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  • Writer's pictureAnshul P

RV 1.39.3

Updated: Feb 17, 2021


Rig Ved 1.39.3


Here the strength of the Maruts is described. If we look unto us then we realize that the the strength of Praan is unlimited. Without Praan a huge elephant becomes useless. If Praan and Knowledge come together then every vice gets uncovered. This is the achievement we fulfill.


परा॑ ह॒ यत्स्थि॒रं ह॒थ नरो॑ व॒र्तय॑था गु॒रु ।

वि या॑थन व॒निनः॑ पृथि॒व्या व्याशाः॒ पर्व॑तानां ॥


Translation :


परा हथ - To break.


वि ह - To go.


यत् - When.


स्थिरम् - Constant.


नरः - Oh leader!


वर्तयथ - To run.


गुरू - Heavy object.


वि याथन - In between.


वनिनः - Forest trees.


पृथिव्याः - On earth.


अाशाः - Direction.


पर्वतानम् - In between mountains.


Explanation : Oh Marut! You have the power to uproot fixed trees, make tough rocks shiver and to lay barren the forests of this land and then go away beyond the mountains.


Deep meaning: Here the strength of the Maruts is described. If we look unto us then we realize that the the strength of Praan is unlimited. Without Praan a huge elephant becomes useless. If Praan and Knowledge come together then every vice gets uncovered. This is the achievement we fulfill.





#मराठी


ऋग्वेद १.३९.३



परा॑ ह॒ यत्स्थि॒रं ह॒थ नरो॑ व॒र्तय॑था गु॒रु ।

वि या॑थन व॒निनः॑ पृथि॒व्या व्याशाः॒ पर्व॑तानां ॥


भाषांतर :


परा हथ - तोडने


वि ह - वेगळे होणे.


यत् - जेंव्हा.


स्थिरम् - स्थिर.


नरः - हे नेता!


वर्तयथ - चालवणे.


गुरू - जड वस्तू.


वि याथन - मधून जाणे.


वनिनः - अरण्य वृक्षाचे.


पृथिव्याः - पृथ्वीचे.


अाशाः - दिशेने.


पर्वतानम् - पर्वतांच्या मध्य.


भावार्थ:हे मरूत!आपण आपल्या बळाने स्थिर वृक्षांना मुळासकट का उकलता, मोठ्या खडकांना प्रकंपित करत,भूमिवरच्या वनांना नापिक करत पर्वतांच्या पलिकडे निघून जाता.


गूढार्थ: इथे मरूतांच्या बळाचे वर्णन आहे. आध्यात्मिक रूपाने स्वतः कडे पाहिले तर प्राणाची शक्ति अपरंपार आहे. विना प्राण हत्ती पण निस्तेज असतो. जर प्राणाच्या बळ आणि प्रज्ञा एकत्र झाले तर सर्व काही निरावरण होतो.अश्या रीतीने आम्हास उपलब्धी प्राप्त होइल.


#हिन्दी


ऋग्वेद १.३९.३



परा॑ ह॒ यत्स्थि॒रं ह॒थ नरो॑ व॒र्तय॑था गु॒रु ।

वि या॑थन व॒निनः॑ पृथि॒व्या व्याशाः॒ पर्व॑तानां ॥


अनुवाद:


परा हथ - तोडना।


यत् - जब।


स्थिरम् - स्थिर वस्तु।


नरः - हे नेता!


वर्तयथ - चलाना।


गुरू - भारी वस्तु।


वि याथन - बीच से जाते।


वनिनः - वन वृक्षों के।


पृथिव्याः - पृथ्वी के।


अाशाः - दिशा से।


पर्वतानम् - पर्वतों के बाजू में।


वि ह - अलग होकर।


भावार्थ: हे मरूतों! आप अपने बल द्वारा स्थिर वृक्षों को गिराते हुए,दृढ़ चट्टानों में तीव्र कंपन करते हुए और भूमि के वनों को जड से विहीन करते हुए पर्वतों के उस पार निकल जाते हो।


गूढार्थ: यहां मरूतों के बल का वर्णन है। आध्यात्मिक रूप से जब हम अपनी तरफ देखते हैं तो प्राण की शक्ति अपरमपार है। बिना प्राण के हाथी भी निस्तेज है। तो यहां प्राण के बल के साथ प्रज्ञा का भी बल मिल जाये तो सब कुछ का निरावरण हो जायेगा। इसीसे उपलब्धि भी प्राप्त हो जायेगी।

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