Rig Ved 1.42.9
Here food is mentioned. After our stomach is full we can feel the energy. But the path which we have to follow needs different resources. So here it is requested that to let us know in what way can we perform the duty towards the creative world in this pious earth of Parmatma. In practice it is observed that it is important to note that whenever we perform any duty, what should be the framework of your mind. Selfless thoughts make you perform selfless work. This way our chitta gets purified and we go near Parmatma.
श॒ग्धि पू॒र्धि प्र यं॑सि च शिशी॒हि प्रास्यु॒दरं॑ ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
Translation:
पूषन् - Pushadev!
शग्धि - To be benevolent.
पूर्धि - To give enough.
प्र यंसि - To give desired things.
च शिशीहि - To make us radiant.
उदरम् - Stomach.
प्रासि - To give enough.
इह - This.
क्रतुम् - To protect.
विदः - To know.
Explanation: Oh Pushadev! Give us the abilities. Provide us with Wealth. Make us resourceful. Make us more radiant. Arrange resources to fill our stomach. Let us know our duties.
Deep meaning: Here food is mentioned. After our stomach is full we can feel the energy. But the path which we have to follow needs different resources. So here it is requested that to let us know in what way can we perform the duty towards the creative world in this pious earth of Parmatma. In practice it is observed that it is important to note that whenever we perform any duty, what should be the framework of your mind. Selfless thoughts make you perform selfless work. This way our chitta gets purified and we go near Parmatma.
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#मराठी
ऋग्वेद १•४२•९
श॒ग्धि पू॒र्धि प्र यं॑सि च शिशी॒हि प्रास्यु॒दरं॑ ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
भाषान्तर:
पूषन् - पूषा देव.
शग्धि - कृपा करणे.
पूर्धि - भरभरून देणे.
प्र यंसि - अभीष्ट वस्तू देणे.
च शिशीहि - तेजस्वी होणे.
उदरम् - पोटाचे.
प्रासि - भरभरून देणे.
इह - ह्या.
क्रतुम् - रक्षण.
विदः - जाणून घेण्यासाठी.
भावार्थ:हे पूषा देव!आम्हास सामर्थ्य द्यावे. आम्हास धन प्रदान करावे. आम्हास साधन संपन्न करावे. आम्हास तेजस्वी करावे.आमचे उदरभरण करावे. आमच्या कर्त्तव्याची जाणीव करून द्यावी.
गूढ़ार्थ:इथे आहार बद्दल सांगितलेले आहे.जेवण झाल्यानंतर भूक भागते आणि एक शक्ती प्राप्त होते. पण आम्हास ज्या मार्गावर जायचे आहे त्यासाठी अन्य साधनाची आवश्यकता असते. इथे प्रार्थना केलेली की आम्ही परमात्म्याचा ह्या पावन सृष्टीत लोक कल्याणाचे रचनात्मक कार्य करू. जर व्यवहारात पाहिले तर जसे आमच्या मनात कल्पनांची मांडणी असते तसेच कर्तव्य होत असते. जेंव्हा ध्यान कामना रहित असतो तेंव्हा आम्ही निष्काम कर्म करतो. इथे आमचे चित्ताचे शोधन होत असून आम्ही परमात्म्याला प्राप्त करतो.
#हिन्दी
ऋग्वेद १•४२•९
श॒ग्धि पू॒र्धि प्र यं॑सि च शिशी॒हि प्रास्यु॒दरं॑ ।
पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥
अनुवाद:
पूषन् - पूषा देव!
शग्धि - कृपा करना।
पूर्धि - भरपूर देना।
प्र यंसि - मनाही वस्तु देना।
च शिशीहि - तेजस्वी बनाना।
उदरम् - पेट को।
प्रासि - भरपूर देना।
इह - इस।
क्रतुम् - रक्षण।
विदः - जानना।
भावार्थ: हे पूषा देव ! हमें सामर्थ्यवान बनाएं।हमें धन प्रदान करें।हमें साधन संपन्न बनाएँ। हमें तेजस्वी बनाएँ। हमारी उदर पूर्ति करें।साथ ही हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान कराये।
गूढ़ार्थ: यहाँ आहार की बात कही गई है।भोजन प्राप्त करने के बाद जो शक्ति मिलती है भूख तो मिट जाती है पर हमको जिस मार्ग पर चलना है उसका लिए अलग साधन की जरूरत है।यहाँ प्रार्थना की गई है कि किस प्रकार से हम परमात्मा की उस पावन सृष्टि में लोक कल्याण के लिए रचनात्मक कार्य कर सकें। व्यवहार में देखा गया है कि जैसा जिसका ध्यान होता है वैसा ही उसका कर्त्तव्य होता है अर्थात वह कामना रहित हो जाता है यह ईश्वर का ध्यान निष्काम कर्म करवाता है जहां हमारे चित्त का शोधन हो जाता है ।हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
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