top of page
Search
Writer's pictureAnshul P

RV 1.43.7

Updated: May 19, 2021


Rig Ved 1.43.7


Here Parmatma is requested to take away our Dissatisfaction, Unfulfillment and Chaos. We aspire many materialistic things and we may acquire them and feel happy. But spiritually we will be peaceful only on attaining Gyan. We can actually be happy on knowing the Gyanswarup. Rest all are illusionary.


अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम्।

महि श्रवस्तुविनृम्णम्।।


Translation:


सोम - Somdev.


शतस्य - Hundred.


नृणाम् - Like humans.


श्रियम् - Wealth.


अस्मे - We.


अधि न धेहि - To give.


महि - Great.


तुविनृम्णम् - Very strong.


श्रवः - Foodgrains.


Explanation.Oh Somdev! We humans request you to provide us hundred types of riches , strong food grains, strength and great fame.


Deep meaning: Here Parmatma is requested to take away our Dissatisfaction, Unfulfillment and Chaos. We aspire many materialistic things and we may acquire them and feel happy. But spiritually we will be peaceful only on attaining Gyan. We can actually be happy on knowing the Gyanswarup. Rest all are illusionary.


Instagram link👇

https://www.instagram.com/p/CPBH-PrAkVj/?utm_medium=copy_link



InspiredByAnjaninandanDass


📸 Credit - art_library07(Instagram handle)


#मराठी


ऋग्वेद १.४3.७


अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम्।

महि श्रवस्तुविनृम्णम्।।


भाषांतर:


सोम - सोमदेव।


शतस्य -शंभर.


नृणाम् - मनुष्यांचे बरोबर.


श्रियम् - धन.


अस्मे - आमचे.


अधि न धेहि - प्रदान करणे.


महि - महान.


तुविनृम्णम् - प्रभूत बळ.


श्रवः - धन.


भावार्थः हे सोमदेव! आपण मनुष्यास शेकडो प्रकारचे ऐश्वर्य, तेजयुक्त अन्न, बळ व महान यश प्रदान करावे.


गूढार्थ: इथे अतृप्तता, अशांती , क्षोभ, आणि असंतोष दूर करण्यासाठी प्रार्थना केलेली आहे. भौतिक रिती ने ज्या वस्तूंची कमतरता असते त्यांना प्राप्त करून शांती अनुभवते. परंतु आध्यात्मिक द्रष्ट्या ने शांती मात्र ज्ञान प्राप्त करून येइल. आम्ही ज्ञान स्वरूप झाल्यावरच सुखी होउ शकतो. आम्ही ज्या वस्तूंची इच्छा करतो, त्या भौतिक द्रष्टीने मिळवितो व शांत होतो. बाकी सगळ भ्रामक आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.४3.७


अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम्।

महि श्रवस्तुविनृम्णम्।।


अनुवाद:


सोम - सोमदेव।


शतस्य - सौ।


नृणाम् - मनुष्य सदृश।


श्रियम् - संपत्ति।


अस्मे - हमें।


अधि न धेहि - प्रदान करना।


महि - महान।


तुविनृम्णम् - भरपूर बल।


श्रवः - अन्न।


भावार्थःहे सोमदेव! आप हम मनुष्यों के लिए सैकड़ों प्रकार के ऐश्वर्य, बल तेज से भरपूर अन्न और महानतम यश प्रदान कीजिए।


गूढार्थ: यहां पर अतृप्तता, अशांति ,क्षोभ असंतोष को दूर करने के लिए प्रार्थना की गई है। हमें

भौतिक दृष्टि से जिन वस्तुओं की कमी है उनको प्राप्त होने से शांति मिलती है। परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से शांति केवल ज्ञान प्राप्त करने पर मिलेगी। हम ज्ञानस्वरूप होने पर ही वास्तव में सुखी हो सकते हैं। बाकी चीज़े हमे केवल भ्रमित करती हैं।



46 views0 comments

Recent Posts

See All

Bình luận


Post: Blog2_Post
bottom of page