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Writer's pictureAnshul P

RV 1.37.6


Rig Ved 1.37.6


Here enemies are our thoughts. If our thoughts become pure then our mind becomes pure then our knowledge becomes pure. Then all the vices and evils are neutralized. If the vices and वासना(Vaasna) are destroyed we acquire a Pure form or Swarup. Here Dhyulok means Prakash Swarup or the enlightened one, so we too experience enlightenment.


को वो॒ वर्षि॑ष्ठ॒ आ न॑रो दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ धूतयः ।

यत्सी॒मंतं॒ न धू॑नु॒थ ॥



Translation :


दिवश्च - Oh from Dhyulok !


ग्मश्च - From Bhulok too.


धूतय - Makes one shiver.


नरः - Oh the leader!


वः - You people.


आ - From all sides.


वर्षिष्ठ - Elder.


कः - Who?


यत् - Which.


सीम् - From all sides.


अन्तम् - Front portion.


न - Like this.


धूनुथ - To run.


Explanation: Oh Marudgans! You have the power to make Dhyulok and Bhulok tremble. Who can be bigger than you? You have the power to make the tip of a tree and the enemies shiver.


Deep meaning: Here enemies are our thoughts. If our thoughts become pure then our mind becomes pure then our knowledge becomes pure. Then all the vices and evils are neutralized. If the vices and वासना(Vaasna) are destroyed we acquire a Pure form or Swarup. Here Dhyulok means Prakash Swarup or the enlightened one, so we too experience enlightenment.




📸 Credit - Sumantra sir (Instagram handle)



#मराठी


ऋग्वेद १.३७.६


को वो॒ वर्षि॑ष्ठ॒ आ न॑रो दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ धूतयः ।

यत्सी॒मंतं॒ न धू॑नु॒थ ॥



भाषांतर :


दिवश्च - हे द्युलोकातले!


ग्मश्च - भूलोक चे पण.


धूतय - कंपन उत्पन्न करणारे.


नरः - हे नेता!


वः - आपण.


आ - चारही बाजू.


वर्षिष्ठ - मोठे.


कः - कोण?


यत् - ज्याने.


सीम् - चारही बाजू.


अन्तम् - अग्रभागी.


न - सारखे.


धूनुथ - चालवणे.


भावार्थ -हे मरूदगण! आपण द्युलोक आणि भूलोक यांना कंपित करण्यास सक्षम आहात. आपल्यापेक्षा कोण मोठा असणार? जे प्रत्येक क्षणी कोण्त्याही वृक्षाचे अग्रभागास हलवून टाकत असतो आणि शत्रूंना कंपित करत असतो.


गूढार्थ: इथे शत्रू म्हणजे विचार. जर आमचे विचार शुद्ध झाले तर मन शुद्ध होइल. मन शुद्ध झाले की बुद्धी पण शुद्ध होइल.तेंव्हा समस्त कामनांचा आणि वासनांचा निषेध होणार.कामना आणि वासनांची निवृती झाल्यावर आम्ही शुद्ध स्वरूप होऊ. द्युलोकाचे तात्पर्य प्रकाश आहे. आम्ही शुद्ध प्रकाश स्वरूप प्राप्त करू शकतो.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३७.६



को वो॒ वर्षि॑ष्ठ॒ आ न॑रो दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ धूतयः ।

यत्सी॒मंतं॒ न धू॑नु॒थ ॥



अनुवाद:


दिवश्च - हे द्युलोक के और!


ग्मश्च - भूलोक को भी।


धूतय - कमरा देनेवाले।


नरः - हे नेता!


वः - आपके बीच।


आ - चारों तरफ।


वर्षिष्ठ - बडा।


कः - कौन?


यत् - जिस।


सीम् - चारों ओर।


अन्तम् - अग्रभाग।


न - की तरह।


धूनुथ - चलाइये।


भावार्थ - हे मरूतों! आप द्युलोक और भूलोक को कंपित कर देते हैं। आप मे बडा कौन है?जो हर समय किसी भी वृक्ष के अग्रभाग को हिला सकते हैं और शत्रुओं को कंपित करते हैं।


गूढार्थ: यहां शत्रु से तात्पर्य विचार से है। अगर हमारे विचार शुद्ध हो जायें तो मन शुद्ध हो जायेगा, मन शुद्ध हो जाने से बुद्धि शुद्ध हो जायेगी।तब समस्त प्रकार की कामनाओं और वासनाओं का निषेध हो जायेगा।कामना और आत्मा की निवृति से हमारा शुद्व स्वरूप हो जायेगा। द्युलोक का तात्पर्य प्रकाश लोक से है। तो हम प्रकाश स्वरूप प्राप्त कर सकते हैं।




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