top of page
Search
Writer's pictureAnshul P

RV 1.37.9

Updated: Jan 18, 2021


Rig Ved 1.37.9


When the action power and knowledge power come together the fruit of this togetherness is achievement in the form of Parmatma. Parmatma is Happiness and that too divine happiness. Sky denotes Swarg. From indestructible point of view and from nation point of view it means it is spread everywhere. This means Vaayu is also within us and also is different from us. That proves that although Praan resides within us it is unattached in reality.


स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे ।

यत्सी॒मनु॑ द्वि॒ता शवः॑ ॥


Translation :


एषाम् - They.


जानम् - Birthplace is sky.


हि - Sure.


स्थिरम् - Stay constant.


मातुः - Sky as mother.


वयः - Birds.


निरेतवे - While coming out.


नि एतवे - From sky to you.


यत् - That is why.


शव अनुः - Strength serially.


सीम् - Everywhere.


द्वीता - To divide.


Explanation -Oh Marudgans! Your birthplace is on this constant sky. In this motherland the birds fly without any hurdles. Your strength increases two fold.


Deep meaning: When the action power and knowledge power come together the fruit of this togetherness is achievement in the form of Parmatma. Parmatma is Happiness and that too divine happiness. Sky denotes Swarg. From indestructible point of view and from nation point of view it means it is spread everywhere. This means Vaayu is also within us and also is different from us. That proves that although Praan resides within us it is unattached in reality.





📸 Credit - Har.har.mahadev_om sir (Instagram handle)


#मराठी


ऋग्वेद १.३७.९


स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे ।

यत्सी॒मनु॑ द्वि॒ता शवः॑ ॥


भाषांतर :


एषाम् - ह्यांचे.


जानम् - जन्म स्थान आकाश.


हि - निश्चित.


स्थिरम् - स्थिर राहणे .


मातुः - मातृरूप आकाश.


वयः - पक्षी.


निरेतवे - काढण्यात.


नि एतवे - त्या आकाशात.


यत् - म्हणून.


शव अनुः - बळ अनुक्रमाने.


सीम् - सर्वत्र.


द्वीता - विभक्त होणे.


भावार्थ -हे मरूदगणांनो! आपले जन्मस्थळ हे स्थिर आकाश आहे.ह्या मातृभूमि मधे पक्षी निर्भिडपणे उडत असतात. आपली शक्ति दुप्पटीने वाढत असते.


गूढार्थ: जेंव्हा क्रिया शक्ति आणि ज्ञान शक्तिं यांचा संयोग होते तेंव्हा जे फळ मिळते तोच परमात्मा आहे.परमात्मा म्हणजे सुख. परमात्माचे म्हणजे आनंद (सुख), ते पण दैवी आनंद. आकाशाचे तात्पर्य आहे स्वर्ग.अविनाशीच्या दृष्टी ने आणि राष्ट्रच्या दृष्टीने ह्यांना सर्व व्यापक म्हटले आहे.ह्याचे अर्थ आहे की वायू सर्वात व्याप्त आहे.ते सर्वात व्याप्त होउन पण सर्वांच्या अपेक्षा वेगळी आहे.प्राण असंगत आहे हे सिद्ध झाले.






#हिन्दी


ऋग्वेद १.३७.९


स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे ।

यत्सी॒मनु॑ द्वि॒ता शवः॑ ॥


अनुवाद:


एषाम् - इनका।


जानम् - जन्म स्थान आकाश।


हि - निश्चित ही।


स्थिरम् - स्थिर रहना।


मातुः - माता रूप आकाश।


वयः - पक्षी।


निरेतवे - निकलने में।


नि एतवे - उस आकाश।


यत् - क्योंकि।


शव अनुः - बल अनुक्रम से।


सीम् - सर्वत्र।


द्वीता - विभक्त करना।


भावार्थ - हे मरूदगणों! आपका जन्मस्थान यह स्थिर आकाश है। इस मातृभूमि से पक्षी निर्बाधित होकर वेग से चलते हैं। अापका बल दुगुना होकर व्याप्त होता है।


गूढार्थ: जब क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति का संयोग हो जाता है तो इससे जिस फल की उपलब्धि होती है वह है परमात्मा। परमात्मा का तात्पर्य सुख सेे है, वह भी परम सुख।आकाश का तात्पर्य स्वर्ग से है।अविनाशी की दृष्टि से और राष्ट्र की दृष्टि से सर्व व्यापक कहा गया है। इसका अर्थ है कि वायु सबमें व्याप्त भी है और सबसे अलग भी है। प्राण की असंगता सिद्ध है जो सबमें रहकर भी सबसे अलग है।




32 views0 comments

Recent Posts

See All

Commenti


Post: Blog2_Post
bottom of page