Rig Ved 1.44.1
Here Ushakaal means Prakash. Wherever there is Prakash all the ignorance goes away. In this illumination we can see all the Vibhuti's of Parmatma. Wherever we find good things parmatma is always present there. When there is oneness with these vibhuti's this is known as yog. When there is feeling or bhaav it becomes bhakti. Oneness with bhakti is Gyan. And it's practice is dharm. So our life has yog, bhakti, gyan and dharm. All the different tatvas or elements come together to pray to Parmatma.
अग्ने॒ विव॑स्वदु॒षस॑श्चि॒त्रं राधो॑ अमर्त्य ।
आ दा॒शुषे॑ जातवेदो वहा॒ त्वम॒द्या दे॒वाँ उ॑ष॒र्बुधः॑ ॥
Translation
अमर्त्य - Immortal.
जातदेवः - Knows everything.
अग्ने - Agnidev!
त्वम् - You.
उषसः - Usha dev.
विवस्वत् - Special residence.
चित्रम् - Of various types.
राधः - Wealth.
दाशुषे - Yajman offering havi.
आ वह - To give.
अद्य - Today.
उषर्बुधः - Alert in the mornings.
देवान् - Of devtas.
Explanation ःOh immortal Agnidev! During morning time special powers float around, you give this to a special person who does the offering of havi daily. Oh the all knowing Agnidev! Bring those devtas with you who are awaken during morning.
Deep meaning:-Here Ushakaal means Prakash. Wherever there is Prakash all the ignorance goes away. In this illumination we can see all the Vibhuti's of Parmatma. Wherever we find good things parmatma is always present there. When there is oneness with these vibhuti's this is known as yog. When there is feeling or bhaav it becomes bhakti. Oneness with bhakti is Gyan. And it's practice is dharm. So our life has yog, bhakti, gyan and dharm. All the different tatvas or elements come together to pray to Parmatma.
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#मराठी
ऋग्वेद १.४४.१
अग्ने॒ विव॑स्वदु॒षस॑श्चि॒त्रं राधो॑ अमर्त्य ।
आ दा॒शुषे॑ जातवेदो वहा॒ त्वम॒द्या दे॒वाँ उ॑ष॒र्बुधः॑ ॥
भाषांतर ः
अमर्त्य - अमर.
जातदेवः - सर्वज्ञ.
अग्ने - अग्नि देव.
त्वम् - आपण.
उषसः - उषा देव.
विवस्वत् - विशेष निवास युक्त.
चित्रम् - अनेक प्रकारच्या.
राधः - धन.
दाशुषे - हवी देणारा यजमान.
आ वह - देणे.
अद्य - आज.
उषर्बुधः - उषाकाळात चैतन्य.
देवान् - देवाचे.
भावार्थ ः हे अमर अग्निदेव! उषा काळात विलक्षण शक्ति प्रवाहित होतात,आपण ते नित्य हवि दान करणाऱ्या विशेष व्यक्तिस द्यावे. हे सर्वज्ञ! उषा काळात जागृत असणाऱ्या देवतांना पण बरोबर आणावे.
गूढार्थ:इथे उषा काळ ह्याचे अर्थ आहे प्रकाश, जिकडे प्रकाश असतो तिथे अज्ञानाचा अंधार समाप्त होतो, ह्या प्रकाश काळात परमात्माची सगळी विभूती दिसू लागतात, ईश्वर तिथे अवश्य असतो जिथे श्रेष्ठ वस्तू होतात , तिथेच समस्त विभूती पण दिसतात, आम्ही जेव्हा त्यांच्याशी एकता ने युक्त होतो त्याला योग म्हणतात, जेव्हा तो भावाने युक्त होतो त्याला भक्ती म्हणतात, जेव्हा त्याची एकता भक्तीशी होते तेव्हा तो ज्ञान असतो, आणि ह्याचे व्यवहार धर्म असतो, तर आमचे जीवन योग ने, भक्ती ने ज्ञानाने आणि धर्म ने युक्त होते.ही सगळे भिन्न तत्व एकत्र येउन परमात्म्याची प्रार्थना करतात.
#हिंदी
ऋग्वेद १.४४.१
अग्ने॒ विव॑स्वदु॒षस॑श्चि॒त्रं राधो॑ अमर्त्य ।
आ दा॒शुषे॑ जातवेदो वहा॒ त्वम॒द्या दे॒वाँ उ॑ष॒र्बुधः॑ ॥
अनुवाद ः
अमर्त्य - अमर।
जातदेवः - प्रत्येक चीज के ज्ञाता।
अग्ने - अग्नि देव!
त्वम् - आप।
उषसः - उषा देव।
विवस्वत् - विशेष निवास वाले।
चित्रम् - विभिन्न प्रकार।
राधः - धन।
दाशुषे - हवि देनेवाला यजमान।
आ वह - देना।
अद्य - आज।
उषर्बुधः - उषाकाल में चैतन्य।
देवान् - देवों को।
भावार्थ ःहे अग्निदेव! उषा काल के समय विभिन्न प्रकार की विलक्षण शक्तियां प्रवाहित होती हैं। यह दिव्य धन नित्य हवि दान करने वाले विशेष व्यक्ति को दें। हे सब चीजों के ज्ञाता! उषा काल में जागृत देवताओं को भी साथ लेकर आए.
गूढ़ार्थ:यहां उषाकाल यानि प्रकाश। जहाँ प्रकाश होता है वहां अज्ञान का अंधकार समाप्त हो जाता है।इस प्रकाश काल में परमात्मा की सभी विभूतियां दिख जायेंगी।ईश्वर वहां अवश्य होता है जहाँ श्रेष्ठ वस्तुएं होती हैं। वहीं समस्त विभूतियां भी दिखती हैं। तो जब एकता से युक्त होते हैं तब वह योग कहलाता है। जब वह भाव से युक्त होता है तो भक्ति कहलाता है और इसकी एकता से ज्ञान बनता है और इसका व्यवहार धर्म कहलाता है। तो हमारा जीवन योग से,भक्ति से,ज्ञान से और धर्म से युक्त होगा। तो अलग अलग तत्वों को मिलाकर उस परमात्मा से प्रार्थना की गई है।
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