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Writer's pictureAnshul P

RV 1.38.8

Updated: Feb 6, 2021


Rig Ved 1.38.8


The whole business of this earth is run by Praan. Praan is the base of everything. All the other wishes follow what the Praan wishes. Praan is the creator of all things. Parmatma is the reason for Praans existence. The seed of creation lies in this Praan.


वा॒श्रेव॑ वि॒द्युन्मि॑माति व॒त्सं न मा॒ता सि॑षक्ति ।

यदे॑षां वृ॒ष्टिरस॑र्जि ॥


Translation :


वाश्रा इव - Breast like lactating cow.


विद्युत - Lightening.


मिमाति - Noise.


माता - Cow.


वत्सं न - Like calf.


सिसक्ति - To eat or serve.


यत् - Therefore.


एषाम् - They.


वृष्टिः - Rain.


असर्जि - To immerse.


Explanation : When the Marudgans create rain the lightening neighs like a cow and the way cow nurtures her calf so also the lightening nurtures them.


Deep meaning: The whole business of this earth is run by Praan. Praan is the base of everything. All the other wishes follow what the Praan wishes. Praan is the creator of all things. Parmatma is the reason for Praans existence. The seed of creation lies in this Praan.


📸Credit - Divana.mahakal_ka{Instagram handle)





#मराठी


ऋग्वेद १.३८.८



वा॒श्रेव॑ वि॒द्युन्मि॑माति व॒त्सं न मा॒ता सि॑षक्ति ।

यदे॑षां वृ॒ष्टिरस॑र्जि ॥


भाषांतर:


वाश्रा इव - प्रसूती गाईच्या स्तना सारखे.


विद्युत - विद्युत.


मिमाति - आवाज करणे.


माता - गाई.


वत्सं न - वासरू सारखे.


सिसक्ति - सेवन करणे.

यत् - म्हणून.


एषाम् - ह्यांचे.


वृष्टिः - वर्षा.


असर्जि - विसर्जित करणे.


भावार्थ:जेंव्हा मरूदगण वर्षा निर्माण करतात तेंव्हा विद्युत हंबरणार्या गाई प्रमाणे आवाज करतात आणि गाई जसे आपल्या वासरांचे पालनपोषण करते त्याच प्रमाणे विद्युत सिंचन करते.


गूढार्थ: संसाराचा सर्व व्यापार प्राणाने चालतात.प्राण सर्वांचे आधार आहे.प्राणाच्या इच्छेनुसार त्याचे अनुकरण करतात .प्राणाद्वारे सर्वांचे सृजन झाले. परमात्माना प्राणाच्या अस्तित्वासाठी कारणीभूत आहे. सृष्टीच्या निर्मितीचे बीज प्राणातच दडले असते.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३८.८



वा॒श्रेव॑ वि॒द्युन्मि॑माति व॒त्सं न मा॒ता सि॑षक्ति ।

यदे॑षां वृ॒ष्टिरस॑र्जि ॥


अनुवाद:


वाश्रा इव - प्रसूता माता के स्तनवाली रंभाती गाय जैसे।


विद्युत - बिजली।


मिमाति - आवाज करती।


माता - गाय।


वत्सं न - जैसे बछड़ा।


सिसक्ति - सेवन करना।


यत् - इसीलिए।


एषाम् - इनको।


वृष्टिः - वर्षा।


असर्जि - विसर्जित होना।


भावार्थ:जब मरूदगण विद्युत का निर्माण करते हैं तो विद्युत रंभानेवाली गाय की तरह आवाज करती है और जिस तरह गाय बछडो को पोषण देती है उसी

प्रकार विद्युत भी सिंचन करती है।


गूढार्थ: विश्व का सारा व्यापार प्राण से ही चलता है।प्राण ही सबका आधार है। प्राण की इच्छाओं में ही आगे की इच्छा शामिल है। प्राण से ही समस्त चीजों का सृजन हुआ। प्राण परमात्मा से है।सृष्टि के विस्तार का बीज छिपा हुआ है।

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