Rig Ved 1.40.8
Atma is never influenced by any changes in nature. Similarly people remaining calm and patient also are uninfluenced by changes. Even the intelligent do not get influenced by the changes. The one with divine powers or the Knowledgeable one's do not face such difficulties as they are satisfied in their Atma.
उप॑ क्ष॒त्रं पृं॑ची॒त हंति॒ राज॑भिर्भ॒ये चि॑त्सुक्षि॒तिं द॑धे ।
नास्य॑ व॒र्ता न त॑रु॒ता म॑हाध॒ने नार्भे॑ अस्ति व॒ज्रिणः॑ ॥
Translation:
क्षत्रम् - Of strength.
उप पृंचित - To deposit.
राजभिः - To help the King.
हृन्ति - To kill.
भये चित्त - In fear.
सुक्षितिम् - Disciplined.
दधे - To carry.
वज्रिणः - Vajra etc.
अस्य - It is there.
महाधने - Wage a war for money.
वर्ता - To solve.
न अस्ति - Not there.
तरूता न - Doesn't obey.
अर्भे न - Not there.
Explanation::With the help of the King, Brahanaspati destroys the enemies. During the time of fear he shows patience. Such Vajra wielding People are never defeated in any small or big wars.
Deep meaning: Atma is never influenced by any changes in nature. Similarly people remaining calm and patient also are uninfluenced by changes. Even the intelligent do not get influenced by the changes. The one with divine powers or the Knowledgeable one's do not face such difficulties as they are satisfied in their Atma.
# मराठी
ऋग्वेद १.४०.८
उप॑ क्ष॒त्रं पृं॑ची॒त हंति॒ राज॑भिर्भ॒ये चि॑त्सुक्षि॒तिं द॑धे ।
नास्य॑ व॒र्ता न त॑रु॒ता म॑हाध॒ने नार्भे॑ अस्ति व॒ज्रिणः॑ ॥
भाषान्तर :
क्षत्रम् - बलाचे.
उप पृंचित - संचय करणं.
राजभिः - राजेच्या सहाय्य साठी.
हृन्ति - मारणे.
भये चित्त - भीती समयी.
सुक्षितिम् - धैर्य.
दधे - धारण करणे.
वज्रिणः - वज्रा सारखे.
अस्य - होय.
महाधने - धनासाठी युद्ध.
वर्ता - निवारण करणे.
न अस्ति - नाही.
तरूता न - उल्लंघन नाही.
अर्भे न - नाही.
भावार्थ:ब्रहणस्पती क्षेत्रफळाची वृद्धी करून राजेच्या सहाय्याने शत्रूंना मारून टाकतात.भय आढळ्यावर उत्तम धैर्य धारण करतात. असे वज्रधारी लोक लहान किंवा मोठी युद्धात कधीही पराजित होत नाही.
गूढार्थ:प्रकृतीच्या परिवर्तन पासून आत्मा प्रभावित होत नाही. त्याच प्रकारे धैर्यवान आणि प्रज्ञावान पण अप्रभावित राहतात. जे बुद्धी ने संपन्न आहेत, दैवी गुणांनी युक्त आहेत ते सर्व परिवर्तनाच्या प्रभावाने विचलित होत नाही , त्यांच्यावर लहान किंवा मोठ्या अडचणींचा काहीच प्रभाव पडत नाही कारण ते आपल्या आत्म्याने तृप्त असतात.
#हिन्दी
ऋग्वेद १.४०.८
उप॑ क्ष॒त्रं पृं॑ची॒त हंति॒ राज॑भिर्भ॒ये चि॑त्सुक्षि॒तिं द॑धे ।
नास्य॑ व॒र्ता न त॑रु॒ता म॑हाध॒ने नार्भे॑ अस्ति व॒ज्रिणः॑ ॥
अनुवाद:
क्षत्रम् - बल का।
उप पृंचित - जमा करना।
राजभिः - राजा की सहायता के लिये।
हृन्ति - मारना।
भये चित्त - डर के समय भी।
सुक्षितिम् - धैर्य।
दधे - धारण करना।
वज्रिणः - वज्र आदि।
अस्य - इन।
महाधने - धन के लिये युद्ध।
वर्ता - निवारण करना।
न अस्ति - नहीं है।
तरूता न - उल्लंघन नही है।
अर्भे न - नहीं है।
भावार्थ:ब्रहणस्पती क्षेत्रफल की वृद्धि करके राजाओं की सहायता से शत्रुओं को मारते हैं।भय के समय उत्तम धैर्य का धारण करते हैं।ऐसे वज्रधारी किसी भी छोटे या बड़े युद्ध में किसी से पराजित नहीं होते।
गूढ़ार्थ :प्रकृति के परिवर्तन से आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।उसी प्रकार जो धीर वान हैं उन पर भी प्रभाव नहीं पड़ता। प्रज्ञा वान भी अप्रभावित रहते हैं।जो बुद्धि से संपन्न हैं, दैवी गुणों से युक्त हैं वे इस परिवर्तन से अछूते रहते हैं उन पर छोटी या बड़ी दिक्कत कोई प्रभाव नहीं डालती क्योंकि वे अपनी आत्मा से तृप्त हैं।
📸 Credit - Shyam Dudke sir
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