Rig Ved 1.37.7
Agni is Gyan Swarup and Vaayu is called Praan Swarup and they are indestructible. No hurdle can halt their speed. The biggest power is being self strong and the biggest power is your self power. So these divine powers will destroy all your hurdles therefore they are compared to mountains.
नि वो॒ यामा॑य॒ मानु॑षो द॒ध्र उ॒ग्राय॑ म॒न्यवे॑ ।
जिही॑त॒ पर्व॑तो गि॒रिः ॥
Translation :
वः - Oh Maruts!
उग्राय - Tough.
मन्यवे - Frightening.
यामाय - Frightened of movement.
मानुषः - These men.
नि दध्ने - To be strong pillar.
पर्वतः - Chain of mountain.
गिरिः - Mountain.
जिहित - To move.
Explanation :Oh Marudgans! Your strong supporters too are searching for a strong support due to your strong emotions since you have the power to shake the mountains and rocks.
Deep meaning: Agni is Gyan Swarup and Vaayu is called Praan Swarup and they are indestructible. No hurdle can halt their speed. The biggest power is being self strong and the biggest power is your self power. So these divine powers will destroy all your hurdles therefore they are compared to mountains.
📸Credit - oyenipun sir (Instagram handle)
#मराठी
ऋग्वेद १.३७.७
नि वो॒ यामा॑य॒ मानु॑षो द॒ध्र उ॒ग्राय॑ म॒न्यवे॑ ।
जिही॑त॒ पर्व॑तो गि॒रिः ॥
भाषांतर:
वः - हे मरूतानो!
उग्राय - कठोर.
मन्यवे - भयंकर.
यामाय - गति ने भय.
मानुषः - मानसांनी.
नि दध्ने - मजबूत स्तंभ असणे.
पर्वतः - अनेक श्रृंग युक्त.
गिरिः - डोंगर.
जिहित - चालणे.
भावार्थ:हे मरूदगण! आपले प्रबळ समर्थक आवेशामुळे भयभीत मनुष्य सुदृढ सहारा शोधत असतो.कारण आपण मोठे पहाड आणि पत्थरांमधे कंपन उत्पन्न करतात.
गूढार्थ अग्निला ज्ञान स्वरूप परमात्मा आणि वायुला प्राण स्वरूप परमात्मा म्हटले आहे.आणि हे अविनाशी आहेत.कोणतीही बाधा ह्यांना थांबवू शकत नाही. सर्वात मोठी शक्ति आहे आत्मा शक्ती आणि सर्वात मोठे आहे आत्मबळ.तर ही परमात्म शक्ति समस्त विघ्न बाधांना नाहीसे करतात म्हणून त्याची तुलना पहाडाशी केली आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३७.७
नि वो॒ यामा॑य॒ मानु॑षो द॒ध्र उ॒ग्राय॑ म॒न्यवे॑ ।
जिही॑त॒ पर्व॑तो गि॒रिः ॥
अनुवाद:
वः - हे मरूतों!
उग्राय - कठोर।
मन्यवे - भयानक।
यामाय - गति के डर से।
मानुषः - मनुष्यो न्।
नि दध्ने - मजबूत खंभे खडे होना।
पर्वतः - अनेक श्रृंग से भरे।
गिरिः - पहाड।
जिहित - चलना।
भावार्थ:हे मरूदगणों! आपके प्रबल समर्थक, आवेश से डरे हुए मनुष्य सुदृढ़ सहारा ढूंढ़ते हैं। क्योंकि आप बडे पहाडों और पत्थरों को भी कंपा देते हैं।
गूढार्थ:अग्नि को ज्ञान स्वरूप परमात्मा और वायु को प्राण स्वरूप परमात्मा कहा गया है। तो इनको अविनाशी कहा गया है।यह शक्ति कोई व्यवधान से नही रूकती.सबसे बडी शक्ति है आत्म शक्ति आैर सब बलों से बडा आत्म बल है।तो ये परमात्म शक्ति समस्त विध्न बाधाओं को हटा देती है। इसलिए उसकी तुलना पहाड से की गई है।
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