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Writer's pictureAnshul P

RV 1.43.3


Rig Ved 1.43.3


Atma is connected to our Indriyas. The devtas attached to them are full of divine qualities therefore this jeevatma experiences these qualities. so this Samprasad jeevatma gets rid of the cover of ignorance and is mukt. It gets rid of sinful thoughts and vices. It now is liberated from vices and experiences Nitya sukh or eternal happiness. Only the eligible attain this.


यथा॑ नो मि॒त्रो वरु॑णो॒ यथा॑ रु॒द्रश्चिके॑तति ।


यथा॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सः ॥


Translation:


मित्र: - Mitra dev.


वरुण: - Varun dev.


न: - On our selves.


यथा - same.


चिकेतति - Know one's benevolence.


रूद्रः - Rudra dev.


सजोषश: - Equal love.


विश्वे - All.


Explanation: The way Mitra, Varun and Rudra dev always think about the welfare of Yajmans similarly other devtas should also think about the same.


Deep meaning : Atma is connected to our Indriyas. The devtas attached to them are full of divine qualities therefore this jeevatma experiences these qualities. so this Samprasad jeevatma gets rid of the cover of ignorance and is mukt. It gets rid of sinful thoughts and vices. It now is liberated from vices and experiences Nitya sukh or eternal happiness. Only the eligible attain this.


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📸 Credit - Shwetab_suman (Instagram handle)


#मराठी


ऋग्वेद१.४३.३


यथा॑ नो मि॒त्रो वरु॑णो॒ यथा॑ रु॒द्रश्चिके॑तति ।


यथा॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सः ॥


भाषांतर:


मित्र: - मित्र देव.


वरुण: - वरुण देव.


न: - आमच्या वर.


यथा - जशी असते.


चिकेतति - अनुग्रह ओळखणे.


रूद्रः - रूद्र देव.


सजोषश: - समान स्नेह युक्त.


विश्वे - सर्व.


भावार्थ:ज्या प्रकारे मित्र वरूण आणि रूद्र देव यजमानांच्या हिताचे विचार करतात त्याच प्रमाणे अन्य देवतांनी पण विचार करावा.


भावार्थ: आत्म्याशी आमची इन्द्रिये जुळली असून सर्व अधिष्ठाता देवतांचे दैवी गुण त्याला म्हणजे आत्माला संपन्न करता. हा संप्रसादानंतर जीवात्मा आवरण मुक्त होतो. ह्याचा अर्थ अशा की तो आवरण मुक्त होते. वासना रहित आणि विषय रहित झाल्यावर तो बंधन मुक्त होते.तेंव्हा त्याला नित्य सुखाचा अनुभव होइल. अशी व्यक्ती हे सुखाचा अधिकारी आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद१.४३.३


यथा॑ नो मि॒त्रो वरु॑णो॒ यथा॑ रु॒द्रश्चिके॑तति ।


यथा॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सः ॥


अनुवाद:


मित्र: - मित्र देव।


वरुण: - वरूण देव।


न: - हमारे ऊपर।


यथा - जिस तरह।


चिकेतति - कृपा को जानना।


रूद्रः - रूद्र देव।


सजोषश: - बराबर का स्नेह।


विश्वे - सभी।


भावार्थ: जिस प्रकार मित्र, वरुण और रुद्र देव यजमानों के हित के लिए ही सोचा करते हैं उसी प्रकार अन्य देवता भी यजमानों की भलाई के लिए कार्य करें।


गूढार्थ:आत्मा के साथ जो इन्द्रियां जुड़ी हुई हैं उन सबके अधिष्ठाता देव दैवीय गुण से संपन्न हैं तो संप्रसाद यह जीवात्मा आवरण से मुक्त हो जाता है।इसका अर्थ यह हुआ कि वह वासना से मुक्त हो जायेगा।वासना रहित और विषय रहित होने पर वह बंधन मुक्त हो जायेगा।तब उसे नित्य सुख का अनुभव होगा।ऐसा व्यक्ति ही इस सुख का अधिकारी होगा।

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