Rig Ved 1.40.3
Here inviting the devtas to Yagya denotes that they come, help and join to our Atma and Parmatma Purusharth. To line up denotes that they provide us divine power. To attain this divine shakti(Power) we have to practice Saadhna, Upasana and Tapa.
प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्ये॑तु सू॒नृता॑ ।
अच्छा॑ वी॒रं नर्यं॑ पं॒क्तिरा॑धसं दे॒वा य॒ज्ञं न॑यंतु नः ॥
Translation:
ब्रहणस्पती: - Oh Brahanaspati dev!
प्रैतू - To get.
सुनृता देवों - Oh the truth speaking dev!
देवा: - Devta.
वीरम् - Strong.
नर्यम् - For men.
पंक्तिराधसम् - Rich in offerings.
यज्ञं - For Yagya.
न: अच्छ - Before us.
नयन्तु- To bring.
Explanation: Brahanaspati dev is requested to come for the yagya agreeably. He is also requested to provide us truthful and divine speech. Also the devtas favouring humans should line up in order to defeat enemies.
Deep meaning: Here inviting the devtas to Yagya denotes that they come, help and join to our Atma and Parmatma Purusharth. To line up denotes that they provide us divine power. To attain this divine shakti(Power) we have to practice Saadhna, Upasana and Tapa.
#मराठी
ऋग्वेद१.४०.3
प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्ये॑तु सू॒नृता॑ ।
अच्छा॑ वी॒रं नर्यं॑ पं॒क्तिरा॑धसं दे॒वा य॒ज्ञं न॑यंतु नः ॥
भाषान्तर :
ब्रहणस्पती: - ब्रहणस्पती देव!
प्रैतू - प्राप्त होणे.
सुनृता देवों - प्रिय सत्यरूपा वाग्देव!
देवा: - देवता.
वीरम् - वीर.
नर्यम् - मनुष्यासाठी.
पंक्तिराधसम् - हवि ने समृद्ध.
यज्ञं - तज्ञांचे प्रति.
न: अच्छ - आमचे सम्मुख होउन.
नयन्तु- घेउन येणे.
भावार्थ:ब्रहणस्पती आम्हास अनुकूल होउन यज्ञास यावे.आम्हास सत्य रूपाची दिव्य वाणी प्राप्त होवो. मानवाच्या हितचिंतक देवा पंक्तिबद्ध नवीन रचना करून शत्रूंचे विनाश करावा.
गूढार्थ:इथे म्हटलेले आहे की देवदेवतांनी आमच्या यज्ञात यावे आणि आमच्या आत्मा व परमात्म्याच्या पुरूषार्थात सामिल व्हावे.आणि नवीन रचनेने दैवी शक्ती ने संपन्न होउ. ह्या दैवी शक्तीला प्राप्त करण्यासाठी साधना, उपासना आणि तप करू या.
#हिन्दी
ऋग्वेद१.४०.3
प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्ये॑तु सू॒नृता॑ ।
अच्छा॑ वी॒रं नर्यं॑ पं॒क्तिरा॑धसं दे॒वा य॒ज्ञं न॑यंतु नः ॥
अनुवाद:
ब्रहणस्पती: - ब्रहणस्पती देव।
प्रैतू - प्राप्त होना ।
सुनृता देवों - प्रिय सत्य रूपा वाग्देव।
देवा: - देवता।
वीरम् - वीर को।
नर्यम् - मनुष्यों के लिए ।
पंक्तिराधसम् - हवि से समृद्ध ।
यज्ञं - यज्ञ के प्रति ।
न: अच्छ - हमारे सम्मुख होकर ।
नयन्तु- लाना।
भावार्थ:ब्रहणस्पती हमारे अनुकूल होकर यज्ञ में आगमन करें ।हमें सत्य रूप वाली दिव्य वाणी प्राप्त हो।मनुष्यों के हितैषी देव पंक्तिबद्ध होकर अधिष्ठित होकर शत्रुओं का नाश करें ।
गूढ़ार्थ:यहाँ कहा गया है कि 'देवगण हमारे यज्ञ में' से तात्पर्य है कि हमारी आत्मा और परमात्मा के पुरुषार्थ में सम्मिलित हों।'पंक्तिबद्ध होकर' से तात्पर्य है कि हम दैविक शक्ति से संपन्न हों।इस दैवी शक्ति को प्राप्त करने के लिए साधना से,उपासना से, तप से वह दिव्य शक्ति प्राप्त होती है ।
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📸 Credit- Hindu_samrajya_ (Instagram handle)
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