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RV 1.43.8

Updated: May 20, 2021


Rig Ved 1.43.8


Here it says that there are two types of people who can cause harm to your yagya. One are the misers who although have everything, but they will not help you. The others can cause you harm by taking away the things accumulated for yagya. But when we think spiritually actually miser means the bad sanskaar accumulated in us wherein we believe that we are poor and low, when actually we are not. When the cover on our eyes is taken away we have the true realization that we are absolute. In Jagrit we are at oneness with this world, in swapna and TEJAS we are at oneness with Prakash, in SUSHUPTI and TURIYA we are in oneness with antaryami. So this realization is necessary.


मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


Translation:


सोमपरिबाधः - Creating problems in Som yagya.


नः - We.


मा - No.


जुहुरन्त - Violent.


अरातयः - Enemy.


इन्दो - Oh Som!


वाजे - Strength/good grains.


आ भजः - Give from all aspects.


Explanation; We request you to protect us from the enemies who want to create difficulties in Somyagya. We request you to protect us from misers and evil people. Oh Somdev! You also increase our strength.


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📸 Credit - Rajesh N Sir


#मराठी


ऋग्वेद१.४३.८



मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


भाषांतर:


सोमपरिबाधः - सोमयज्ञाला बाधा.


नः - आमचे.


मा - हिंसक.


जुहुरन्त - Rig Ved 1.43.8



मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


Translation:


सोमपरिबाधः - Creating problems in Som yagya.


नः - We.


मा - No.


जुहुरन्त - Violent.


अरातयः - Enemy.


इन्दो - Oh Som!


वाजे - Strength/good grains.


आ भजः - Give from all aspects.


Explanation; We request you to protect us from the enemies who want to create difficulties in Somyagya. We request you to protect us from misers and evil people. Oh Somdev! You also increase our strength.


Deep meaning: Here it says that there are two types of people who can cause harm to your yagya. One are the misers who although have everything, but they will not help you. The others can cause you harm by taking away the things accumulated for yagya. But when we think spiritually actually miser means the bad sanskaar accumulated in us wherein we believe that we are poor and low, when actually we are not. When the cover on our eyes is taken away we have the true realization that we are absolute. In Jagrit we are at oneness with this world, in swapna and TEJAS we are at oneness with Prakash, in SUSHUPTI and TURIYA we are in oneness with antaryami. So this realization is necessary.





#मराठी


ऋग्वेद१.४३.८



मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


भाषांतर:


सोमपरिबाधः - सोमयज्ञाला बाधा.


नः - आमचे.


मा - नाही


जुहुरन्त - हिंसक


अरातयः -शत्रू.


इन्दो - हे सोम!


वाजे - बळ/अन्न.


आ भजः - चारही बाजूने प्रदान करणे.


भावार्थ: आम्ही विनंती करतो की सोम यज्ञात बाधा आणणाऱ्या शत्रूंपासून आमचे संरक्षण करावे. तसेच जे वाईट व दुष्ट लोक आहेत त्याच्या पासून ही आमचे रक्षण करावे. हे सोम देवा! आपण आमचे बळ वाढवावे.


गूढ़ार्थ: इथे म्हटले आहे की साधकाला असे वाटत असते की दोन प्रकाराची माणूसं असतात.एक असतात ज्यांच्या कड़े साधन असून ही ते उदार नसतात आणि यज्ञा निमित्त काहीही देत नाही।दूसरे लोक साधन घेऊन पळून जातात. आध्यात्मिक दृष्टीने पाहिले तर कृपण म्हणजे आमचे जन्मजन्मांतरचे कुसंस्कार जे आमच्यात भरून पडले आहेत।आम्ही हीनदीन बनून राहतो पण आम्ही ते नसतो. जो पर्यन्त आमच्या डोळावरचे आवरण दूर होत नाही आम्हास कळणार नाही की आम्हीच सर्व काही आहोत, विराट आहोत. जागृत मध्ये जगा बरोबर एकता आहे, स्वप्न आणि तेजस मध्ये प्रकाश बरोबर एकता आहे.आणि सुषुप्तित परमात्मा बरोबर आणि तुरीय मध्ये कळते की आम्हीच तो अन्तर्यामी आहोत. तर इकडे तेच आवरण दूर करण्यासाठी सांगितलेला आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद१.४३.८



मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


अनुवाद:


सोमपरिबाधः - सोमयज्ञ में बाधाएँ।


नः - हमें।


मा - न।


जुहुरन्त - हिंसक।


अरातयः - दुश्मन।


इन्दो - हे सोम!


