Rig Ved 1.39.1
The whole world exists for a reason(कार्य). There is no work or Karya without a reason. Therefore in the coming mantras we will be searching for those reasons and answers.
प्र यदि॒त्था प॑रा॒वतः॑ शो॒चिर्न मान॒मस्य॑थ ।
कस्य॒ क्रत्वा॑ मरुतः॒ कस्य॒ वर्प॑सा॒ कं या॑थ॒ कं ह॑ धूतयः ॥
Translation :
यत् - When.
इत्था - This.
परावतः - Beautiful place.
शोचिः न - with radiance.
मानम् - Worthy strength.
प्र अस्यथ - To throw.
कस्य - For whom?
क्रत्वा - Through Yagya.
मरूतः - Marudgans !
वर्पसा - Attraction through strotras.
कम् - Who.
याथः - To go.
ह - To go near.
धूतयः - Oh the one creating shivers!
Explanation:Oh Marudgans capable of creating shivers. How do you throw your strength from afar like lightening? To which Yagya and whose Yagya you are going? What aim and what will you be achieving. At that time what do you perceive?
Deep meaning; The whole world exists for a reason( कार्य). There is no work or Karya without a reason. Therefore in the coming mantras we will be searching for those reasons and answers.
📸 Credit - lord_shiva_the_eternal_god (Instagram handle)
#मराठी
ऋग्वेद १.३९.१
प्र यदि॒त्था प॑रा॒वतः॑ शो॒चिर्न मान॒मस्य॑थ ।
कस्य॒ क्रत्वा॑ मरुतः॒ कस्य॒ वर्प॑सा॒ कं या॑थ॒ कं ह॑ धूतयः ॥
भाषांतर :
यत् - जेंव्हा.
इत्था - ह्याने.
परावतः - सुंदर स्थान.
शोचिः न - तेज सारखे.
मानम् - मननीय बळ.
प्र अस्यथ - फेंकून देणे.
कस्य - कोणाचे.
क्रत्वा - यज्ञ द्वारे.
मरूतः - मरूदगण!
वर्पसा - स्त्रोत ने आकर्षित.
कम् - कुणास.
याथः - जाणे.
ह - कोणाकडे.
धूतयः - हे कंपनकारक!
भावार्थ: हे कंपन उत्पन्न करून देणारे मरूत! आपली शक्ती दूरस्थ स्थानावरून वीजे सारखी फेकू शकता ?आपण कोणाच्या यज्ञात कशासाठी जाता?कोणत्या उद्देशाने आपण कोणाकडे जाता? त्या वेळी आपले लक्ष्य काय असते?
गूढार्थ: संपूर्ण संसार कार्यरूप आहे.विना कारण काहीही कार्य घडत नाही.म्हणून त्या कारणांचा शोध येणाऱ्या मंत्रात घेतला जाइल.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.३९.१
प्र यदि॒त्था प॑रा॒वतः॑ शो॒चिर्न मान॒मस्य॑थ ।
कस्य॒ क्रत्वा॑ मरुतः॒ कस्य॒ वर्प॑सा॒ कं या॑थ॒ कं ह॑ धूतयः ॥
अनुवाद:
यत् - जब।
इत्था - इससे।
परावतः - सुंदर जगह।
शोचिःन - तेज जैसे।
मानम् - मननीय बल।
प्र अस्यथ - फेंकना।
कस्य - किसके।
क्रत्वा - यज्ञ द्वारा।
मरूतः - मरूदगणों!
वर्पसा - स्तोत्रों से आकृष्ट होना।
कम् - किस के लिए।
याथः - जाना।
ह - किसके पास जाते हैं।
धूतयः - हे कंपनकारी!
भावार्थ:हे कंपा देनेवाले मरूतों! आपका बल किसी दूर के स्थान से विद्युत के समान कैसे फेंकते हैं? आप किसके यज्ञ में किसके पास जाते हैं। किस उद्देश्य से आप कहां जाना चाहते हैं। उस समय आपका क्या लक्ष्य होता है?
गूढार्थ: पूरा का पूरा जगत कार्यरूप है। बिना कारण के कार्य संभव ही नही। इसलिए उस कारण की खोज आनेवाले मंत्रों द्वारा की जायेगी।
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