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Writer's pictureAnshul P

RV 1.39.10

Updated: Mar 9, 2021


Rig Ved 1.39.10


Here the mantra gives importance to selflessness that is doing a deed without having any expectations. This sort of deed done for the benefit of others(सर्व हित भीतो रता) destroys all the impurities in your mind and also destroys ignorance. Man is always alert to do his duty to others. In this mantra we beg to Parmatma to bestow his bounty as he alone is capable of fulfilling our demands as he is the supreme. Therefore we praise and think about him.


असा॒म्योजो॑ बिभृथा सुदान॒वोऽसा॑मि धूतयः॒ शवः॑ ।

ऋ॒षि॒द्विषे॑ मरुतः परिम॒न्यव॒ इषुं॒ न सृ॑जत॒ द्विषं॑ ॥


Translation:-


सुदानव - The beauty of doing charity.


मरूतः - Oh Marudgans!


असामि - All.


ओजः - Of strength.


विभृथ - To carry.


धूतय - Oh the Maruts who cause shivers!


शवः - Of strength.


परिमन्यवे - Angry.


ऋषिद्विषे - The one's who hate Rishi's.


इषुम् न - Like an arrow.


द्विषम् - Anger on hateful killers.


सृजत - To express.


Explanation :Oh the best charitable Maruts! You are the carrier of Strength and Valour. Oh Maruts capable of making the enemies shiver! Just like the arrow through which you destroy the Rishi haters, create a shakti to destroy enemies.


Deep meaning: Here the mantra gives importance to selflessness that is doing a deed without having any expectations. This sort of deed done for the benefit of others(सर्व हित भीतो रता) destroys all the impurities in your mind and also destroys ignorance. Man is always alert to do his duty to others. In this mantra we beg to Parmatma to bestow his bounty as he alone is capable of fulfilling our demands as he is the supreme. Therefore we praise and think about him.





#मराठी

 

ऋग्वेद १.३९.१०



असा॒म्योजो॑ बिभृथा सुदान॒वोऽसा॑मि धूतयः॒ शवः॑ ।

ऋ॒षि॒द्विषे॑ मरुतः परिम॒न्यव॒ इषुं॒ न सृ॑जत॒ द्विषं॑ ॥


भाषांतर:


सुदानव - दानयुक्त शोभा.


मरूतः - हे मरूत!


असामि - संपूर्ण.


ओजः - बळाने.


विभृथ - धारण करणे.


धूतय - हे कंपनयुक्त करणारे मरूत!


शवः - बळाचा.


परिमन्यवे - क्रोधी.


ऋषिद्विषे - ऋषींवर द्वेष ठेवणारे शत्रू.


इषुम् न - बाणा सारखे.


द्विषम् - द्वेषयुक्त मारणाऱ्या वर क्रोध.


सृजत - व्यक्त करणे.


भावार्थ:हे उत्तम दानी मरूदगण! आपण संपूर्ण पराक्रमी आणि बळ धारक आहात.हे शत्रूंना प्रकंपित करणारे मरूत! आपण ऋषींचा द्वेष करणार्‍यांना नष्ट करण्यासाठी बाणासारख्या शत्रूघातक शक्तीचे सृजन करावे.


गूढार्थ: इथे निष्काम कर्माविषयी सांगितले आहे. फळाची इच्छा न ठेवता सर्वांच्या हितासाठी केलेल्या कर्मांमुळे बुद्धीचे विकार आणि अज्ञान नष्ट होतात.प्राणी गतिमान होउन ही सर्वांचे हित संबंधित कार्य करत असतो( सर्व हित भीती रता). आम्ही इथे याचकची भूमिकेत असतो कारण सर्व सिद्ध परमात्म्या कडेच इतका सामर्थ्य आहे की तो आम्हास काही देउ शकतो. म्हणून आम्ही त्याची स्तुती आणि मनन करतो.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.३९.१०



असा॒म्योजो॑ बिभृथा सुदान॒वोऽसा॑मि धूतयः॒ शवः॑ ।

ऋ॒षि॒द्विषे॑ मरुतः परिम॒न्यव॒ इषुं॒ न सृ॑जत॒ द्विषं॑ ॥


अनुवाद:


सुदानव - दान युक्त शोभा।


मरूतः - हे मरूदगण!


असामि - संपूर्ण।


ओजः - बल को।


विभृथ - धारण करना।


धूतय - हे कंपा देनेवाले मरूतों।


शवः - बल को।


परिमन्यवे - क्रोधी।


ऋषिद्विषे - ऋषियों से द्वेष रखनेवाले शत्रु।


इषुम् न - बाण जैसे।


द्विषम् - द्वेष से मारनेवाले शत्रुओं से क्रोध।


सृजत - व्यक्त करना।


भावार्थ:हे उत्तम दानी मरूदगण! आपने संपूर्ण पराक्रम और बल को धारण किया है। हे शत्रुओं को कंपा देनेवाले मरूदगण! ऋषियों से द्वेष करनेवाले से बाण की तरह आप शत्रुओं के विनष्ट करनेवाली शक्ति का निर्माण करें।


गूढार्थ: यहां निष्काम कर्म की बात कही गई है। फल की इच्छा से रहित होकर निरंतर किये जानेवाले सबके हित के लिये काम( सर्व हित भीतो रता) से बुद्धि के विकार और अज्ञान नष्ट हो जाते हैं। प्राणी गतिमान होकर के सभी के हित के लिए लगा रहता है। हम यहां याचक हैं क्योंकि सर्व सिद्ध परमात्मा के पास ही इतना सामर्थ्य है की वह हमें कुछ दे सके। इसलिए यहाँ हम उसकी स्तुति और मनन करते हैं।




📸 Credit - Yash Deval sir (Instagram handle)

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