वाजे - बल/ अन्न।


आ भजः - हर तरह से दें।


भावार्थ; सोम यज्ञ में बाधा पहुंचाने वाले हमे परेशान न करें। कृपण और दुष्टों से हमे पीड़ा न पहुंचे। हे सोमदेव! आप हमारे बल को बढ़ाइए।


गूढ़ार्थ: यहां कहा गया है कि साधक को लगता है कि उसे दो प्रकार के लोग बाधा पहुंचा सकते हैँ। एक वे लोग हैं जो साधन संपन्न हैं वे यज्ञ के लिए साधन देने में कमी करते हैं।कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यज्ञ को बाधा पहुंचाते हैं।ऐसे लोगो से रक्षा की बात की गई है।आध्यात्मिक दृष्टी से कहा गया है कि कृपण का अर्थ है की हमारे जन्मजन्मांतर के कुसंस्कार हैं जो हमारे भीतर भरे पड़े हैं,हम दीन हीन बने हुए हैं।जब वह पर्दा आंखों से हट जाएगा तब हमें वास्तविकता ज्ञात होगी की हम विराट हैं हम ही सब कुछ हैं। जागृत में सब के साथ एकता है,स्वप्न और तेजस में प्रकाश के साथ एकता है सुषुप्ति और तूरीय में अन्तर्यामी के साथ एकता है। तो यहां पर वही पर्दा उठाने की बात कही गई है।


अरातयः -शत्रू.


इन्दो - हे सोम!


वाजे - बळ/अन्न.


आ भजः - चारही बाजूने प्रदान करणे.


गूढार्थ;सोमयज्ञाला बाधा पोचवण्यारे शत्रू आम्हास प्रताडित करण्यास सक्षम नसावे. कृपण आणि दुष्टाने आम्हास वाचवा। हे सोमदेव! आमच्या बलात वृद्धि करा।



#हिन्दी


ऋग्वेद१.४३.८



मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरंत ।


आ न॑ इंदो॒ वाजे॑ भज ॥


अनुवाद:


सोमपरिबाधः - सोमयज्ञ में बाधाएँ।


नः - हमें।


मा - न।


जुहुरन्त - हिंसक।


अरातयः - दुश्मन।


इन्दो - हे सोम!


वाजे - बल/अन्न।


आ भजः - हर तरह से दें।


भावार्थ; सोम यज्ञ में बाधा पहुंचाने वाले हमे परेशान न करें। कृपण और दुष्टों से हमे पीड़ा न पहुंचे। हे सोमदेव! आप हमारे बल को बढ़ाइए।


गूढ़ार्थ: यहां कहा गया है कि साधक को लगता है कि उसे दो प्रकार के लोग बाधा पहुंचा सकते हैँ। एक वे लोग हैं जो साधन संपन्न हैं वे यज्ञ के लिए साधन देने में कमी करते हैं।कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यज्ञ को बाधा पहुंचाते हैं।ऐसे लोगो से रक्षा की बात की गई है।आध्यात्मिक दृष्टी से कहा गया है कि कृपण का अर्थ है की हमारे जन्मजन्मांतर के कुसंस्कार हैं जो हमारे भीतर भरे पड़े हैं,हम दीन हीन बने हुए हैं।जब वह पर्दा आंखों से हट जाएगा तब हमें वास्तविकता ज्ञात होगी की हम विराट हैं हम ही सब कुछ हैं। जागृत में सब के साथ एकता है,स्वप्न और तेजस में प्रकाश के साथ एकता है तुरीय में अन्तर्यामी के साथ एकता है। तो यहां पर वही पर्दा उठाने की बात कही गई है।



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