


Explanation : The Marudgans with their self illuminating glow and with their spotted deer, wearing different ornaments have appeared making loud rambling sounds.


Deep meaning: Here 'Marudgans came with a loud rambling noise' means that they have entered the Pran( there are ten types of Pran and sub Pran ie प्राणPraan), अपान( Apaan), उदान(Udan), व्यान(Vyan), समान(Samaan), धनंजय(Dhananjay),देवदत्त(Devdatt), क्रिकल( Krikal), नाग(Naag) and कूर्म(Kurm). It means that

we have attained strength. Through this strength we have to attain that Param Vastu that also through this body or Upaadhi. The body exists because of food. It works due to Praan through Annamay kosh(अन्नमय कोष), Manomay kosh(मनोमय कोष), Vigyanmay kosh( विज्ञानमय कोष) and Anandmai kosh( आनंदमय कोष). This achievement will be possible only through zeal(उत्साह) in our inclinations(वृत्ति). Shruti Bhagwati is requesting for the same.



📸 Credit - hindu_samrajya._ (Instagram handle)



#मराठी


ऋग्वेद १.३७.२



ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभिः॑ सा॒कं वाशी॑भिरं॒जिभिः॑ ।

अजा॑यंत॒ स्वभा॑नवः ॥



भाषांतर:


ये - ज्यांने.


पृषतिभीः - बिन्दु चिन्ह संयुक्त मृगीरूप वाहन बरोबर.


स्वभानवः - स्वतःची दीप्ति ने प्रकाशित.


वाशीभिः - जोरदार गर्जना.


ऋष्टिभिः - आयुध.


अञ्जिभिः - विभिन्न अलंकार.


साकम् - सर्व.


अजायन्त - जन्म घेणे.


भावार्थ:हे मरूदगण स्वतःच्या दीप्तिने प्रकाशित, डाग युक्त मृगाच्या वाहन सहित आणि विविध आभूषण धारण करून घोर गर्जना करीत प्रकट झाले.


गूढार्थ: इथे म्हटले आहे की गर्जना करून मरूदगण आले ह्याचे तात्पर्य आहे की मरूदगण म्हणजे प्राण, ह्यांचे प्रवेश झाले( दहा प्राण आणि उपप्राण आहेत प्राण,अपान, उदान,व्यान, समान, देवदत्त, धनंजय, क्रिकल,नाग आणि कूर्म) अर्थात बळ प्राप्त झाले.ह्या बळाने आम्ही परम वस्तू प्राप्त करू आणि ती ही ह्या शरीर रूपी उपाधी मार्फत. अन्नामुळे शरीर आहे.शरीर चालत आहे प्राणांमुळे जसे अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष आणि आनंदमय कोषाने.तर हे उपलब्धी अर्थात परम वस्तूची प्राप्ति होइल उत्साहाने, तशीच ती वृत्ती असणार. हीच वृत्तीसाठी श्रुति भगवती म्हणत आहे.




#हिन्दी


ऋग्वेद १.३७.२


ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभिः॑ सा॒कं वाशी॑भिरं॒जिभिः॑ ।

अजा॑यंत॒ स्वभा॑नवः ॥



अनुवाद:


ये - जिन ने।


पृषतिभीः - बिन्दु चिन्ह संयुक्त मृगीरूप वाहन के साथ।


स्वभानवः - स्वयं की दीप्ति से प्रकाश।


वाशीभिः - जोरदार गर्जन।


ऋष्टिभिः - अायुध।


अञ्जिभिः - विभिन्न अलंकार युक्त।


साकम् - सभी।


अजायन्त - जन्म लेना।


भावार्थ:ये मरूदगण स्वतः की दीप्ति से प्रकाशित धब्बों वाले मृगी के वाहन सहित तथा विभिन्न आभूषणों से युक्त होकर घोर गर्जना करते हुए प्रगट हुए ।


गूढार्थ: यहां गर्जना करते हुए का तात्पर्य है कि मरूदगण अर्थात उनका प्राण में प्रवेश हुअा(दस तरह के प्राण और उप प्राण हैं- प्राण, अपान, उदान,व्यान, समान, देवदत्त, धनंजय, क्रिकल, नाग और कूर्म )।अर्थात बल प्राप्त हुआ।इस बल से हमे परम वस्तु को प्राप्त करना है वह भी इसी उपाधि या शरीर से।ये अन्न से शरीर है, शरीर प्राण से चलता है जैसे मनोमय कोष अन्नमय कोष आनंदमय कोष विज्ञानमय कोष । तो उस उपलब्धि अर्थात ईश्वर की प्राप्ति के लिए जब उत्साह होगा तो ही वैसी वृत्ति होगी।यही श्रुति भगवती कह रहीं हैं।





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