Rig Ved 1.42.7
Here the person with divine power and qualities are praying. Whenever such a divine person experiences difficulties, he prays that people with Asuri or demonic traits are creating difficulties in his path. Devtas too pray to Parmatma for help. Parmatma always favours the right one's. But then these demonic people need to be stopped. So here the divine people pray to Parmatma to protect them in such circumstances.
अति॑ नः स॒श्चतो॑ नय सु॒गा नः॑ सु॒पथा॑ कृणु ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
Translation:
सश्चतः - The obstructor of enemies.
अति - Encroach.
नः - Ours.
नय - To take elsewhere.
सुगा - Happiness loss.
सुपथा - Beautiful path.
कृणु - To do.
पूषन् - Pushadev.
इह - This.
ऋतुम् - Protect.
विदः - To know.
Explanation:Oh Pushadev! You keep us away from the wicked enemies. Let our path be easy and beautiful. Keep us aware about our duties.
Deep meaning: Here the person with divine power and qualities are praying. Whenever such a divine person experiences difficulties, he prays that people with Asuri or demonic traits are creating difficulties in his path. Devtas too pray to Parmatma for help. Parmatma always favours the right one's. But then these demonic people need to be stopped. So here the divine people pray to Parmatma to protect them in such circumstances.
📸 Credit - Puneet Barnala Sir(Instagram)
#मराठी
ऋग्वेद १•४२•७
अति॑ नः स॒श्चतो॑ नय सु॒गा नः॑ सु॒पथा॑ कृणु ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
भाषान्तर:
सश्चतः - शत्रूंचे बाधक.
अति - अतिक्रमण.
नः - आमचे.
नय - अन्यत्र घेउन जाणे.
सुगा - सुख गम्य.
सुपथा - सुन्दर पथ.
कृणु - करणे.
पूषन् - पूषा देव.
इह - हे.
ऋतुम् - रक्षा.
विदः - जाणून घेण्यासाठी.
भावार्थ:हे पूषा देव!आम्हास कुटिल शत्रूंपासून दूर ठेवा.आमचे मार्ग सुंदर आणि सरळ ठेवा. आम्हास आपल्या कर्त्तव्यांच्या प्रति जागरूक ठेवा.
गूढ़ार्थ:इथे दैवी शक्ती आणि दैवी गुण संपन्न व्यक्ती प्रार्थना करत आहे. हा दैवी शक्तीयुक्त देवत्व तुल्य व्यक्ति जेंव्हा काही अडथळे पाहतो तेंव्हा तो प्रार्थना करतो की जे असुर भाव युक्त लोक समोर आली आहे त्यांना दूर करावे. देवता पण अशी प्रार्थना करत असतात. परमात्मा साठी काहीही भेदभाव नाही पण जेंव्हा हे असुर दैवी गुण युक्तांचे नुकसान करतात तेव्हा अश्या परिस्थितीत प्रार्थना केली जाते की ह्याच्या पासून आमचे रक्षण करावे.
#हिन्दी
ऋग्वेद १•४२•७
अति॑ नः स॒श्चतो॑ नय सु॒गा नः॑ सु॒पथा॑ कृणु ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
अनुवाद:
सश्चतः - शत्रुओं का बाधक।
अति - अतिक्रमण।
नः - हमें।
नय - अन्य स्थान पर ले जाना।
सुगा - सुख गम्य।
सुपथा - अच्छा मार्ग।
कृणु - करना।
पूषन् - पूषा देव।
इह - इस।
ऋतुम् - रक्षा।
विदः - जानना।
भावार्थ:हे पूषा देव! षडयंत्रकारी शत्रुओं से हमें दूर रखें ।हमारा मार्ग सुन्दर और आसान बनाये। हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करें।
गूढ़ार्थ:यहाँ दैवी गुण और दैवी शक्तियों से संपन्न व्यक्ति प्रार्थना करता है। तो यह दैवी गुणों वाला देवत्व वाला व्यक्ति जब कोई अवरोध देखता है तब प्रार्थना करता है कि जो असुर भाव वाले लोग हैं उन्हें मार्ग से हटाएं।देवता भी इसी तरह की प्रार्थना करते हुए पाए गए हैं।परमात्मा कोई भेदभाव नहीं करते पर असुर भाव वाले लोग दैवी गुणों वालों को नुकसान पहुंचाते हैं, अवरोध खडा करते हैं ।इसलिए यहाँ प्रार्थना की गई है कि ऐसी परिस्थिति में परमात्मा उनका रक्षण करें।
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