Rig ved 1.38.7
Here desert is not taken as a inanimate object but is considered worldly due to Praan being added to it. On thinking about it through Gyan angle no thing is considered inanimate because of Chaitanya. It becomes All encompassing(Sarvavyapakta) Avinashi(Indestructible) and Gyanswarup. Chaitanya is Timeless, Objectless and Countryless. When the cover of ignorance or agyan is there we do not see or understand the reality. As we attain Knowledge circumstances Change.
Here Rudra denotes Parmatma Just like there is no difference between water and its waves. Here this word has a hidden connotation.
स॒त्यं त्वे॒षा अम॑वंतो॒ धन्व॑ञ्चि॒दा रु॒द्रिया॑सः ।
मिहं॑ कृण्वंत्यवा॒तां ॥
Translation :
त्वेषाः - Radiant.
अमवन्तः - Strong.
रूद्रियासः - Sons of Rudra.
धन्वन् चित् - In desert.
आ - Destroyer.
आवातम् - Windless.
मिहम् - Rain.
कृण्वन्ति - To do.
सत्यम् - Truth.
Explanation :This is true that the radiant and strong sons of Rudra, the Marudgans also cause rains in the deserts.
Deep meaning: Here desert is not taken as a inanimate object but is considered worldly due to Praan being added to it. On thinking about it through Gyan angle no thing is considered inanimate because of Chaitanya. It becomes All encompassing(Sarvavyapakta) Avinashi(Indestructible) and Gyanswarup. Chaitanya is Timeless, Objectless and Countryless. When the cover of ignorance or agyan is there we do not see or understand the reality. As we attain Knowledge circumstances Change.
Here Rudra denotes Parmatma Just like there is no difference between water and its waves. Here this word has a hidden connotation.
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#मराठी
ऋग्वेद १.३८.७
स॒त्यं त्वे॒षा अम॑वंतो॒ धन्व॑ञ्चि॒दा रु॒द्रिया॑सः ।
मिहं॑ कृण्वंत्यवा॒तां ॥
भाषांतर :
त्वेषाः - तेजस्वी.
अमवन्तः - शक्तिशाली.
रूद्रियासः - रूद्र पुत्र.
धन्वन् चित् - मरूभूमीत.
आ - संवर्तः.
आवातम् - वायूरहित.
मिहम् - वर्षा.
कृण्वन्ति - करणें.
सत्यम् - सत्य.
भावार्थ:हे सत्यच आहे की तेजस्वी आणि बलवान रूद्रांचे पुत्र वायू शून्य वाळवंट प्रदेशात पण वर्षाव करतात.
गूढार्थ: वाळवंत प्रदेश जरी जड असतो पण प्राण द्वारे तो सांसारीक(एहिक) होते कारण ज्ञान दशेने तर काहीही वस्तू जड नाही पण चैतन्य असते, सर्वव्यापक असते, अविनाशी असते आणि ज्ञानस्वरूप असते. चैतन्य तर स्थळकालातीत आहे अकाल आहे, वस्तुने रहित अवस्तू आहे,देशाने रहित अदेश आहे. जेंव्हा अज्ञानाचे आवरण पडते तेंव्हा कळते की ज्ञानात प्रकाश पडल्यावर परिस्थिती बदलते. इथे रूद्रानी तात्पर्य आहे परमात्माशी. पाणी आणि पाणिची तरंग अभेद्य आहे म्हणून लक्षार्थामधे परमात्मांना रूद्र म्हटले आहे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३८.७
स॒त्यं त्वे॒षा अम॑वंतो॒ धन्व॑ञ्चि॒दा रु॒द्रिया॑सः ।
मिहं॑ कृण्वंत्यवा॒तां ॥
अनुवाद:
त्वेषाः - तेजस्वी।
अमवन्तः - शक्तिशाली।
रूद्रियासः - रूद्र पुत्र।
धन्वन् चित् - मरूभूमि मे भी।
आ - संवर्तः।
आवातम् - हवा से रहित।
मिहम् - वर्षा।
कृण्वन्ति - करना।
सत्यम् - सत्य।
भावार्थ:ये सत्य ही है कि तेजस्वी और बलवान रूद्र के पुत्र मरूदगण मरूभूमि के वायुशून्य रहने पर भी वहां वर्षा करते हैं।
गूढार्थ: मरूभूमि अर्थात जड वस्तु पर वह प्राण के द्वारा सांसारिक है। वैसे भी विचार करें, ज्ञान दशा से तो कोई भी वस्तु जड नही चैतन्य है, सर्वव्यापक है, अविनाशी है, वह ज्ञान स्वरूप है। चैतन्य काल से रहित अकाल है, वस्तु से रहित अवस्तु है, देश से रहित अदेश हैं। जब अज्ञान का आवरण पड जाता है तब हम समझ नही पाते पर ज्ञान का प्रकाश पडते ही स्थितियाँ बदल जाती हैं। यहां रूद्र से तात्पर्य परमात्मा से ही है। जल और जल की तरंगें अभेद हैं इसलिए यहां लक्ष्यार्थ रूप में रूद्र कहा गया है।
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