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Writer's pictureAnshul P

RV 1.38.13

Updated: Feb 13, 2021


Rig Ved 1.38.13


Shruti Bhagwati says that Agni is Gyanswarup and Prakashswarup. It says through Acharya that all the elements of Ved should be understood with their inner nuances so that Agyan will be destroyed always so as to attain Parmatma through Knowledge, Gyan, Prayer or Bhakti without stopping.


अच्छा॑ वदा॒ तना॑ गि॒रा ज॒रायै॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ ।

अ॒ग्निं मि॒त्रं न द॑र्श॒तं ॥


Translation :


तना - Like body.


गिरा - Through voice.


ब्रह्मणस्पतिम् - Through Mantras.


मित्रं न - Like a friend.


दर्शनम् - Worth seeing.


अग्निम् - Of Agni.


जरायै - For stuti.


अच्छ - Mainly.


वद - To say.


Explanation :Oh Priests ( याज्ञिक)! Like a good looking and able friend you sing praises to the Swami of Gyan, Agnidev.


Deep meaning:Shruti Bhagwati says that Agni is Gyanswarup and Prakashswarup. It says through Acharya that all the elements of Ved should be understood with their inner nuances so that Agyan will be destroyed always so as to attain Parmatma through Knowledge, Gyan, Prayer or Bhakti without stopping.



#मराठी


ऋग्वेद १.३८.१३


अच्छा॑ वदा॒ तना॑ गि॒रा ज॒रायै॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ ।

अ॒ग्निं मि॒त्रं न द॑र्श॒तं ॥


भाषांतर:


तना - शरीर रूप.


गिरा - वाणी ने.


ब्रह्मणस्पतिम् - मंत्राचे पालक.


मित्रं न - मित्रा सारखे.


दर्शनम् - दर्शनीय.


अग्निम् - अग्निचे.


जरायै - स्तुति साठी.


अच्छ - प्रमुख रूपाने.


वद - बोलणे.


भावार्थ:हे याज्ञिक! आपण चांगले दिसणारे व सक्षम मित्रा सारखे ज्ञानाचे अधिपति अग्निदेवाची सुंदर स्तोत्रे गायन करून प्रशंसा करा.


गूढार्थ: इथे श्रुति भगवती म्हणत आहे की अग्नि ज्ञानस्वरूप आणि प्रकाशस्वरूप आहे. अज्ञानाचे निराकरण करण्याची प्रार्थना केलेली आहे. इथे आचार्या द्वारे वेदाचे चरम तात्पर्याचे स्वरूप प्राप्त करण्याचे निर्देश दिलेले आहेत की परमात्म्याची प्राप्ति विवेक, ज्ञान किंवा उपासना आणि भक्ति द्वारे न थांबता प्राप्त करा.



#हिन्दी



ऋग्वेद १.३८.१३


अच्छा॑ वदा॒ तना॑ गि॒रा ज॒रायै॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॑ ।

अ॒ग्निं मि॒त्रं न द॑र्श॒तं ॥


अनुवाद:


तना - शरीर का रूप।


गिरा - वाणी से।


ब्रह्मणस्पतिम् - मंत्र के पालनकर्ता को।


मित्रं न - मित्र जैसा।


दर्शनम् - दर्शनीय।


अग्निम् - अग्नि को।


जरायै - स्तुति हेतु।


अच्छ - मुख्य रूप से।


वद - कहना।


भावार्थ:हे याज्ञिकों! आप दर्शनीय मित्र के जैसे ज्ञान के स्वामी अग्निदेव की सुंदर स्तुतियां गाकर उनकी प्रशंसा करें।


गूढार्थ: यहां श्रुति भगवती कह रहीं हैं कि अग्नि ज्ञानस्वरूप और प्रकाशस्वरूप हैं। हमेशा अज्ञान का निराकरण करने के लिए इनसे प्रार्थना है। या वेद का जो चरम तात्पर्य है उसे प्राप्त करने के लिए यह निर्देश दिया जा रहा है आचार्य द्वारा बताए गये मार्ग से परमात्मा की प्राप्ति विवेक द्वारा,ज्ञान द्वारा या उपासना और भक्ति द्वारा पाने का प्रयत्न करें,रूकना नही है।




📸 Credit - Sumantra sir

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