Rig Ved 1.39.2
If we remove all the waste and deformities and their cover from ourselves then only our Atma can be one with Parmatma. Whatever is against our being, be it our vices(विकार), our Vaasna or their cover, they keep our mind inconsistent since they are not an integral part of our mind. They cover over our mind that makes it restless, they are the cover of माया(illusion). Shruti Bhagwati is pointing towards this.
स्थि॒रा वः॑ सं॒त्वायु॑धा परा॒णुदे॑ वी॒ळू उ॒त प्र॑ति॒ष्कभे॑ ।
यु॒ष्माक॑मस्तु॒ तवि॑षी॒ पनी॑यसी॒ मा मर्त्य॑स्य मा॒यिनः॑ ॥
Translation :
स्थिरा - Fixed.
वः - Yours.
सन्तु - To be.
आयुध - Weapons.
पराणुदे - For enemy destruction.
वीळु - Firm.
उत् - And.
प्रतिष्कभे - To resist.
यष्माकम् - Yours.
अस्तु - To be.
तविषी - Strength.
पनीयसी - Praise worthy.
मा - No.
मर्तस्य - Enemy in man form.
मायिनः - To deceive.
Explanation : You plan your weapons accordingly. With sheer will power you resist theenemies. Your strength is praise worthy. You see that no worthless and false people come forward.
Deep meaning: If we remove all the waste and deformities and their cover from ourselves then only our Atma can be one with Parmatma. Whatever is against our being, be it our vices(विकार), our Vaasna or their cover, they keep our mind inconsistent since they are not an integral part of our mind. They cover over our mind that makes it restless, they are the cover of माया(illusion). Shruti Bhagwati is pointing towards this.
#मराठी
ऋग्वेद १.३९.२
स्थि॒रा वः॑ सं॒त्वायु॑धा परा॒णुदे॑ वी॒ळू उ॒त प्र॑ति॒ष्कभे॑ ।
यु॒ष्माक॑मस्तु॒ तवि॑षी॒ पनी॑यसी॒ मा मर्त्य॑स्य मा॒यिनः॑ ॥
भाषांतर :
स्थिरा - स्थिर.
वः - आपले.
सन्तु - होणे.
आयुध - हथ्यार.
पराणुदे - शत्रू विनाश.
वीळु - दृढ.
उत् - आणि.
प्रतिष्कभे - थांबण्यास.
यष्माकम् - आपले.
अस्तु - होणे.
तविषी - शक्ती.
पनीयसी - स्तुति योग्य.
मा - न.
मर्तस्य - मनुष्य शत्रू शक्ति.
मायिनः - धोका देणारे.
भावार्थ:आपण आयुधे शत्रूंचा पराभव करण्यासाठी नियोजित करावी.आपल्या दृढ शक्तीने त्याचे प्रतिरोध करावा. आपली शक्ति प्रशंसनीय आहे.आपण छद्म वेषात असलेली माणसांना समोर करू नका.
गूढार्थ: इथे मल रूप, विक्षेप रूप आणि आवरण रूपाला काढून टाकले तरच आत्मा आणि परमात्माचे एेक्य संभव असते. जे आमचे हित विरोधक आहेत ते आहेत आमचे विकार, तेच वासना आहेत बुद्धी चे आवरण आहेत.ते आमच्या बुद्धीला चंचल करतात म्हणून ते आमच्या चित्तमधे समाहित नसतात. आवरण मनाचे विचार आणि चंचलपणा आहेत ज्यामध्ये मायाचेे आवरण आहे.हे संकेत श्रुति भगवती देत आहेत.
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#हिन्दी
ऋग्वेद १.३९.२
स्थि॒रा वः॑ सं॒त्वायु॑धा परा॒णुदे॑ वी॒ळू उ॒त प्र॑ति॒ष्कभे॑ ।
यु॒ष्माक॑मस्तु॒ तवि॑षी॒ पनी॑यसी॒ मा मर्त्य॑स्य मा॒यिनः॑ ॥
अनुवाद:
स्थिरा - स्थिर।
वः - आपके।
सन्तु - होना।
आयुधा - हथियार।
पराणुदे - शत्रु को मारने हेतु।
वीळु - दृढ़।
उत् - और।
प्रतिष्कभे - रोकना।
यष्माकम् - आपकी।
अस्तु - होना।
तविषी - शक्ति।
पनीयसी - स्तुति योग्य।
मा - न।
मर्तस्य - मनुष्य शत्रु की शक्ति।
मायिनः - धोखा देनेवाले।
भावार्थ:आप अपने हथियार दुश्मनों को हराने के लिए नियोजित करें। अपनी दृढ़ शक्ति का प्रयोग करके उनका मुकाबला करें। आपकी शक्ति प्रशंसा योग्य है। आप छद्म वेशधारी मनुष्यों को आगे न बढायें।
गूढार्थ: यहां मल रूप,विक्षेप रूप, आवरण रूप को यदि निकाल दें क्योंकि यही आत्मा का परमात्मा की एकता मे विध्न हैं। जो हमारे हित के विरोध में खडा है वह है हमारे विकार, तो अगर इन्हें निकालें तो ही वासना जायेगी, यह वासना ही मल है,आवरण है जो बुद्धि को चंचल बनाए हुए हैं, हमारे चित्त में समाहित नहीं हैं। आवरण मन के विचार और चंचलता हैं, माया का आवरण पडा हुआ है। इसी तरफ श्रुति भगवती संकेत कर रहीं हैं।
📸 Credit - Zactic Arts(Instagram handle)
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