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Writer's pictureAnshul P

RV 1.42.6

Updated: Apr 8, 2021


Rig Ved. 1.42.6


This body is like a chariot, our indriyas or senses are its horses, mind is its bridle and Atma is its rider. So here the Atma which is sorrounded by ignorance, needs a body which can think away from the ignorance. In this whole Praani jagat, man is the only one who can think from his mind. This is visible in the physical development of this world. So here we request Parmatma to keep our mind and body healthy so that by this thought process we are able to do good work for entire mankind.


अधा॑ नो विश्वसौभग॒ हिर॑ण्यवाशीमत्तम ।

धना॑नि सु॒षणा॑ कृधि ॥


Translation:


विश्वसौभग - Oh the lucky one.


हिरण्यवा - With gold.


शीमत्तम - Pushadev.


अध - Next.


नः - Ours.


घनानि - Of Wealth.


सुषणा - Charity.


कृधि - To do.


Explanation:Oh the lucky one adorning gold jewellery! We request to you that we be provided wealth and abilities by you.


Deep meaning: This body is like a chariot, our indriyas or senses are its horses, mind is its bridle and Atma is its rider. So here the Atma which is sorrounded by ignorance, needs a body which can think away from the ignorance. In this whole Praani jagat, man is the only one who can think from his mind. This is visible in the physical development of this world. So here we request Parmatma to keep our mind and body healthy so that by this thought process we are able to do good work for entire mankind.


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#मराठी


ऋग्वेद १•४२•६


अधा॑ नो विश्वसौभग॒ हिर॑ण्यवाशीमत्तम ।

धना॑नि सु॒षणा॑ कृधि ॥


भाषान्तर:


विश्वसौभग - हे सौभाग्ययुक्त.


हिरण्यवा - स्वर्णयुक्त.


शीमत्तम - पूषा देव.


अध - अनंतर.


नः - आमचे.


घनानि - धनाचे.


सुषणा - दान रूप.


कृधि - करणे.


भावार्थ:हे सौभाग्ययुक्त व आभूषण युक्त पूषा देव! आपल्यास विनंती आहे की आपण आम्हास धन आणि सामर्थ्य प्रदान करावे.


गूढार्थ:शरीर एक रथ आहे,इन्द्रिये त्याचे अश्व आहेत मन आहे लगाम, बुद्धी आहे सारथी आणि आत्मा आहे स्वार.आत्मा अज्ञानाने आच्छादीत आहे. त्याला एक अश्या उपाधिची आवश्यकता आहे जे अज्ञानाला दूर करून विचार करू शकते. मनुष्यास प्राणी जगतात फक्त विचार करण्याची बुद्धी प्राप्त आहे. समस्त भौतिक विकास मनुष्याची बुद्धीचा प्रमाण आहे.इथे प्रार्थना केली आहे की बुद्धी आणि विचार द्वारे अंग आणि उपंग स्वस्थ राहतील आणि तो शरीर पण प्राप्त होइल ज्याने विचार आणि बुद्धी द्वारे समस्त मानव जातीचे कल्याण होईल.




#हिन्दी


ऋग्वेद १•४२•६


अधा॑ नो विश्वसौभग॒ हिर॑ण्यवाशीमत्तम ।

धना॑नि सु॒षणा॑ कृधि ॥


अनुवाद:


विश्वसौभग - हे सौभाग्य संपन्न।


हिरण्यवा - स्वर्ण युक्त।


शीमत्तम - पूषा देव ।


अध - उसके बाद।


नः - हमारे।


घनानि - संपत्ति को।


सुषणा - दान के रूप में।


कृधि - करना।


भावार्थ: हे सौभाग्य युक्त तथा आभूषण युक्त पूषा देव!आपसे निवेदन है कि आप हमें धन और सामर्थ्य प्रदान करें।


गूढ़ार्थ: शरीर एक रथ है, इन्द्रियाँ इसके घोड़े हैं, मन है लगाम और बुद्धि है सारथी और आत्मा है सवार।तो यहाँ आत्मा जो अज्ञान से आच्छादित है उसे एक ऐसे उपाधि की आवश्यकता है जो अज्ञान से हटकर विचार कर सके।मनुष्य को प्राणी जगत में विचार कर सकने की बुद्धि प्राप्त है ।समस्त भौतिक विकास मनुष्य की बुद्धि का प्रमाण है।तो यहाँ प्रार्थना की गई है कि बुद्धि और विचार के द्वारा अंग उपंग भी स्वस्थ रहे और वह शरीर भी प्राप्त करे जिससे विचार और बुद्धि द्वारा समस्त मानव जाति का कल्याण भी कर सके।



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